जल्दबाजी में और अंधाधुंध गिरफ्तारी, जमानत मिलने में कठिनाई और विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक जेल में रखने के मुद्दे पर शनिवार को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इस पर तत्काल रूप से ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है।
मुख्य न्यायाधीश रमना की यह टिप्पणी हाल की घटनाओं को देखते हुए बेहद अहम है। ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और शरद पवार पर टिप्पणी करने वाली मराठी एक्ट्रेस केतकी चितले की गिरफ़्तारी जैसे मामले हाल में आए हैं। जुबैर तो अभी भी जेल में हैं। उन्हें पिछले महीने 2018 के एक ट्वीट को लेकर गिरफ़्तार किया गया। बाद में उनपर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग मामलों में कई मुक़दमे कर दिए गए।
बहरहाल, सीजेआई ने कहा कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा है। जयपुर में 18वीं अखिल भारतीय क़ानूनी सेवा प्राधिकरण बैठक को संबोधित करते हुए सीजेआई ने कहा कि आपराधिक न्याय के प्रशासन की दक्षता बढ़ाने के लिए एक समग्र कार्य योजना को लागू करने की ज़रूरत है।
बता दें कि भारत की जेलें विचाराधीन कैदियों से भरी हैं। ये कैदी ऐसे आरोपी हैं, जिन पर छोटे-मोटे अपराध के आरोप हैं। देश की अदालतों में 5 वर्षों से भी ज़्यादा समय से 1 करोड़ मामले सुनवाई के लिए पेंडिंग हैं। इनमें से 76 फ़ीसदी अंडर ट्रायल हैं, जिनके मुक़दमे पेंडिंग हैं। मात्र इस आँकड़े से अंडर ट्रायल आरोपियों की भयावह स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आधे से ज़्यादा पेंडिंग मामले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल की निचली अदालतों में दायर किए गए थे। यहां पर कैदियों की संख्या जेलों की क्षमता से ऊपर चली गई हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई ने आगे कहा, 'पुलिस का प्रशिक्षण और संवेदीकरण और जेल प्रणाली का आधुनिकीकरण आपराधिक न्याय के प्रशासन में सुधार का एक पहलू है।'
सीजेआई ने कहा, 'भारत जैसे देश में कानूनी सहायता न्याय प्रशासन का एक मुख्य पहलू है। न्याय प्रशासन एक ऐसा कार्य नहीं है जिसे केवल अदालतों के भीतर ही पूरा किया जाता है। इसमें अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करना और सामाजिक न्याय को सुविधाजनक बनाना भी शामिल है। इसका मतलब है एक ऐसा मंच जहां पार्टियां प्रतिस्पर्धी अधिकारों का दावा कर सकती हैं। न्याय वितरण प्रणाली में समान पहुंच और भागीदारी सुनिश्चित होने पर ही सभी का विश्वास जीता जा सकता है।'
'स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत नहीं'
भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना ने कहा है कि राजनीतिक विरोध दुश्मनी में तब्दील हो रहा है और यह स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत नहीं है। कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन द्वारा राजस्थान विधानसभा में आयोजित एक कार्यक्रम में सीजेआई रमना ने आगे कहा कि सरकार और विपक्ष के बीच जो आपसी सम्मान हुआ करता था, वह अब कम होता जा रहा है। उन्होंने कहा, 'राजनीतिक विरोध को दुश्मनी में तब्दील नहीं करना चाहिए, जो हम इन दिनों दुखद रूप से देख रहे हैं। ये स्वस्थ लोकतंत्र के संकेत नहीं हैं।'
सीजेआई ने विधायी कामकाज की गुणवत्ता पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा,
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दुख की बात है कि देश विधायी कामकाज की गुणवत्ता में गिरावट देख रहा है। क़ानूनों को विस्तृत विचार-विमर्श और जांच के बिना पारित किया जा रहा है।
एनवी रमना, सीजेआई
इससे पहले शनिवार को ही जयपुर में 18वें अखिल भारतीय क़ानूनी सेवा प्राधिकरण के उद्घाटन सत्र में सीजेआई रमना ने जेलों में बंद कैदियों का मुद्दा उठाया। विचाराधीन कैदियों की ओर इशारा करते हुए सीजेआई ने आपराधिक न्याय प्रणाली की दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासन की दक्षता बढ़ाने के लिए एक समग्र कार्य योजना का आह्वान किया।
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