राजस्थान में राजनीतिक संकट शुरू होने के क़रीब एक महीने की तनातनी के बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट आज आमने-सामने होंगे। दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान से बातचीत के बाद दोनों गुटों में आई नरमी के बीच गहलोत और पायलट आज कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल होंगे। इसमें दोनों नेताओं के विधायकों का भी शामिल होना तय है। यह बैठक राजस्थान विधानसभा के विशेष सत्र से एक दिन पहले हो रही है। इस बैठक में दोनों नेताओं का रवैया एक-दूसरे के प्रति कैसा रहता है इस पर सबकी नज़र रहेगी।
क्या दोनों नेता हँस-मिलकर गले लगेंगे या फिर यह सामान्य औपचारिक मुलाक़ात होगी? या फिर दोनों बैठक में शामिल तो होंगे लेकिन आपस में बातचीत करेंगे भी या नहीं?
वैसे, क़रीब एक महीने पहले बग़ावत करने वाले सचिन पायलट की दो दिन पहले ही दिल्ली में राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी से मुलाक़ात के बाद गहलोत और पायलट गुट में नरमी आई है। लेकिन इससे पहले दोनों गुटों में ज़बरदस्त तनातनी रही। कई बार आरोप-प्रत्यारोप इतने गहरे हो गए कि निजी हमले तक बात पहुँच गई थी। यही नहीं दोनों गुटों के बीच मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया।
पायलट और गहलोत के बीच तब यह विवाद खुलकर सामने आया था जब राजस्थान सरकार को गिराने की साज़िश लगाए जाने का आरोप लगाया गया था और राजस्थान पुलिस ने इस मामले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को नोटिस जारी किया और कहा कि वे सरकार गिराने के संबंध में अपने बयान दर्ज करवाएँ। तब कांग्रेस के 24 विधायकों ने विपक्षी दल बीजेपी पर आरोप लगाया था कि वह राज्य सरकार को अस्थिर करने की साज़िश रच रही है। उन्होंने कहा था कि उनके पास इस बात की पुख़्ता सूचना है।
इसके बाद सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों को लेकर राज्य से बाहर चले गए। 14 जुलाई को सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया। इसके बाद दोनों पक्षों में तल्खी बढ़ती गई। अशोक गहलोत ने सचिन पायलट का नाम लेकर आरोप लगाया कि सचिन पायलट सरकार गिराने में शामिल थे। हालाँकि बीजेपी में शामिल होने की अटकलों को सचिन पायलट ने खारिज कर दिया और कहा कि वह बीजेपी में शामिल नहीं होंगे और उनकी छवि धूमिल की जा रही है।
इस बीच अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के लिए काफ़ी तीखे शब्दों के प्रयोग किए। उन्होंने निकम्मा और नाकारा तक कह दिया था।
गहलोत ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘सात साल के अंदर राजस्थान एक ऐसा अकेला राज्य था, जहाँ पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने की बात नहीं की गई, न सीनियर ने और न किसी जूनियर ने। हम जानते थे कि निकम्मा है, नाकारा है, कुछ काम नहीं कर रहा है, खाली लोगों को लड़वा रहा है।’
इस पर पायलट ने कहा था कि वह इन निराधार आरोपों से दुखी ज़रूर हैं लेकिन हैरान नहीं। उन्होंने इस मामले में संयम बरता।
हालाँकि इतनी तनातनी के बावजूद अब कांग्रेस आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद दोनों गुटों में नरमी आई है, लेकिन अभी भी आपस में नाराज़गी है। सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की ‘वापसी’ से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे के विधायक नाराज़गी जता चुके हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार गहलोत कांग्रेस आलाकमान द्वारा पायलट और उनके समर्थक विधायकों को पूरा समय देने, खुलकर बातचीत करने और कमेटी का गठन किए जाने से नाख़ुश हैं। इस पूरे घमासान के दौरान गहलोत का लगातार जोर इस बात पर रहा था कि पार्टी आलाकमान पायलट खेमे के बाग़ी विधायकों से किसी तरह की बात न करे। गहलोत यह तक कह चुके थे कि ऐसे लोगों को जनता के सामने एक्सपोज किया जाना चाहिए।
सोमवार रात को राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाक़ात के बाद सचिन पायलट ने इस बात को दोहराया था कि जिन लोगों ने मेहनत करके राजस्थान में सरकार बनाई थी, उनकी हिस्सेदारी, भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए और राजस्थान सरकार को जनता से किए अपने वादों को पूरा करना चाहिए। उनका इशारा साफ था कि वे गहलोत के काम करने के तरीक़े से ख़ुश नहीं हैं।
मंगलवार को भी पायलट टीवी चैनलों पर कहते रहे कि यह उनका फर्ज था कि वे सरकार के कामकाज से जुड़े मुद्दों को लेकर ज़रूरी होने पर विरोध दर्ज कराएँ और वही उन्होंने किया।
अब आलाकमान ने तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है लेकिन क्या इसके लिए पायलट और गहलोत के झगड़ों को सुलझाना आसान होगा? यह आज कांग्रेस विधायक दल की बैठक में कुछ हद तक साफ़ हो जाएगा?
अपनी राय बतायें