क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
एडिशनल सॉलीसिटर जनरल के. एम. नटराजन ने मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अगुआई में बनी तीन-सदस्यीय बेंच से कहा कि गृह मंत्रालय ने इस फ़ाइल को प्रोसेस कर संबंधित व्यक्ति के पास भेज दिया है। इस पर बेंच ने कहा कि '26 जनवरी के पहले राजोआना को कोई राहत दे दीजिए। उसके पहले कोई फ़ैसला ले लीजिए, इसके लिए यह अच्छा दिन है।' इस मामले पर अगली सुनवाई 25 जनवरी को होगी।मुक़दमा लड़ने से इनकार
सीबीआई की विशेष अदालत ने 1 अगस्त, 2007 को राजोआना को मौत की सज़ा सुनाई। इसी मामले में जगतार सिंह हवारा को भी मौत की सज़ा सुनाई गई थी, पर 2010 में उसकी सज़ा घटा कर उम्रक़ैद में तब्दील कर दी गई। राजोआना की मौत की सज़ा को बरक़रार रखा गया और उसे 31 मार्च 2012 को फाँसी देना तय हुआ। राजोआना ने दया याचिका दायर नहीं की थी, पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने यह याचिका दायर की थी। इसे देखते हुए राजोआना की सज़ा टाल दी गई।राजोआना ने आतंकवादी हमले में शामिल होने की बात क़बूली और मुक़दमा लड़ने से इनकार कर दिया था। उसने कहा था कि सिख विरोधी दंगे के दोषियों को जिस न्यायपालिका ने सज़ा नहीं दी, उस पर उसे भरोसा नहीं है, वह न्यायपालिका उसके साथ भी न्याय नहीं करेगी।
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मैं फाँसी पर लटकने को तैयार हूँ और जिंदा तब तक हूँ, जब तक ईश्वर की इच्छा है। मौत की सज़ा पर रोक लगाने को मेरी कमज़ोरी न समझी जाए। मैं इस पर खुश नहीं हूँ। मैं इस पर खुश ज़रूर हूँ कि इस घटना ने पूरे क़ौम को जगा दिया है और दिल्ली की दीवालों को ज़ोरदार झटका दिया है।
बलवंत सिंह राजोआना, बेअंत सिंह हत्या में सज़ायाफ़्ता क़ैदी
मामला अफ़ज़ल गुरु का
राजोआना की सज़ा कम किए जाने पर कश्मीरी आतंकवादी अफ़जल गुरु का मामला उठना स्वाभाविक है। अफ़जल गुरु को संसद पर हमले के मामले में गिरफ़्तार किया गया था। इस हमले में सुरक्षा बलों के 8 लोगों के अलावा एक माली भी मारा गया था। इसके अलावा 16 लोग ज़ख़्मी हुए थे।कई मानवाधिकार संगठनों का कहना था कि अफ़ज़ल गुुरू के साथ न्याय नहीं हुआ, क्योंकि उसके मामले की सुनवाई ठीक से नहीं हुई थी। इनका मानना था कि पुलिस ने पूरे मामले की जाँच भी ठीक से नहीं की थी।
क्या कहा था बीजेपी ने?
भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर मुसलमानों के तुष्टिकरण करने का आरोप लगाया था। उसने पूरे देश में प्रचारित किया था कि कांग्रेस सरकार मुसलमानों को खुश कर उनका वोट पाने के लिए ही इस मामले में देरी कर रही है। लालकृष्ण आडवाणी ने 12 नवंबर, 2006 को ही कहा था, ‘इस मामले में देरी की बात मैं नहीं समझ पा रहा हूँ। सरकार ने मेरी सुरक्षा बढ़ा दी है, पर ज़रूरत इस बात की है कि अदालत के फ़ैसले को तुरन्त लागू किया जाए।’“
जो लोग यह माँग कर रहे हैं कि अफ़ज़ल गुरु को मौत की सज़ा न दी जाए, वे लोगों की भावनाओं से तो खेल रहे ही हैं, आतंकवादियों का मनोबल भी बढा रहे हैं।
प्रकाश जावड़ेकर, बीजेपी नेता
नरेंद्र मोदी उस समय गुजरात के मुख्य मंत्री थे। उन्होंने अफ़ज़ल को फाँसी देने में हो रही देरी का बार-बार विरोध किया था और कांग्रेस की आलोचना करते रहे। गुरु को सजा-ए-मौत दिए जाने के बाद उन्होंने कहा था, ‘भले ही इसमें देरी हुई, पर देर होना नही होने से बेहतर है।’
अफ़ज़ल बनाम राजोआना
जहाँ अफ़ज़ल गुरु अंत तक ख़ुद को निर्दोष बताता रहा, मानवाधिकार संगठनों और कुछ वकीलों ने भी कहा कि उसकी सुनवाई ठीक से नहीं हुई, वहीं राजोआना ने खुले आम स्वीकार किया कि वह हमले में शामिल था। अफ़ज़ल की याचिका को खारिज कर दिया गया, पर राजोआना ने खुद तो याचिका देने से इनकार कर ही दिया, उसने मौत की सज़ा पर रोक लगने के बाद भी कहा कि वह इससे खुश नहीं है।क्या इससे ख़ालिस्तानियों को बल नहीं मिलेगा ? ख़ालिस्तानी आंदोलन से जुड़े पाकिस्तानी नागरिक गोपाल सिंह चावला से मुलाक़ात करने पर कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू की ज़बरदस्त आलोचना करने वाली बीजेपी एक आतंकवादी को छूट देने का फ़ैसला कैसे कर सकती है?
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