loader
गृह मंत्री अमित शाह के साथ हेमंत सोरेन। (फाइल फोटो)

क्या झारखंड में भी होगा ऑपरेशन लोटस?

राष्ट्रपति पद के यूपीए प्रत्याशी यशवंत सिन्हा रांची में थे। उनके प्रचार का यह आखिरी दिन था। झारखंड में यूपीए की सरकार है। लेकिन एक बड़ा फर्क साफ दिख रहा है। झारखंड में सरकार के नेतृत्वकर्ता घटक झामुमो से उन्हें समर्थन नहीं मिल रहा।

राष्ट्रपति चुनाव के बहाने यूपीए में इस बड़ी फूट के गहरे राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। खुद यशवंत सिन्हा ने जारी लिखित बयान में इसके साफ संकेत दिए। सिन्हा के अनुसार “सार्वजनिक जीवन के अपने लंबे करियर में मैंने कभी भी 'ऑपरेशन लोटस' को लोकतंत्र के लिए इतना ख़तरनाक नहीं देखा। अगर निकट भविष्य में झारखंड में झामुमो-कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने के लिए इसी तरह की गंदी रणनीति अपनाई जाए तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा।"

ताज़ा ख़बरें

यशवंत सिन्हा के इस बयान ने झारखंड में 'ऑपरेशन लोटस' को लेकर चर्चा का माहौल गर्म कर दिया है। झारखंड में झामुमो के नेतृत्व में कांग्रेस, राजद और वाम समर्थित सरकार चल रही है। लेकिन झामुमो ने राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू को आदिवासी के नाम पर समर्थन देने का निर्णय लिया है। इसे झामुमो की कांग्रेस से दूरी और बीजेपी से नज़दीकी के रूप में देखा जा रहा है।

हालाँकि कांग्रेस इस मामले में बेहद सावधान है। वह झामुमो को ऐसा कोई अवसर नहीं देना चाहती, जिससे इस सरकार में कोई फेरबदल किया जा सके। कांग्रेस के झारखंड प्रभारी अविनाश पांडेय ने इस मामले को बेहद सहज भाव से लिया। बोले- "हमारा गठजोड़ विधानसभा चुनाव को लेकर था। राष्ट्रपति चुनाव के लिए झामुमो कोई भी निर्णय लेने को स्वतंत्र है।"

हालाँकि राजनीतिक तौर पर यह बात गले उतरने वाली नहीं है। विपक्षी दलों के संयुक्त प्रत्याशी के नाते यशवंत सिन्हा को समर्थन देने के लिए झामुमो पर दबाव बनाना कांग्रेस की स्वाभाविक रणनीति होनी चाहिए थी। लेकिन इससे बचकर कांग्रेस ने राजनीतिक सहनशीलता का परिचय दिया है। अगर इस मामले में कांग्रेस फूंक फूंककर क़दम नहीं उठाएगी, तो झामुमो के लिए मौजूदा गठबंधन से बाहर निकलकर बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने की राह आसान हो जाएगी।

राजनीतिक तौर पर झामुमो के लिए द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की कोई बाध्यता नहीं है। वह आदिवासी ज़रूर हैं, लेकिन झारखंड के अधिकांश आंदोलनकारी आदिवासी नेताओं एवं बुद्धिजीवियों के अनुसार वह स्थानीय आदिवासियों का वास्तविक प्रतिनिधि चेहरा नहीं हैं।

झारखंड पांचवीं अनुसूची का राज्य होने के नाते राज्यपाल पर जनजाति समाज के हितों के संरक्षण का बड़ा दायित्व है। लेकिन इस दिशा में श्रीमती मुर्मू की कोई खास उपलब्धि गिनाना मुश्किल है। झारखंड के आधे से अधिक जिलों की पंचायतों में पेसा अधिनियम लागू है। लेकिन इस क़ानून के समुचित अनुपालन की दिशा में भी श्रीमती मुर्मू की कोई खास सफलता नहीं दिखती।

yashwant sinha on jharkhand hemant soren govt stability amid presidential poll - Satya Hindi

यही कारण है कि अगर झामुमो ने महज आदिवासी होने की वजह से उनका समर्थन करने के बजाय राजनीतिक मानदंड पर यशवंत सिन्हा का समर्थन किया होता, तो यह कोई मुश्किल काम नहीं था। झामुमो का जनाधार आज भी गुरूजी शिबू सोरेन के प्रति गहरी आस्था रखता है। द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने से इनकार करने पर झामुमो का एक भी वोट कम नहीं होता।

बहरहाल, राष्ट्रपति चुनाव के बहाने बीजेपी के नजदीक जाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बड़ा दांव खेला है। इससे कांग्रेस को भी दबाव में रखने का अवसर मिल गया है। हाल के दिनों में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तथा उनके नजदीक के लोगों पर विभिन्न आरोपों और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से जोड़कर इसे देखा जा रहा है।

झारखंड से और ख़बरें
यशवंत सिन्हा ने शनिवार को अपने बयान के ज़रिये झारखंड में झामुमो कांग्रेस सरकार के अस्थिर  होने की चर्चा गर्म कर दी है। महाराष्ट्र की तर्ज पर झारखंड में बीजेपी समर्थित झामुमो सरकार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। पहले भी झामुमो और बीजेपी की संयुक्त सरकार झारखंड में रह चुकी है। एक बार फिर हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाए रखते हुए कांग्रेस का स्थान अगर बीजेपी हासिल कर ले, तो कोई बड़ी बात नहीं।
yashwant sinha on jharkhand hemant soren govt stability amid presidential poll - Satya Hindi

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की दिलचस्पी झारखंड विधानसभा के बजाय लोकसभा की इस राज्य में 14 सीटों पर ज़्यादा रहती है। झारखंड की अधिकांश लोकसभा सीटें बीजेपी की झोली में आती रही हैं। बीजेपी की चिंता वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर है। अगर झारखंड में बीजेपी समर्थित सरकार होगी, तो लोकसभा चुनाव में पूरी प्रशासनिक मशीनरी अपने हाथ में होगी।

बहरहाल, राष्ट्रपति चुनाव ने झारखंड का राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया है। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे तो सबको मालूम हैं। लेकिन झारखंड सरकार की तसवीर क्या होगी, इस पर सबकी निगाहें हैं।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विष्णु राजगढ़िया
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

झारखंड से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें