राजस्थान में बीजेपी की शर्मनाक हार हुई है। वल्लभनगर और धरियावद सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी एक सीट पर तीसरे और दूसरी सीट पर चौथे स्थान पर रही है। जबकि 2018 तक वह राजस्थान की सत्ता में थी और 2019 के लोकसभा चुनाव में सारी सीटें (24 बीजेपी, 1 आरएलपी) उसने झटकी थीं। लेकिन इतनी दुर्गति होने की उम्मीद बीजेपी के प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व को भी नहीं थी।
कांग्रेस को मिली जीत सही मायने में बड़ी है क्योंकि वल्लभनगर में वह 20 हज़ार तो धरियावद में 18 हज़ार वोटों से जीती है। वोटों का यह मार्जिन बहुत बड़ा है और उसने बीजेपी को दोनों सीटों पर बहुत पीछे धकेल दिया है।
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गहलोत का दम
इसमें कोई शक नहीं है कि अशोक गहलोत अभी भी काफी लोकप्रिय राजनेता हैं। पार्टी के भीतर से ही चुनौती मिलने के बाद भी वह अपनी सरकार चलाने में कामयाब रहे हैं और इस जीत के बाद उन्होंने कांग्रेस हाईकमान तक यह पैगाम पहुंचा दिया है कि उनमें काफ़ी दम-खम बाक़ी है।
राजस्थान में गुटबाज़ी बीजेपी और कांग्रेस दोनों का सच है। कांग्रेस में गहलोत बनाम सचिन पायलट की लड़ाई है तो बीजेपी में वसुंधरा बनाम अन्य है। अन्य में बहुत सारे बड़े नेता हैं लेकिन वसुंधरा का ख़ेमा बीजेपी के बाक़ी नेताओं पर भारी पड़ता है।
वसुंधरा समर्थकों की मांग
वसुंधरा राजे के समर्थकों ने अगले विधानसभा चुनाव में राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने को लेकर आलाकमान पर दबाव बनाया हुआ है। राजे के समर्थक पार्टी लाइन से हटकर कार्यक्रम करते रहे हैं और उन्हें राजे को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
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वसुंधरा राजे राजस्थान बीजेपी में हैवीवेट नेता हैं। एक ओर राजे हैं तो दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, कहा जाता है कि ये सब मिलकर भी राजे के सामने नहीं टिक पाते।
वसुंधरा के समर्थकों का पार्टी लाइन से हटकर कार्यक्रम करने का मुद्दा राष्ट्रीय नेतृत्व तक भी जा चुका है लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह वसुंधरा राजे को नहीं हिला सके तो फिर यह साफ है कि राजस्थान में बीजेपी राजे को नज़रअंदाज कर आगे नहीं बढ़ सकती।
कांग्रेस के सामने चुनौती
उपचुनाव के नतीजे यह भी दिखाते हैं कि गहलोत सरकार के ख़िलाफ़ एंटी-इन्कम्बेन्सी जैसा कुछ नहीं है। राज्य में 2023 के अंत में चुनाव होने हैं यानी दो साल का वक़्त बचा है। उपचुनाव में बीजेपी को मिली बड़ी हार से यह साफ हुआ है कि कांग्रेस अगर गहलोत बनाम पायलट संघर्ष को सुलझा ले तो वह सत्ता में फिर से वापसी कर सकती है।
कांग्रेस के सामने अभी भी पायलट के समर्थकों को कैबिनेट में जगह देने के साथ ही उन्हें संतुष्ट करने की चुनौती है लेकिन फिर भी उसने यह दिखाया है कि राज्य की जनता के बीच उसकी पकड़ मज़बूत बनी हुई है।
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