प्रकाश सिंह बादल की सरपरस्ती और सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई वाला शिरोमणि अकाली दल इन दिनों खासा खस्ताहल है। अकाली दल की इतनी बुरी दशा कभी नहीं रही; जितनी आज है। छह साल पहले तक बहुमत के साथ सत्ता में रहा शिरोमणि अकाली दल मौजूदा विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में भी नहीं है। 117 सदस्यों में से उसके सिर्फ़ तीन विधायक हैं। उनमें भी बगावत की सुगबुगाहट है। ग्रामीण पंजाब में पुख्ता आधार रखने वाला शिरोमणि अकाली दल वहां भी भोथरा हो गया है। चौतरफा करारी शिकस्त के बाद अब सूबे की इस सबसे पुरानी पार्टी को 'पंथक एजेंडों' का सहारा है।

पंजाब में अपनी राजनीतिक जमीन के लिए संघर्ष कर रहे शिरोमणि अकाली दल ने क्या अपनी रणनीति बदल ली है? आख़िर सुखबीर सिंह बादल कट्टरपंथियों के क़रीब क्यों दिखने लगे हैं?
वैसे भी उसकी पहचान राज्य के पुराने (सिख) दक्षिणपंथी दल के रूप में रही है। इसीलिए राष्ट्रीय स्तर पर दक्षिणपंथी राजनीतिक दल भाजपा के साथ उसका लंबा गठजोड़ रहा है जो लगभग डेढ़ साल पहले टूट गया था। पंथक एजेंडों को लेकर ही वह इन दिनों भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मुकाबिल है। इतिहास गवाह है कि जब-जब राज्य में शिरोमणि अकाली दल कमजोर स्थिति में आया, तब-तब उसने कभी खुलकर तो कभी अपरोक्ष रूप से कट्टरपंथ का सहारा लिया। अकाली सुप्रीमो सांसद सुखबीर सिंह बादल अब यही राह अख्तियार कर रहे हैं। बेशक शायद वह इस तथ्य से अनजान हैं कि साधारण पंजाबी सिखों में वैसी कट्टरता की अब कोई जगह नहीं रही जिसे 90 के दशक तक शिरोमणि अकाली दल हवा देता रहा।