सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात को लेकर सख्त नाराजगी जताई है कि राज्य सरकारों को विधानसभा से पारित विधेयकों को राज्यपाल से पास कराने के लिए बार-बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि राज्यपालों को यह समझना चाहिए कि वो चुनी हुई अथॉरिटीज नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि राज्य सरकारों के कोर्ट जाने के बाद ही राज्यपाल विधेयक पर कार्रवाई क्यों करते हैं? इस स्थिति को रोकना होगा।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली यह खंडपीठ पंजाब सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित पर आरोप है कि वे विधानसभा से पारित 7 विधेयकों को पास नहीं कर रहे हैं।
लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई के दौरान, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ को सूचित किया कि पंजाब के राज्यपाल ने विधेयकों पर "उचित निर्णय" लिया है और शुक्रवार तक विवरण देने का वादा किया है। तुषार मेहता पंजाब के राज्यपाल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। इस मामले में अब अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी।
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इस प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा है कि राज्य सरकार द्वारा न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के बाद ही राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने की प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए।सीजेआई ने सवाल किया कि "पार्टी को सुप्रीम कोर्ट क्यों आना पड़ता है? राज्यपाल तभी कार्रवाई करते हैं जब मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचते हैं। राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट आती हैं तो राज्यपाल कार्रवाई शुरू कर देते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसी ही स्थिति तेलंगाना राज्य में भी हुई थी, जहां राज्यपाल ने सरकार द्वारा रिट याचिका दायर करने के बाद ही लंबित विधेयकों पर कार्रवाई की थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील डॉअभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राजकोषीय प्रबंधन, जीएसटी में संशोधन, गुरुद्वारा प्रबंधन आदि से संबंधित महत्वपूर्ण विधेयक जुलाई में राज्यपाल के विचार के लिए भेजे गए थे और विधेयकों पर निष्क्रियता शासन व्यवस्था पर असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने अनियमितताओं का हवाला देते हुए इन विधेयकों पर विचार करना टाल दिया है।
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सदन बुलाने के तरीके की भी हुई आलोचना
लाइव लॉ की रिपोर्ट में बताया गया है कि, सीजेआई ने सदन बुलाने के तरीके की भी आलोचना की है। सदन को मार्च में अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया था लेकिन जून में फिर से बुलाया गया। सीजेआई ने कहा, "मार्च को विधानसभा बुलाई गई थी, फिर अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई। स्पीकर ने जून में विधानसभा की बैठक दोबारा बुलाई। क्या यह वास्तव में संविधान के तहत योजना है।इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इस तरह की प्रथा संवैधानिक योजना के खिलाफ है, क्योंकि एक बार स्थगित होने के बाद सदन को इस तरह से दोबारा नहीं बुलाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सदन को फिर से बुलाया गया है ताकि सदस्य "एक साथ मिल सकें और लोगों के साथ दुर्व्यवहार कर सकें और अपने विशेषाधिकार का दावा कर सकें"।
सीजे ने कहा कि सरकार और राज्यपाल दोनों को थोड़ी "आत्मा की खोज" करनी होगी। सीजेआई ने कहा, "हम सबसे पुराने लोकतंत्र हैं और इन मुद्दों को सीएम और राज्यपाल के बीच सुलझाया जाना चाहिए।"
इस सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केरल राज्य द्वारा राज्यपाल के खिलाफ दायर एक ऐसी ही याचिका का उल्लेख किया। “राज्यपाल उन विधेयकों पर कार्रवाई नहीं करते हैं जो लोगों के कल्याण के लिए पारित किए गए हैं।
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