जिन्होंने पंजाब के दशक 80 का दौर देखा है, वे बखूबी जानते हैं कि उन दिनों प्रेस और बीबीसी रेडियो तथा अन्य विदेशी रेडियो में एक नाम खबरों में खूब छाया रहता था। वह नाम था संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला का। जिन्होंने अमृतसर स्थित विश्वप्रसिद्ध गोल्डन टेंपल को अपना ठिकाना बनाया हुआ था। भारत सरकार से उनके टकराव की कहानियों पर विभिन्न भाषाओं में हजारों किताबें हैं और गूगल का सर्च इंजन भरा पड़ा है। जून-84 में टकराव इस कदर बढ़ गया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गोल्डन टेंपल में संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला उनके वहां मोर्चाबंदी किए हुए हथियारबंद समर्थकों को मार गिराने के लिए फौज भेजी। उस संघर्ष में भिंडरांवाला तथा उसके साथी मारे गये। इंदिरा गांधी की उनके ही सुरक्षाकर्मियों द्वारा हत्या कर दी गई। इस घिनौनी घटना के बाद भयावह सिख नरसंहार हुआ और उसमें हजारों सिख बेरहमी के साथ कत्ल कर दिए गए।
धीरे-धरे दुनिया बदली और सिखों की सोच भी। नई पीढ़ी अब सिर्फ इंटरनेट के जरिए जानती है कि 1984 में क्या हुआ था। बहुतेरे लोग उन जख्मों को भूल भी गए और अपने कामकाज में लग गए। देश-विदेश में मुट्ठी भर लोग जरूर हैं जो अभी भी संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला को अपना नायक अथवा आदर्श मानते हैं तथा खालिस्तानी अलगाववाद की बात करते हैं। ऐसे लोगों की तादाद पंजाब में कमोबेश कम और विदेशों में ज्यादा है। साजिशन अब पंजाब की हवा बदलने की कोशिश की जा रही हैं।
पंजाब में बीते साल के सितंबर में दुबई से आया 29 साल का एक युवा अचानक नमूदार हुआ। सूबे के जिला मोगा में एक गांव है रोडे। दुनिया इस गांव को इसलिए भी जानती है कि यह भिंडरांवला का पुश्तैनी गांव है और अब इस गांव में उनकी याद में 'संत खालसा' नाम का एक गुरुद्वारा बना हुआ है। 29 सितंबर 2021 को इस गुरुद्वारे के पास हजारों की तादाद में भीड़ जुटती है, जो खालिस्तान जिंदाबाद और 'शहीद' भिंडरांवला अमर रहे के नारे लगाती नहीं थकती। मंच पर आकर्षण का केंद्र बिंदु दो लोग होते हैं। एक, संगरूर से सांसद सिमरनजीत सिंह मान और दूसरा एक नौजवान जिसका नाम है अमृतपाल सिंह!
29 सितंबर 2022 को इसी अमृतपाल सिंह नाम के अनजान से युवा को अमृतपान करवा कर इसकी दस्तारबंदी की गई। जो चोला (पोशाक) इसने पहनी थी, वह हुबहू वैसी थी जैसी भिंडरांवला पहना करता था। वहां मौजूद लोगों को एकबारगी लगा कि भिंडरावाला का कोई 'अवतार' नमूदार हुआ है। वेशभूषा ही वैसी नहीं बल्कि जुबान की तल्खी भी ठीक वैसी। दस्तारबंदी के बाद अमृतपाल सिंह ने उसी अंदाज में भाषण दिया और जोर देकर कहा कि सिख समुदाय 'गुलाम' है और भारतीय संघ से कैसे भी टकराव के साथ इसे 'मुक्त' करवाना होगा। अमृतपाल जब यह सब बोल रहा था तब भीड़ में से कई लोगों के अलगाववादी नारों की आवाज और ज्यादा तेज हो गई। यानी 29 साल का एक युवा अचानक पंजाब और दुनिया को भिंडरांवाला के बिसरा दिए गए वक्त को अचानक वापस ले आया।
यह तब की बात है, जब पंजाब में खालिस्तान स्थान के लिए सशस्त्र संघर्ष की बात करने वाले हाशिए पर थे और राज्य के चप्पे-चप्पे में 'गैंगस्टर कल्चर' फैल रहा था। गांव-घरों में गैंगस्टर्स की बातें होती थीं और अचानक अमृतपाल सिंह की होने लगीं। जिस मंच से अमृतपाल सिंह ने अपना पहला विवादास्पद बड़ा भाषण दिया, उसी मंच से (शहीद भगत सिंह को आतंकवादी बताने वाले) सांसद सिमरनजीत सिंह मान ने कहा कि आज हमें 'दूसरा संत' मिल गया है और गैंगस्टर्स को अपनी राह छोड़कर अमृतपाल सिंह की राह अख्तियार करना चाहिए जो सिख संघर्ष की बात करता है और अमृत संचार मुहिम को दूर-दूर तक लेकर जाना चाहता है। अमृत संचार यानी विपथगा (मान और अमृतपाल के शब्दों में) सिखों को अमृत छकाने की मुहिम। 29 सितंबर 2022 को रोडे में हुए समागम की खबरे रातों-रात पंजाबी सोशल मीडिया पर छा गईं और नए पेज बनाने का सिलसिला शुरू हो गया जो आज तलक जारी है। अमृतपाल का हर जगह मुख्य कथन अथवा प्रलाप रहता है कि, "सिखों को अपनी आजादी के लिए लड़ना होगा। हमें गुलामी से आजाद कराने के लिए संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला ने कुर्बानी दी है। यह नहीं भूलना चाहिए।"
पहली बार (गांव रोडे में) जब 'भविष्य की जंग' हथियारों से लड़ने की बात की जा रही थी तो उस समय वहां केंद्र और राज्य सरकार, दोनों की खुफिया एजेंसियों के लोग भी थे। स्थानीय मीडिया ने तो पूरी तरजीह के साथ घटनाक्रम कवर किया लेकिन खुफिया एजेंसियों की चंडीगढ़ तथा दिल्ली भेजी गईं इनपुट रिपोर्ट्स का क्या हुआ, कोई नहीं जानता। अमृतपाल सिंह की भाषा निरंतर सीमाएं तोड़ रही है लेकिन इस सब पर केंद्र और राज्य सरकार की उपेक्षा हैरान करने वाली है। जहां आनन-फानन में बेगुनाहों पर भी राजद्रोह के मुकदमे आज भी दर्ज होते हों पत्रकारों से नाराज होकर सरकार उपसा के तहत मामले दर्ज करती हो। क्या वहां इतना कह देना काफी है कि अमृतपाल सिंह की गतिविधियों पर हमारी नजर है? सरकारी तौर पर यही कहा गया।
लंबे वक्त तक तो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया से लेकर स्थानीय पंजाबी तक यही जानने की कवायद करते रहे कि आखिर यह अमृतपाल सिंह है कौन? साल भर पहले तक तो किसी ने इसका नाम तक नहीं सुना था। पुलिसिया एवं खुफिया फाइलों में भी इसका नाम कहीं दर्ज नहीं था।
धीरे-धीरे जानकारी बाहर आई कि नया-नया 'खालसा' बना अमृतपाल सिंह, अमृतसर जिले के गांव जल्लूपुर खेड़ा का रहने वाला है। उसने बाहरवीं जमात तक पढ़ाई की है। कुछ साल पहले अपने परिवार के साथ वह दुबई चला गया था और वहां ट्रांसपोर्ट का अच्छा-खासा कारोबार है। आपको एक नाम याद होगा, 'दीप सिद्धू'। दीप सिद्धू पंजाब से वकालत के लिए मुंबई गया था और वहां किसी बड़े संदर्भ के साथ अभिनेता तथा गुरदासपुर से सांसद सन्नी देओल के करीब आ गया। उसने खुद अपने पैसे से दो पंजाबी फिल्में बनाईं, जो ठीक-ठाक चलीं। इस बीच दिल्ली बॉर्डर पर पंजाब के किसानों ने पक्का मोर्चा लगा लिया तो शिरकत के लिए दीप सिद्धू ने भी वहां डेरा जमा लिया। लाल किले पर केसरिया झंडा लहराने तथा वहां हुई हिंसा का मुख्य आरोपी बनने के बाद वह और ज्यादा सुर्खियों में आ गया। अलबत्ता मोर्चाबंद किसान जत्थेबंदियों ने उसे अलहदा कर दिया। उसी दौरान उसने (सितंबर 2021) 'वारिस पंजाब दे' नामक संस्था बना ली।
इधर जीत हासिल करने के बाद किसान मोर्चा खत्म हुआ और उधर हरियाणा में एक दुर्घटना में दीप सिद्धू की जान चली गई। उसके समर्थक और परिजन इसे दुर्घटना नहीं बल्कि दीप सिद्धू की हत्या के लिए रची गई साजिश बताते हैं। दीप सिद्धू की अचानक मौत के बाद 'वारिस पंजाब दे' के कई तथाकथित 'वारिस' उभर आए। क्योंकि इस संस्था को देश-विदेश से अच्छी फंडिंग हो रही थी। दुबई से छह साल के बाद वतन और पंजाब लौटे अमृतपाल सिंह ने भी 'वारिस पंजाब दे' पर दावेदारी जता दी। लेकिन संस्था के लोगों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। अपनी दावेदारी की बाबत वह सांसद सिमरनजीत सिंह मान से भी मिला, दीप सिद्धू जिनका बड़ा प्रशंसक था। बताते हैं कि मान से उसने कहा कि वह दीप का बहुत अच्छा दोस्त था और उसे आर्थिक मदद भी देता था। मान ने अमृतपाल सिंह का समर्थन किया और 'वारिस पंजाब दे' का 'जत्थेदार' बनवाने का वादा भी।
जबकि दीप सिद्धू के परिवार का कहना है कि वे तो इस बात से सरासर अनभिज्ञ हैं कि अमृतपाल नाम का कोई शख्स दीप को जानता भी था! करीबी दोस्ती तो बहुत दूर की बात है। दीप सिद्धू के भाई मनदीप सिंह सिद्धू कहते हैं, "हम अमृतपाल से कभी नहीं मिले और पक्का विश्वास है कि दीप भी नहीं मिला था। दुबई से एकाध बार अमृतपाल का फोन जरूर सिद्धू को आया था लेकिन बाद में उसने उसका नंबर ब्लॉक कर दिया था। हम सिर्फ इतना अनुमान लगा सकते हैं कि वह दीप सिद्धू का प्रशंसक होगा और उसे उसके सोशल मीडिया अकाउंट का एक्सेस मिल गया होगा, वह वहां पोस्ट करने लगा था। हमें यह बर्दाश्त नहीं कि कोई दीप सिद्धू या हमारे परिवार का नाम समाज विरोधी तथा अलगाववादी गतिविधियों के लिए इस तरह इस्तेमाल करे।"
नाम न देने की शर्त पर कुछ विशिष्ट लोग पूछते हैं कि आखिर क्या वजह है कि दीप सिद्धू परिवार ने अमृतपाल सिंह के खिलाफ कोई कानूनी एक्शन नहीं लिया? इसके पीछे क्या राज और दबाव है?
अमृतपाल भी स्वीकार करता है कि वह दीप सिद्धू के परिवार से तो कभी नहीं मिला लेकिन उसकी सोच का सच्चा पहरेदार जरूर है। अब अमृतपाल मीडिया को सहज उपलब्ध नहीं है लेकिन शुरुआती दिनों में स्थानीय चैनलों पर वह दिन में कई बार दिखाई देता था। अनेक सोशल मीडिया फ्रंट पर भी।
आखिरकार 29 सितंबर 2022 को जब संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले की स्मृति में उनके पुश्तैनी गांव रोडे में बने गुरुद्वारे के पास अमृतपाल सिंह ने अमृत पान किया और दस्तारबंदी ली तो सांसद सिमरनजीत सिंह मान की उपस्थिति में घोषणा कर दी गई कि आज के बाद 'वारिस पंजाब दे' का असली 'जत्थेदार' अमृतपाल सिंह ही होगा। तब से वह जत्थेदार बनकर ही पंजाब में विचर रहा है। दीप सिद्धू के बनाए इस संगठन का सर्वेसर्वा वही है और बाकी दावेदार तथा सिद्धू का परिवार खामोश हो गए हैं।
गौरतलब है कि अमृतपाल सिंह खालसा की भाषा-बोली ही तल्ख़ नहीं है बल्कि उसकी अगुवाई में जारी कारगुजारियां भी कहीं न कहीं हिंसा के निकट हैं। एक दिन अचानक उसने आदेश दिया कि गुरुद्वारों में विकलांगों तथा वृद्धों के लिए रखी गईं कुर्सियां हटा दी जाएं। उसके समर्थकों की फौज ने तत्काल इस आदेश का पाालन करते हुए कुर्सियों को उखाड़कर उन्हें आग के हवाले कर दिया। बड़े-बड़े गुरुद्वारों में यह किया गया।
उदारवादी सिखों में इसे लेकर अमृतपाल सिंह के खिलाफ तगड़ी नाराजगी है। वैसे भी ऐसे आदेश पारित करना और उन्हें लागू करवाना शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) का काम है। गुरुद्वारों में कुर्सियां उन श्रद्धालुओं के लिए रखी जाती हैं, जो स्वास्थ्यय कारणों से नीचे दरी पर नहीं बैठ सकते। अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने जब यह 'उत्पाद' मचाया, तब सरकार खामोश रही लेकिन शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता बिक्रमजीत सिंह मजीठिया ने इसकी आलोचना की और एसजीपीसी प्रधान ने कुछ गुरुद्वारों का दौरा किया लेकिन अमृतपाल सिंह खालसा के खिलाफ कुछ नहीं कहा। मतलब साफ है कि अब सरेआम अलगाववाद, हर सिख को शस्त्र रखने की नसीहत देने वाला और खालिस्तान की बात करने वाला अमृतपाल सिंह खुद को पंथक संस्थाओं तथा कानून से ऊपर समझने लगा है और यही 1980 के बाद संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला ने किया था, जिसका खामियाजा पूरी सिख कौम को दशकों तक भुगतना पड़ा।
एक और तथ्य पर भी गौर कीजिए--संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला वामपंथियों को अपना बड़ा दुश्मन मानता था और अमृतपाल सिंह भी ठीक उसी तर्ज पर वामपंथियों को गरियाता है। पक्की बात है कि उसे मार्क्सवाद का 'क ख ग' भी नहीं मालूम लेकिन इतना पता है कि मार्क्सवादी; कट्टरपंथियों का विरोध करते हैं।
सबसे सुलगता सवाल यह है कि आखिर अमृतपाल सिंह खालसा अगर मोहरा है तो किसका? 'इंडियन एक्सप्रेस' के ब्यूरो चीफ के तौर पर लंबा अरसा पंजाब की सियासत को करीब से देखने वाले बेबाक पत्रकार जगतार सिंह कहते हैं, “अमृतपाल का हर कदम स्क्रिप्टेड लग रहा है। उसके सलाहकारों की टोली में वही लोग हैं जो कभी आतंकियों के सलाहकार थे। यह पंजाब और सिखों के लिए बेहद नागवार है।"
गैंगस्टर लहर को काबू करने के लिए सख्त शासनादेश है कि पंजाब में तमाम लाइसेंसी हथियार थानों में जमा करवाए जाएं। लाखों लोगों ने करवाए भी लेकिन अमृतपाल सिंह के साथ उसके जो समर्थक चलते हैं, वे आधुनिक हथियारों से लैस होते हैं। क्या उनपर कानून की शक्ल वाला यह शासनादेश लागू नहीं होता? सरकारी तौर पर इसका जवाब नदारद है!
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और कार्यकारी पुलिस महानिदेशक गौरव यादव एकाध बार यह कहकर चुप हो गए कि कोई गैरकानूनी कार्रवाई में संलिप्त पाया गयाा तो कानून अपना काम करेगा। लोगों का सवाल है कि शासन-व्यवस्थाा चलाने वालों का इतना भर कह देना काफी है? पर्दे के पीछे कोई तो है जो अमृतपाल सिंह को 'दूसरा भिंडरांवाला' बना रहा है!
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