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प्रतीकात्मक तस्वीर

इसी देश में सभी धर्म के लोग मिलकर बनवा रहे मस्जिदें!

जहाँ कई राज्यों में मुस्लिम नाम वाली जगहों के नाम बदलने की कोशिशें की जा रही हैं, जहाँ सोशल मीडिया पर नफरत की बाढ़ आई हुई है, वहीं पंजाब के सरहदी इलाक़ों में सद्भाव की मिसाल दिखती है। जिन सरहदी इलाकों को 1947 वाले बँटवारे का सबसे गहरा जख्म मिला था वहाँ अब सांप्रदायिक सद्भाव का मरहम लगाया जा रहा है। बँटवारे के बाद से उजड़ी हुई मस्जिदों का पुनर्निर्माण कराया जा रहा है। मस्जिद बनाने के लिए दूसरे धर्मों के लोग भी ज़मीन दान और आर्थिक मदद दे रहे हैं। 

पूरे पंजाब के गाँवों में विभाजन से पैदा हुए हालात को अब बदलने की कोशिश है। ऐसी कोशिश खास तौर पर सांप्रदायिक सौहार्द को लेकर है। ग्रामीण उजड़ी हुई मस्जिदों को बहाल करने में मदद करने के लिए धन और गुरुद्वारे खोल रहे हैं। ऐसी मस्जिदों को लेकर द इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छापी है। इस रिपोर्ट के अनुसार जमात-ए-इस्लामी हिंद की पंजाब शाखा का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में 165 से अधिक मस्जिदों को बहाल किया गया है। ऐसी स्थिति उस राज्य की है जहाँ आज़ादी के समय मुस्लिम आबादी 40% से घटकर अब 1.93% रह गई है।

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रिपोर्ट के अनुसार इन मस्जिदों में से एक का जीर्णोद्धार कार्य बरनाला ज़िले के बखतगढ़ गांव में हो रहा है। वहाँ एक किसान अमनदीप सिंह ने पहल की। उन्होंने दिसंबर 2022 में एक मस्जिद के निर्माण के लिए 250 वर्ग गज जमीन दान में दी थी। जल्द ही दूसरे ग्रामीणों से पैसा आने लगा। 2 लाख रुपये जुटाए जाने के बाद पड़ोसी गांवों ने सीमेंट और ईंटें डाल दीं। एक स्थानीय मुस्लिम परिवार ने मस्जिद के लिए एक सबमर्सिबल पंप लगाया। मोती खान कहते हैं, 'इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मुस्लिम परिवारों ने जीर्णोद्धार के बारे में पता चलने के बाद लगभग 6 लाख रुपये का दान दिया।' और इस तरह सामूहिक प्रयास से मस्जिद का अधिकतर हिस्सा अब बनकर तैयार है। अब केवल कुछ अंतिम कार्य बाकी हैं, वक्फ बोर्ड से अब तक किसी मदद की आवश्यकता नहीं पड़ी है।

अमनदीप बताते हैं कि जिस दिन आधारशिला रखी गई थी, उस दिन 15 मुस्लिम परिवारों सहित पूरे गांव ने लंगर साझा किया था। 80 साल के सईद खोकर खान ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'जब बँटवारा हुआ तो हम बठिंडा के बल्लो गाँव में रहते थे। हमारे हिंदू और सिख भाई-बहनों ने हमें पाकिस्तान नहीं जाने दिया... हम भी नहीं जाना चाहते थे। ग्रामीणों ने हमें बल्लो से लगभग 20 किमी दूर बखतगढ़ पहुंचाया। उन्होंने सुनिश्चित किया कि हम सुरक्षित रहें। हमारा भाईचारा अब भी बरकरार है।'

अंग्रेज़ी अख़बार ने रिपोर्ट दी है कि इस साल मार्च में बरनाला के कुटबा बहमनिया गांव के सरपंच बूटा सिंह गांव की पहली मस्जिद के उद्घाटन के गवाह बने थे। विभाजन के बाद पुरानी मस्जिद अनुपयोगी हो गई थी, क्योंकि दो परिवारों को छोड़कर कुटबा बहमनिया के सभी मुसलमान पाकिस्तान चले गए थे। जमात-ए-इस्लामी हिंद के मोहम्मद हनीफ धूरी के शेरपुर सोढियां गांव में 120 साल पुरानी एक परित्यक्त मस्जिद को बहाल करने की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जिस दिन आधारशिला रखी गई थी, गांव ने जश्न मनाने के लिए मीठे चावल बांटे।
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मालेरकोटला ज़िले में स्थित जितवाल कलां गांव में युवा कांग्रेस नेता जगमेल सिंह ने एक मस्जिद के लिए 1,200 वर्ग गज जमीन दान में दी। परिवार ने भी 51,000 रुपये का योगदान दिया और अगस्त 2021 में जामा मस्जिद, लुधियाना के नायब शाही इमाम मुहम्मद उस्मान लुधियानवी ने आधारशिला रखी।

रिपोर्ट के अनुसार नायब शाही इमाम उस्मान लुधियानवी ने लुधियाना के मल्लाह गांव के एक व्यक्तिगत अनुभव का उल्लेख किया है, जहां केवल एक मुस्लिम परिवार बचा था, जहां 2016 में हिंदुओं और सिखों ने एक मस्जिद को बहाल करने के लिए एक साथ रैली की थी। 

रिपोर्ट के अनुसार शाही इमाम कहते हैं: 'पंजाब में हम सभी पंजाबी के रूप में रहते हैं, न कि सिख, हिंदू या मुस्लिम के रूप में। पंजाबियत हमें आगे बढ़ाती है। हम ईद, गुरुपरब और दिवाली एक साथ मनाते हैं, अंतरधार्मिक लंगर होते हैं।'

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पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना में समाजशास्त्र की प्रोफेसर डॉ. शालिनी शर्मा ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि विभाजन की विद्वेष को पीछे छोड़ने में राज्य इसलिए सक्षम हुआ क्योंकि सिख गुरुओं की प्रमुख विचारधारा रही है। उन्होंने कहा, 'यह लोगों को सद्भाव और भाईचारे के साथ रहने के लिए मार्गदर्शन करता है। अगर हम पाकिस्तान के पंजाब में भी जाएँ तो वहाँ जो आतिथ्य और सम्मान मिलता है वो काबिले तारीफ़ है। दोनों पक्ष भी संबंधों के लिए खुले हैं।'

तो क्या पंजाब में मुस्लिम विरोधी उस तरह की टिप्पणी, या नफ़रत नहीं मिलने के पीछे भी यही वजह है? शालिनी शर्मा ने कहा, 'जाट सिख समुदाय यहां प्रमुख है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। यह समुदाय राजनीतिक रूप से सत्ता में है, ज़मीन का मालिक है और बहुमत में है। वे 'हिंदू' एजेंडे के बारे में मुसलमानों की तरह ही सतर्क हैं। इसलिए पंजाब में किसी को भी मुस्लिम विरोधी राजनीति या स्थानों के मुस्लिम नाम बदलने का अभियान भी नहीं दिखता है।'

पंजाब में मस्जिदों के पुनर्निर्माण के पीछे की वजह क्या है, इसको लेकर प्रसिद्ध पंजाबी कवि और सांस्कृतिक कार्यकर्ता गुरभजन गिल कहते हैं, 'मस्जिदों की बहाली के पीछे का अभियान आंशिक रूप से विभिन्न राज्यों से पंजाब में श्रमिकों के प्रवास से जुड़ा हो सकता है, जिनमें से बड़ी संख्या में मुसलमान हैं जिन्हें पूजा करने के लिए जगह की ज़रूरत होती है।'

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क़मर वहीद नक़वी
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