पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार और अफसरशाही में एकबारगी फिर जबरदस्त ढंग से ठन गई है। इस बार भी वजह 'दिल्ली वाले' हैं। इस बार मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आला अफसरों के इसलिए आनन-फानन में तबादले कर दिए कि उन्होंने विभागीय राशि को 'प्रचार' के लिए इस्तेमाल करने से साफ इनकार कर दिया और सरकार को कतिपय ईमानदार अफसरों का यह रवैया पसंद नहीं आया। दो दिन के भीतर हुए कुछ तबादले बेहद चर्चा में हैं। इनमें से तो एक रविवार यानी छुट्टी के दिन किया गया।
अफसरशाही में जबरदस्त खलबली है और सुगबुगाहट है कि मुख्यमंत्री ने 'ऊपर' के इशारे से मुख्य सचिव को मौखिक आदेश दिए जो मुख्य सचिव की मेज पर पहुंचते ही लिखित में बदल गए। पूरा घटनाक्रम बताता है कि अब राज्य सरकार को तर्क करने वाले और ईमानदारी के साथ फर्ज निभाने वाले आला अधिकारी रत्ती भर भी पसंद नहीं। नीचे के अफसरों को भी रोज ताश के पत्तों की मानिंद फेंटा जा रहा है। सरकार के पक्षधर अधिकारी इसे अपरिहार्य सख्ती बताते हैं, जबकि 'पीड़ित' अफसरों के हमदर्द (सूबे में जो कुछ इन दिनों हो रहा है) इसे अपने किस्म का सरकारी भ्रष्टाचार!
चंद दिन पहले ही पीसीएस और आईएएस अफसरों तथा सरकार के बीच तनातनी बढ़ी थी और मुख्यमंत्री के संवैधानिक दबाव में आकर अफसर झुक गए थे। इसकी एक वजह और भी थी कि मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और उनके किचन कैबिनेट के सदस्य मीडिया तथा अन्य मंचों से प्रचार करने लगे थे कि सरकार से नाराज हुए अफसर दरअसल दागी अधिकारियों को बचाना चाहते हैं और खुद भी बचना चाहते हैं। लेकिन इस बार मामला दूसरा है। तब जिला स्तरीय अधिकारियों में अपने एक साथी की विजिलेंस द्वारा की गई गिरफ्तारी को लेकर रोष था और वे पांच दिन की सामूहिक हड़ताल पर चले गए थे लेकिन सरकार के दबाव का डंडा उन पर चल पड़ गया और वे काम पर लौट आए। मुख्यमंत्री ने खुद सामने आकर उन्हें नियमानुसार निलंबित करने की धमकी दी थी।
इस बार दो ऐसे अधिकारियों को अचानक से उनके पद पर से हटा दिया गया, जो पहले दिन से ही अपनी ईमानदार छवि के लिए मशहूर हैं।
पहला मामला अजोय शर्मा का है। चंद घंटों पहले तक वह पंजाब के स्वास्थ्य सचिव थे और सरकार की एक अति महत्वाकांक्षी परियोजना के आधिकारिक मुखिया। दिल्ली की तर्ज पर पंजाब में तकरीबन 400 आम आदमी क्लीनिकों का उद्घाटन प्रत्येक जिले में होना था। इससे ठीक पांच दिन पहले इस परियोजना की कामयाबी के लिए रात दिन एक किए हुए स्वास्थ्य सचिव अजोय शर्मा को स्थानांतरित कर दिया गया।
पूछने पर सरकारी नुमाइंदे तो यही बताएंगे कि यह एक रूटीन तबादला है लेकिन असल कहानी यह है कि स्वास्थ्य सचिव अजोय शर्मा ने आम आदमी क्लीनिक के प्रचार पर 30 करोड़ रुपए खर्च करने पर अपनी तार्किक आपत्ति जताई थी, जिस पर राज्य सरकार अब तक 10 करोड़ रुपए खर्च भी कर चुकी है। शेष 20 करोड़ रुपए पंजाब सहित दिल्ली तथा अन्य दूसरे राज्यों में इस सरकारी विकास योजना का 'ढिंढोरा' पीटने के लिए खर्च करने के लिए कहा गया था। विभागीय सूत्रों के मुताबिक खुद मुख्य सचिव विजय कुमार जंजुआ ने स्वास्थ्य सचिव को इसके आदेश दिए और हवाला भी की मुख्यमंत्री ऐसा चाहते हैं। लेकिन स्वास्थ्य सचिव ने इसे फिजूलखर्ची बताते हुए ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। मामला मुख्यमंत्री दरबार में पहुंचा तो बात 'आगे तक' चली गई। नतीजतन निहायत ईमानदार छवि वाले स्वास्थ्य सचिव को ईमानदारी का इनाम तत्काल तबादले के रूप में दिया गया!
पूर्व स्वास्थ्य सचिव अजोय शर्मा 1999 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद उनकी पीठ कई बार थपथपा चुके हैं। शर्मा के पास वित्त आयुक्त, कराधान का अतिरिक्त प्रभार भी था। मुख्यमंत्री को तकरीबन 400 आम आदमी क्लिनिकों का विधिवत उद्घाटन पांच दिन बाद करना था कि उन्हें आनन-फानन में उनका तबादला कर दिया गया और इन पंक्तियों को लिखने तक नई पोस्टिंग भी नहीं दी गई। दूसरे अर्थों में कहें तो 'ईनाम' की बजाय 'सजा' दी गई।
बताते हैं कि मुख्य सचिव के साथ इस बाबत उनकी कई बैठकें भी हुई लेकिन उन्होंने इस आदेश को नहीं ही माना। उनका कहना था कि जिस राशि को जारी करने का दबाव उन पर बनाया जा रहा है, उससे सेहत सुविधाएं सुधारने के लिए बहुत बड़े कदम उठाए जा सकते हैं और राज्य को इनकी जरूरत है। क्लीनिक बनने अथवा शुरू होने तथा सुधार होने से प्रचार-पसार अपने आप हो जाएगा तो इसके लिए सूबे से 'बाहर' ऐसा खर्च क्यों किया जाए? सूत्रों के मुताबिक़ उनका तबादला दिल्ली से आई टीम की हिदायत पर किया गया है।
इस पूरे प्रकरण पर राज्य की ब्यूरोक्रेसी में हलचल मच गई कि एक दूसरे तबादले की खबर ने इससे भी ज्यादा सनसनी मचा दी। पंजाब कैडर के एक अन्य तेजतर्रार आईएएस अफसर वीरेंद्र कुमार शर्मा को भी अचानक किनारे कर दिया गया। वह दूसरे ऐसे बड़े अधिकारी हैं जिन्हें ईमानदारी का 'ईनाम' दिया गया और वह भी रविवार को यानी सरकारी छुट्टी के दिन! रविवार से पहले वह शिक्षा विभाग में महानिदेशक और विशेष सचिव के महत्वपूर्ण पद पर थे। उन्हें अक्टूबर में ही ये दो अहम ओहदे दिए गए थे। विभिन्न जिलों के उपायुक्त रहे वीरेंद्र कुमार शर्मा की छवि भी बेहद उजली है।
सोमवार, 23 जनवरी को जैसे ही यह खबर बाहर आई तो हर कोई हक्का-बक्का रह गया। उन्हें भी नई पोस्टिंग नहीं दी गई।
अफसरशाही के बीच यह माना जाता है कि पद से इस तरह हटाने के उसी वक्त नई पोस्टिंग न देना दरअसल अधिकारी का अपमान करने जैसा है। वीरेंद्र कुमार शर्मा ने भी सरकारी पैसे को प्रचार-प्रसार के लिए इस्तेमााल करने का विरोध किया था। सूत्रों के मुताबिक शनिवार को उनकी मुख्य सचिव विजय कुमार जंजुआ से बाकायदा बहस हुई और वीरेंद्र कुमार शर्मा ने बदस्तूर इनकार की भाषा दोहराई। रविवार दोपहर होते-होते उन्हें पदमुक्त कर दिया गया। !
हासिल खास जानकारी के मुताबिक सबसे पहले मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी अनिरुद्ध तिवारी को इसीलिए बदला गया। फिर आईएएस अफसर गुरकीरत कृपाल सिंह को बदला गया। उनका तबादला काफी विवादास्पद रहा था। सूत्र के मुताबिक 'दिल्ली वालों' का 'आदेश' मानने से साफ इनकार करने वाले कृषि विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सरबजीत सिंह को भी रातों-रात बदल दिया गया। बताते हैं कि सरकार के निशाने पर कई और अधिकारी भी हैं। 'ऊपर' से सारी स्क्रीनिंग हो रही है। कुछ आला अधिकारी नाम नहीं देना चाहते लेकिन स्पष्ट कहते हैं कि हुकूमत भगवंत मान नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी आलाकमान चला रहा है।
प्रसंगवश, सामान्य लोक प्रशासन में ही नहीं बल्कि पुलिस विभाग में भी ऐसा हो रहा है। आईपीएस पुलिस अधिकारी को एक जिले में लंबे अरसे तक नहीं टिकने दिया जाता। अभी वह जिले का आपराधिक तामझाम समझने की प्रक्रिया में ही होता है कि चंडीगढ़ से तबादले के आदेश आ जाते हैं। फौरी हालत यह है कि सिविल अफसरों में ही नहीं बल्कि पुलिस अधिकारियों में भी मान सरकार की तबादला नीति को लेकर जबरदस्त नाराजगी है। एक बड़े पुलिस अधिकारी का कहना है, "मुझे और अन्य जिलों में तैनात साथी पुलिस अधिकारियों को हमेशा बिस्तर बांधे रखना पड़ता है कि पता नहीं कब नया फरमान सुना दिया जाए। हम तो अपने बीवी बच्चों को भी साथ नहीं ले जाते।"
बताते हैं कि पंजाब के ज्यादातर आईएएस और आईपीएस अधिकारी डेपुटेशन पर राज्य से बाहर जाना चाहते हैं और कई चले भी गए हैं तथा कई कतार में हैं।
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