राजस्थान में 25 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके करीब 15 दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने रिटायरमेंट का संकेत देकर राजस्थान की राजनीति में चर्चाओं के बाजार को गर्म कर दिया है। वसुंधरा ने शुक्रवार शाम को झालवाड़ में एक चुनाव सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि मुझे लग रहा है अब मैं रिटायर हो सकती हूं।
वसुंधरा राजे ने अपने पुत्र दुष्यंत सिंह को लेकर कहा है कि मेरे पुत्र सांसद साहब को सुनकर मुझे लगा कि जनता ने उन्हें अच्छी तरह से सिखा दिया है। उन्होंने कहा कि, कुछ प्यार से और कुछ आंख दिखाकर, आपने उसे ऐसा बना दिया है कि अब मुझे अपने पुत्र के पीछे पड़ने की जरूरत ही नहीं है, वो काम आप लोगों ने ही कर दिया है।
अपने पुत्र के साथ ही उन्होंने पार्टी के अपने समर्थक विधायकों को लेकर भी कहा कि जो पार्टी के विधायक भी हैं मुझे विश्वास है कि मुझे उन पर निगाह रखने की कोई जरूरत नहीं है। वह सभी ऐसे लोग हैं,चाहे वह जिलाध्यक्ष हों, या फिर दूसरे कार्यकर्ता। ये सभी ऐसी स्थिति में आ गए हैं कि उनके पीछे पड़ने की जरूरत नहीं है, वे आप लोगों के काम वैसे ही करेंगे।
उनके इस बयान से कयास लगाया जा रहा है कि वसुंधरा आने वाले दिनों में राजनीति से सन्यास ले सकती हैं। राजस्थान की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि वसुंधरा ने संकेत दे दिया है कि वे अब सक्रिय राजनीति से दूर जा सकती हैं। माना जा रहा है कि वसुंधरा अब अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए अपनी राजनैतिक विरासत अपने पुत्र दुष्यंत सिंह को सौंपना चाहती हैं।
झालावाड़ से मिले समर्थन को किया याद
वसुंधरा राजे ने इस चुनावी सभा में झालवाड़ की जनता का शुक्रिया अदा किया। कहा कि वह इस झालावाड़ को हम हमेशा याद रखेंगी, इसी झालावाड़ में मेरा 10वां नामांकन है। पहला नामांकन नवंबर 1989 में सांसद के लिए भरा। लगातार 5 बार सांसद और 4 बार विधायक चुनी गई हूं।उन्होंने कहा कि सांसद दुष्यंत सिंह को लगातार 4 बार सांसद बनाया। झालवाड़ के लोगों के आशीर्वाद से 1998 में केंद्र में विदेश मंत्री बनी। उसके बाद केंद्र में कई महत्वपूर्ण विभागों की मंत्री बनी। वसुंधरा राजे ने कहा कि अभूतपूर्व बहुमत के साथ 2003 और 2013 में राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी।
राजनैतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि इन बातों को याद कर जहां एक तरफ उन्होंने जनता की सहानूभूति हासिल करने की कोशिश की है वहीं दूसरी तरफ यह भी एक संकेत है कि वह अब सक्रिय राजनीति से विदा लेने के करीब पहुंच गई हैं।
आत्मसम्मान को बरकरार रखते हुए राजनीति की है
वे सन्यास क्यों लेना चाहती हैं के सवाल पर राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहला कारण तो उनकी बढ़ती उम्र है और दूसरा कारण भाजपा केंद्रीय नेतृत्व से हाल के वर्षों में मिले उपेक्षा है। वसुंधरा राजे भारतीय राजनीति की उन नेताओं में शुमार की जाती हैं जिन्होंने हमेशा आत्मसम्मान को बरकरार रखते हुए राजनीति की है। हमेशा अपनी शर्तों पर राजनीति की है। उम्र के इस पड़ाव में उन्हें एहसास हो गया है कि केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान में उन्हें हाशिये पर धकेलना चाहता है। यही कारण है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से लंबे समय तक उन्हें दूर रखा गया। पार्टी ने राज्य में कई दूसरे नेताओं को खूब बढ़ावा दिया है।राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि इन सब को देखते हुए वसुंधरा राजे अब राजनीति से सम्मान के साथ विदाई लेने का सोच रही हो। हालांकि वह कब सक्रिय राजनीति से सन्यास लेंगी यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा लेकिन उनके बयानों से राजस्थान की राजनीति में नई हलचल जरुर पैदा हो गई है।
राजनीति से सन्यास लेने से किया इंकारशुक्रवार को झालवाड़ में दिए गए वसुंधरा राजे के बयान के बाद जब कयास लगाए जाने लगा कि वह राजनीति से सन्यास ले सकती हैं तो अब शनिवार को उन्होंने कहा है कि वह अभी रिटायरमेंट नहीं ले रही हैं। वसुंधरा राजे ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा है कि उन्होंने अपने पुत्र दुष्यंत का भाषण सुनकर और और सभा में उन्हें देखकर एक मां होने के नाते जो महसूस किया था वह बोला था। वसुंधरा राजे ने कहा कि वह राजनीति से फिलहाल कहीं नहीं जा रही हैं इसलिए विधानसभा चुनाव में नामांकन दाखिल किया है। भले ही वसुंधरा राजे ने शुक्रवार के अपने बयान पर सफाई दी है लेकिन राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि वसुंधरा ने इशारों में अपने संन्यास को लेकर मन की बात कह दी है।
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