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सिखों की ताक़तवर संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी ने शिरोमणि अकाली दल (बादल) के नेतृत्व से इस्तीफा मांगा है। यह इस्तीफा संगरूर में हुए उपचुनाव में अकाली दल (बादल) के बेहद खराब प्रदर्शन के बाद मांगा गया है। संगरूर के उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान को जीत मिली थी जबकि शिरोमणि अकाली दल (बादल) की उम्मीदवार कमलदीप कौर राजोआना पांचवे नंबर पर आई हैं और वह अपनी जमानत भी नहीं बचा सकीं।
एसजीपीसी के महासचिव करनैल सिंह पंजोली ने एक फेसबुक पोस्ट लिखकर कहा है कि वह संगरूर उपचुनाव में मिली जीत के लिए सिमरनजीत सिंह मान को बधाई देते हैं। उन्होंने कहा है कि मान की जीत पंथक सिद्धांतों और सिख विचारधारा की जीत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि मान सिखों से जुड़े मुद्दों को संसद में उठाएंगे और सिख पंथ और पंजाब के साथ हो रही कथित नाइंसाफी को लेकर भी आवाज बुलंद करेंगे।
एसजीपीसी में शिरोमणि अकाली दल (बादल) के सबसे ज्यादा सदस्य हैं और इस वजह से एसजीपीसी को शिरोमणि अकाली दल (बादल) ही चलाता है।
संगरूर में सिमरनजीत सिंह मान की जीत निश्चित रूप से पंजाब के लिए चिंता का विषय तो है ही, पंथक विचारधारा के मुद्दों पर अकाली दल (बादल) की हार होना भी एक गंभीर विषय है। 60 फ़ीसदी सिख आबादी वाले पंजाब में सिख धर्म से जुड़े मुद्दे बेहद संवेदनशील रहे हैं। पंजाब लंबे वक्त तक सिख आतंकवादियों के कारण कत्लेआम की चपेट में रहा है और कुछ महीने पहले भी गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के आरोप को लेकर कई लोगों की वहां पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर पंजाब में पहले भी खासा बवाल हो चुका है।
पंजाब की सिख राजनीति का असर इससे लगने वाले हरियाणा और दिल्ली तक होता है।
सिमरनजीत सिंह मान ने संगरूर का पूरा चुनाव पंथक मुद्दों पर ही लड़ा और 23 साल बाद उन्हें जीत भी हासिल हो गई। उन्होंने जीत के बाद मारे गए पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की मौत का जिक्र किया और कहा कि इस हत्याकांड से पंजाब के लोग बहुत नाराज हैं। जबकि मूसेवाला का गाना एसवाईएल के बोल कहीं से भी पंजाब की बेहतरी के लिए नहीं दिखाई देते।
लेकिन बादलों की अगुवाई वाले अकाली दल ने भी संगरूर में खुलकर पंथक कार्ड खेला था और पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की बहन कमलदीप कौर राजोआना को उम्मीदवार बनाया था। अकाली दल (बादल) ने जेलों में बंद सिखों की रिहाई के मुद्दे को भी चुनाव में जोर-शोर से उछाला था लेकिन फिर भी उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा।
बता दें कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भी अकाली दल (बादल) का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और उसे सिर्फ 3 सीटों पर जीत मिली और उसके सबसे बड़े नेता प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल भी चुनाव हार गए। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अकाली दल को सिर्फ 17 सीटों पर जीत मिली थी और इस बार के चुनाव नतीजों के बाद माना जा रहा है कि पार्टी का मुस्तकबिल अंधेरे में है। पंजाब के बाहर अकाली दल का कोई जनाधार भी नहीं है। हरियाणा और दिल्ली में अकाली दल के पास गिने-चुने कार्यकर्ता हैं।
विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद पार्टी की ओर से बनाई गई एक कमेटी ने सुझाव दिया था कि पार्टी में एक परिवार एक टिकट का नियम लागू किया जाना चाहिए। इसे बादल परिवार के खिलाफ नाराजगी का संकेत माना गया था क्योंकि शिरोमणि अकाली दल (बादल) में सरकार और संगठन की कमान प्रकाश सिंह बादल, उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल के हाथ में रही है। प्रकाश सिंह बादल की बहू हरसिमरत कौर बादल केंद्र सरकार में मंत्री रहने के साथ ही वर्तमान में सांसद हैं और सुखबीर सिंह बादल के साले बिक्रम सिंह मजीठिया भी अकाली दल की राजनीति में गहरा दखल रखते हैं।
अकाली दल (बादल) के खिलाफ उनकी सरकार के दौरान 2015 में हुए गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी कांड, बहबल कलां में हुई फायरिंग में लोगों की मौत होने के साथ ही सुमेध सैनी को पंजाब का डीजीपी बनाए जाने और 2017 के विधानसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा का राजनीतिक सहयोग लिए जाने को लेकर भी सिखों के एक वर्ग में नाराजगी की बातें आती रही हैं।
इस सबके बीच पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार को लेकर यह आरोप लगना कि यह दिल्ली से चल रही है और मुख्यमंत्री भगवंत मान रबर स्टांप हैं, यह पंजाब में उन लोगों को बहुत रास आता है जो पंजाब बनाम दिल्ली की लड़ाई को जिंदा रखना चाहते हैं और इसकी आड़ में कट्टरपंथियों को भड़काते हैं।
संगरूर में उपचुनाव के नतीजों से पहले अकाली दल (बादल) इस बात का दावा करता था कि पंजाब के अंदर कोई अन्य अकाली राजनीतिक पार्टी पंथक के मुद्दों की अगुवाई नहीं कर सकती लेकिन सिमरजीत सिंह मान ने संगरूर में जीत हासिल कर अकाली दल (बादल) को मुश्किल में डाल दिया है। अब अकाली दल (बादल) के शीर्ष नेतृत्व से इस्तीफा मांगा जाना निश्चित रूप से पार्टी के लिए चिंता का विषय है।
लेकिन एसजीपीसी के महासचिव के द्वारा पार्टी नेतृत्व से इस्तीफा देने के लिए कहना और सिमरनजीत सिंह मान की जीत को पंथक सिद्धांतों और सिख विचारधारा की जीत बताना और भी गंभीर चिंताएं खड़ी करता है।
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