बादल पर सवाल
एसजीपीसी सीधे-सीधे बादलों की सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल के हाथों में है और श्री अकाल तख़्त साहिब की प्रशासनिक व्यवस्था भी। इसीलिए कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल आम आदमी पार्टी (आप) ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार और एसजीपीसी के प्रधान की खालिस्तान की खुली हिमायत के बाद प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल और शिरोमणि अकाली दल को घेरा है।'रेफरेंडम 2020'
सुदूर विदेशों में, खासतौर से यूरोप में रेफरेंडम -2020 के तहत भारत-विरोधी अलगाववाद को हवा दी जा रही है और इस मुहिम को पंजाब में जड़ें देने के लिए करोड़ों रुपए की फंडिंग की जा रही है। यह सब खुलकर हो रहा है और खुद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इसे लेकर गंभीर हैं तथा इसके ख़िलाफ़ अक्सर चेताने वाले बयान देते रहते हैं।मुख्यमंत्री और डीजीपी के निर्देश पर पुलिस इस मुहिम और नेटवर्क को तोड़ने की कवायद में है। बादल परिवार रेफरेंडम-2020 की अगुवाई करने वाले अलगाववादियों एवं खालिस्तानियों के निशाने पर है।
खालिस्तान की हिमायत क्यों?
ऐसे में यक्ष प्रश्न है कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार और एसजीपीसी प्रधान ने खालिस्तान की खुली हिमायत कैसे और क्यों की? जबकि दोनों, बादल परिवार के इशारे के बगैर जुबान नहीं खोलते। जितना बड़ा यह सच है कि कभी अलगाववाद का समर्थन करते हुए प्रकाश सिंह बादल ने संविधान की प्रतियाँ तक जलाईं थीं।अकाली दल की मजबूरी!
इसके पीछे बेशुमार सियासी मजबूरियाँ हैं। सबसे बड़ी मजबूरी है यह कि शिरोमणि अकाली दल का सिर्फ सिख मतों के बूते सत्ता में आना संभव नहीं और हिंदू वोट इसके लिए अपरिहार्य हैं।बदले में बीजेपी को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह कहने और साबित करने का अवसर मिलता है कि देश का एक बड़ा अल्पसंख्यक (सिख) समुदाय उसके साथ है।
प्रकाश सिंह बादल पर दबाव
बेशक प्रकाश सिंह बादल पर उन्हीं के दल के नेताओं और आम कार्यकर्ताओं का ज़बरदस्त दबाव रहा है कि बीजेपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कोई रिश्ता रखना चाहिए। कुछ महीने पहले कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए तथा नागरिकता संशोधन विधेयक के मसलों पर यह दबाव बादलों पर बेतहाशा गहराया था और शिरोमणि अकाली दल में बाकायदा बगावत हुई थी।अब नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि अध्यादेश को लेकर भी प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल पर दबाव है कि बीजेपी से किनारा किया जाए।
इस समय बादलों के गले की फाँस दो दिग्गज पंथक शख्सियतों द्वारा की गई खालिस्तान की खुली हिमायत है। दोनों बादल परिवार के खासमखास हैं।
सफ़ाई माँगी
बादलों की हिदायत के बग़ैर एक लफ्ज़ तक अपनी मर्ज़ी से नहीं बोलते। इसीलिए कांग्रेस और 'आप' ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार और एसजीपीसी प्रधान के बयान पर सीधे शिरोमणि अकाली दल की टॉप लीडरशिप से सफाई माँगी है और खालिस्तान के मसले पर रुख साफ़ करने को कहा है। बीजेपी के पंजाब अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने भी खालिस्तान का समर्थन करने वाले ज्ञानी हरप्रीत सिंह की तीखी आलोचना करके बहुत कुछ कह दिया है।सक्रिय हुए अलगाववादी
उधर, श्री अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी प्रधान भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल के खालिस्तान के समर्थन में आने के बाद सोशल मीडिया पर अलगाववादी-खालिस्तानी जमकर सक्रिय हो गए हैं।रेफरेंडम-2020 के जरिए अलगाववाद को हवा दे रहे 'सिख फॉर जस्टिस' के मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू ने कुछ दिन पहले चीन के राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वह खालिस्तान का समर्थन करें और यह मामला संयुक्त राष्ट्र में उठाएँ।
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