निहंग सिखों के इस कुबूलनामे के बाद कि उन्होंने दलित युवक लखबीर सिंह की हत्या की थी, इस मामले ने तूल पकड़ लिया है। पंजाब और दूसरे राज्यों के दलित नेता इस मामले को लेकर खासे मुखर हैं। साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा के निहंग सिखों से पूरी तरह किनारा कर लेने के बाद निहंग सिखों ने भी पलटवार किया है।
निहंग सिखों के एक समूह के प्रमुख अमन सिंह ने कहा है कि निहंग सिखों के संगठनों की ओर से 27 अक्टूबर को बड़ी बैठक बुलाई गई है, इसमें इस बात का फ़ैसला किया जाएगा कि निहंग सिख सिंघु बॉर्डर पर रहेंगे या नहीं।
अमन सिंह इन दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ अपनी वायरल फ़ोटो को लेकर चर्चा में हैं। इसके बाद तमाम तरह की बातें सोशल मीडिया पर कही जा रही हैं।
सवाल यह है कि अगर निहंग सिख किसान आंदोलन से अपना तंबू उखाड़कर चले गए तो क्या होगा, क्या किसान आंदोलन इससे कमजोर होगा?
निहंग सिखों ने पिछले 11 महीने से किसानों के साथ ही खूंटा गाड़ा हुआ है और वे किसान आंदोलन में पंजाब के किसानों के समर्थन में पूरी ताक़त के साथ खड़े हैं।
लेकिन तरन तारन के रहने वाले दलित युवक लखबीर सिंह की हत्या के मामले के बाद जिस तरह के सवाल निहंग सिखों को लेकर उठे हैं और संयुक्त किसान मोर्चा ने भी उनसे किनारा किया है, उसके बाद भी क्या वे किसान आंदोलन के साथ बने रहेंगे, इस सवाल का जवाब 27 अक्टूबर को मिल जाएगा।
दलित संगठनों में आक्रोश
लखबीर सिंह की हत्या के मामले को लेकर दलित समाज के संगठन ख़ासे आक्रोशित हैं। उनका कहना है कि लखबीर की हत्या जघन्य अपराध तो है ही, उसे दलित होने की भी सजा निहंगों ने दी है। लखबीर को इंसाफ़ दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चल रहा है और इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की जा रही है।
निहंग सिखों ने लखबीर सिंह पर यह आरोप लगाया है कि उसने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी की थी। लेकिन लखबीर सिंह के परिजनों और गांव वालों ने कहा है कि लखबीर ऐसा नहीं कर सकता।
देखना होगा कि निहंग सिख सिंघु बॉर्डर पर बने रहने के मामले में क्या फ़ैसला लेते हैं।
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