राजस्थान कांग्रेस के अंदर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बनाम पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का सियासी युद्ध फिर से देखने को मिल सकता है। चिंगारी सुलग रही है और यह कभी भी शोला बन सकती है। लेकिन इस बार कांग्रेस आलाकमान ने अपनी रीढ़ सीधी रखी है। यानी कि आलाकमान झुकने के मूड में बिलकुल नहीं है।
राजस्थान कांग्रेस में बीते साल हुए घमासान के वक़्त राहुल और प्रियंका गांधी ख़ुद पायलट के पास पहुंचे थे और उन्हें मनाया था। इतना ही नहीं, पायलट के समर्थक 19 विधायकों से भी राहुल और प्रियंका ने बात की थी। लेकिन इस बार हालात अलग हैं।
राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अजय माकन ने कहा है कि पायलट कांग्रेस के लिए बेहद अहम हैं लेकिन पार्टी कुछ नेताओं की इच्छा के हिसाब से नहीं चल सकती।
बीते कुछ दिनों से अदंर ही अंदर सुलग रहा गहलोत बनाम पायलट का संघर्ष वरिष्ठ विधायक हेमाराम चौधरी के इस्तीफ़ा देने के बाद बाहर आता दिख रहा है। चौधरी को सचिन पायलट का करीबी माना जाता है।
कुछ और विधायक नाराज़
हेमाराम चौधरी के इस्तीफ़े के बाद पायलट गुट के कुछ और विधायकों ने नाख़ुशी ज़ाहिर की है और अपनी बात को रखा है। चाकसू के विधायक वेद सोलंकी ने कांग्रेस हाईकमान से अपील की है कि वह राजस्थान सरकार में ताक़त को एक जगह न दे बल्कि इसे बांटे। सोलंकी ने कहा है कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं होती है तो वह भी इस्तीफ़ा दे देंगे। पायलट कैंप के दो और विधायकों मुरारी मीणा और मुकेश भाकर भी आगे आए हैं और उन्होंने पार्टी नेतृत्व से अपील की है कि वह हेमाराम चौधरी की बात को सुने।
इन सभी विधायकों ने पिछले साल हुए सत्ता संघर्ष में भी पायलट गुट का खुलकर साथ दिया था। ऐसे विधायकों की संख्या 19 है।
पायलट ने अपने विधायकों को मानेसर के एक होटल में जबकि गहलोत ने उन्हें जयपुर और उदयपुर में रखा था। तब इस संघर्ष को लेकर कांग्रेस की जबरदस्त फजीहत हुई थी और गहलोत ने पत्रकारों के सामने पायलट को नाकारा, निकम्मा तक कहा था।
‘पार्टी जिम्मेदारी देगी’
विधायकों की नाराज़गी से इतर इस बार आलाकमान के भी तेवर काफ़ी सख़्त हैं। ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, अजय माकन ने एक इंटरव्यू में कहा, “पार्टी कुछ लोगों की इच्छा के हिसाब से फ़ैसले नहीं लेती है। सचिन पायलट राजस्थान में हमारे स्टार प्रचारक हैं और उन्होंने यहां कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका निभाई है। पार्टी इन बातों को ध्यान में रखते हुए आने वाले वक़्त में उन्हें जिम्मेदारी देगी।”
माकन ने कहा कि बीते कुछ दिनों में राज्य में तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए, इसमें कांग्रेस को 51 फ़ीसदी वोट मिले और हमने 2 सीटें जीतीं। उन्होंने कहा कि इसका श्रेय अशोक गहलोत सरकार के काम और कांग्रेस संगठन को जाता है।
हेमाराम चौधरी के इस्तीफ़े को लेकर माकन ने कहा कि यह पार्टी का आंतरिक मामला है और इसे जल्द ही सुलझा लिया जाएगा।
पायलट कैंप की परेशानी
दूसरी ओर, पायलट कैंप की शिकायत है कि एक साल बाद भी उनके मुद्दों का समाधान नहीं हुआ है। पायलट कभी राज्य के उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे। ये दोनों बड़े पद उनके पास थे और कांग्रेस हाईकमान की नज़रों में भी उनकी छवि अच्छी थी क्योंकि 2018 के चुनाव में उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते ही कांग्रेस सत्ता में लौटी थी। लेकिन पायलट शायद जल्दबाज़ी कर गए और अपने विधायकों को लेकर मानेसर चले गए। आज की तारीख़ में पायलट ख़ुद भी खाली हैं और उनके समर्थक भी नज़रअंदाज किए जाने की शिकायत करते हैं।
राजस्थान में कैबिनेट के विस्तार को लेकर पेच फंसा हुआ है। पायलट और गहलोत अपने ज़्यादा से ज़्यादा समर्थकों को कैबिनेट में शामिल करना चाहते हैं, ऐसे में ये मामला फंसा हुआ है।
हाईकमान का रोल
हाईकमान भी यही चाहता है कि ऐसे वक़्त में जब देश कोरोना महामारी के बड़े संकट से जूझ रहा है, राजस्थान में भी कोरोना का संकट काफ़ी ज़्यादा है, ऐसे वक़्त में पायलट गुट के विधायकों को इन मुद्दों को नहीं उठाना चाहिए।
लेकिन हाईकमान को इस बवाल को तुरंत शांत करना होगा वरना जो हालात पंजाब कांग्रेस में इन दिनों हैं, वैसे यहां फिर से हो सकते हैं। राजस्थान में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और यह उन गिने-चुने राज्यों में है, जहां कांग्रेस सत्ता में है। ऐसे में आलाकमान को राजस्थान में गहलोत-पायलट गुट का झगड़ा फिर न बढ़ जाए, उससे पहले ही कमान संभालनी होगी।
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