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बीते कई महीनों से पंजाब कांग्रेस में खासी उथल-पुथल मचाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार नहीं दिखते। जिस दिन से चन्नी मुख्यमंत्री बने हैं, सिद्धू ने उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोला हुआ है। इससे पहले यही काम उन्होंने अमरिंदर सिंह के साथ किया था।
निश्चित रूप से जिस तरह का व्यवहार सिद्धू कर रहे हैं, उससे पंजाब में कांग्रेस की लुटिया डूबने से कोई नहीं बचा सकता। क्योंकि अमरिंदर सिंह जा चुके हैं, सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष जैसे अहम पद पर होने के बावजूद अपने ही मुख्यमंत्री से भिड़े हुए हैं, ऐसे में पार्टी कैसे चुनाव में जीत दर्ज करेगी।
हरीश रावत जैसे सरल स्वभाव के नेता से लेकर कांग्रेस हाईकमान तक सिद्धू के नाज-नखरों को उठाते-उठाते थक चुका है, बावजूद इसके सिद्धू चन्नी के साथ एक मंच पर आकर काम करने के लिए तैयार नहीं दिखते।
ताज़ा वाकया बुधवार का है। इस दिन भगवान वाल्मीकि की जयंती थी। पंजाब में इस जयंती को बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। मुख्यमंत्री चन्नी इस दिन अमृतसर में भगवान वाल्मीकि की तपोस्थली रामतीर्थ में पहुंचे। उनके साथ सरकार के कई मंत्री, पार्टी नेता, कार्यकर्ता भी मौजूद रहे।
सिद्धू अमृतसर से सांसद रहे हैं, उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू अमृतसर (पूर्व) से विधायक रही हैं लेकिन इसके बाद भी न तो सिद्धू, न उनकी पत्नी और न ही सिद्धू के खेमे का कोई नेता कार्यक्रम में दिखाई दिया।
जबकि चुनाव से ठीक पहले ऐसे बड़े कार्यक्रमों में सरकार और संगठन आमतौर पर साथ ही दिखाई देते हैं। लेकिन सिद्धू और उनका पूरा खेमा ग़ैर-हाजिर रहा। इससे विरोधी दलों में क्या संदेश गया।
यही कि पंजाब में कांग्रेस संगठन और सरकार के बीच दूरी बरकरार है और चुनाव तक ऐसा ही माहौल बना रहा तो कांग्रेस की विदाई और उनके सत्ता में आने की संभावना और मजबूत हो जाएगी।
कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री चन्नी के बेटे की शादी थी, इसमें भी कांग्रेस के तमाम मंत्री और नेता शामिल हुए थे लेकिन सिद्धू नहीं आए।
निश्चित रूप से किसी संगठन में रहते हुए इस तरह का व्यवहार नाकाबिले बर्दाश्त है। यहां पर कांग्रेस हाईकमान की भी मजबूरी समझनी होगी। वह पंजाब को खोना नहीं चाहता, वरना उसकी ताक़त और घट जाएगी। सिद्धू के कारण हाईकमान पहले ही अपना बहुत नुक़सान करा चुका है।
अमरिंदर के तमाम गंभीर आरोपों के बाद भी हाईकमान ने सिद्धू से कहा कि वह बतौर अध्यक्ष काम करें लेकिन सिद्धू हैं कि चन्नी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने को तैयार नहीं दिखते।
सिद्धू को इस बात को स्वीकार करना ही होगा कि चन्नी पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। चन्नी कांग्रेस में सिद्धू से कहीं पुराने हैं और कांग्रेस हाईकमान उन्हें पंजाब में अहम जिम्मेदारियां देता रहा है। लेकिन सिद्धू सारे पद, सारी तवज्जो ख़ुद के लिए ही चाहते हैं।
निश्चित रूप से सिद्धू की इन हरक़तों की वजह से शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी और बीजेपी के नेताओं के मन में लड्डू फूट रहे हैं।
अकाली दल के नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा इंडिया टुडे से कहते हैं कि जब से चन्नी मुख्यमंत्री बने हैं, सिद्धू के चेहरे पर एक बार भी ख़ुशी देखने को नहीं मिली है। चीमा कहते हैं कि सिद्धू किसी भी क़ीमत पर मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन कांग्रेस का ही कोई भी नेता उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था।
सिद्धू के तेवरों को देखकर नहीं लगता कि वे जल्दी शांत होंगे। अगर शांत हो भी गए तो पंजाब चुनाव में टिकट बंटवारे में सिर्फ़ अपनी चलाने की कोशिश करेंगे।
लेकिन चन्नी किसी भी सूरत में इस बात को बर्दाश्त नहीं करेंगे कि पार्टी में कल आए सिद्धू उन्हें दबाने की कोशिश करें क्योंकि उन्हें मुख्यमंत्री हाईकमान ने बनाया है, सिद्धू ने नहीं।
ऐसे में पंजाब की अवाम भी कांग्रेस से दूर चली जाएगी क्योंकि पिछले एक साल से पार्टी के अंदर लगातार झगड़ा चल रहा है और विरोधी दलों के नेताओं, मीडिया के जरिये अवाम तक सूचना पहुंच रही है कि कांग्रेस में तो नेता दिन-रात आपस में ही लड़ रहे हैं, इन्हें लोगों की परेशानियों से कोई मतलब नहीं है।
और इस लड़ाई-झगड़े का एक ही किरदार है। वह हैं सिद्धू। सिद्धू को पहले अमरिंदर सिंह से दिक्क़त थी, अब चन्नी से है। उनकी टीस यही है कि उन्हें मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया। एक वीडियो में वे इस बात को कह भी चुके हैं।
इससे साफ पता लगता है कि सिद्धू जिस पंजाबियत और पंजाब के लिए अपने एजेंडे की बात करते हैं, वह हक़ीक़त कम दिखावा ज़्यादा है। उन्हें किसी भी सूरत में पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहिए और इसके लिए उन्हें जिसका विरोध करना पड़ा वे करेंगे और पूरी ताक़त के साथ करेंगे।
हाल ही में जब सिद्धू का अपशब्द कहने वाला वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह यह भी कह रहे थे कि कांग्रेस मरने वाली हालत में है, उसके बाद पंजाब कांग्रेस के कई नेता चाहते थे कि सिद्धू के ख़िलाफ़ कार्रवाई हो। क्योंकि इससे कार्यकर्ताओं के बीच ग़लत संदेश जा रहा था और कोई भी निष्ठावान नेता नहीं चाहेगा कि सिद्धू की वजह से पार्टी को कोई नुक़सान हो।
अंत में यही कहा जा सकता है कि ‘ईंट से ईंट बजा दूंगा’ की बात कहने वाले सिद्धू पार्टी के लिए गड्ढा खोदने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
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