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अमृतपाल सिंह खालसा और जनरैल सिंह भिंडरावाला

 भिंडारांवाला और अमृतपाल में क्या समानता है?

अजनाला प्रकरण के बाद पंजाब में दो नाम बहुतेरी चर्चा हासिल कर रहे हैं। एक, संत जरनैल सिंह भिंडारांवाला और दूसरा, अमृतपाल सिंह खालसा। स्वाभाविक सवाल है कि दोनों में क्या समानता है? पहली यह कि दोनों अलगाववाद का रास्ता अख्तियार करते हुए अलहदा 'खालिस्तान' के लिए पुरजोर रहे। दूसरा, दोनों ने गर्मपंथी पंथक सियासत के जरिए अपने-अपने तईं हुकूमत को खुली चुनौती देते हुए अपने बचाव के लिए 'धर्म' का खुला इस्तेमाल किया। 

भिंडारांवाला और अमृतपाल में एक समानता और है कि दोनों 'अमृत संचार' (सिखों को अमृतधारी बनाने) की मुहिम से वाबस्ता रहे हैं। पहले संत जरनैल सिंह भिंडारांवाला और अब अमृतपाल सिंह खालसा की अमृत संचार मुहिम का खुला मकसद अलगाववाद को बढ़ाना है। 

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भिंडारांवाला एक प्रचारक था और सुर्खियों में तब आया जब ज्ञानी जैल सिंह ने उसे अकालियों के खिलाफ खड़ा किया। पंजाब के मुख्यमंत्री रहे और राष्ट्रपति के ओहदे तक पहुंचे ज्ञानी जैल सिंह तब केंद्रीय गृहमंत्री थे जब उन्होंने इस 'संत' पर अपना 'हाथ' रखा। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और संजय गांधी की खुली शह भी उसे हासिल थी। बाद में वह कांग्रेस के खिलाफ हो गया और तत्कालीन इंदिरा सरकार के लिए मुसीबत का बड़ा सबब बन गया। 

वह दमदमी टकसाल का मुखिया था और यह संस्था तब सिखों के एक विशेष तबके में अपनी अच्छी हैसियत रखती थी। अस्सी के दशक के काला दौर भिंडारांवाला से शुरू होता है। बिगड़ते माहौल के मद्देनजर पहले राज्य सरकार और फिर केंद्र ने सख्त रुख बरता तो वह अपने मुख्यालय से श्री स्वर्ण मंदिर चला गया और वहां सर्वोच्च श्री अकाल तख्त साहिब को अपना ठिकाना बना लिया। उसका मानना था कि यहां उसे कोई नहीं पकड़ सकता। बाद में ऑपरेशन ब्लू स्टार में वह अपने कई सहयोगियों के साथ मारा गया।

उसी के नक्शे कदम पर अब अमृतपाल सिंह खालसा चल रहा है। भिंडारांवाला दमदमी टकसाल का मुखिया था तो अमृतपाल 'वारिस पंजाब दे' का स्वयंभू अध्यक्ष है। भिंडारांवाला के दौर में पुलिसकर्मियों को खुलेआम धमकाया जाता था और एक आईजी की हत्या उसी के इशारे पर श्री स्वर्ण मंदिर साहिब की देहरी पर कर दी गई थी। दरअसल, यह समूची पुलिस और राज्य-व्यवस्था को एक आतंकी संदेश था। आईजी की हत्या के बाद पुलिस भिंडारांवाले के साथियों पर हाथ डालने में गुरेज करती थी।                                                   

Bhindranwala and Amritpal: radical sympathizer of Khalistan movement     - Satya Hindi
अमृतपाल सिंह खालसा धार्मिक चोले में

लगभग वैसा ही सब कुछ अमृतपाल सिंह खालसा खुलेआम कर रहा है। उसकी पोशाक तक भिंडारांवाले जैसी है। अजनाला पुलिस स्टेशन पर कब्जे के लिए उसने श्री गुरुग्रंथ साहिब की आड़ ली। वह खुद को संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला का 'वारिस' भी कहता है। कभी भिंडरांवला ने भी ठीक इसी तर्ज पर श्री गुरुग्रंथ साहिब की पालकी का 'आसरा' लिया था। तब उसने श्री अकाल तख्त साहिब में पनाह नहीं ली थी और पुलिस ने उस पर एक मुकदमा हरियाणा में दर्ज किया था। ज्ञानी जैल सिंह तब केंद्रीय गृहमंत्री थे और उन्होंने हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल को आदेश दिया था कि उसे सुरक्षित हरियाणा से निकलने दिया जाए। बाद में हरियाणा पुलिस का आधिकारिक बयान था कि चूंकि 'संत जी' के साथ श्री गुरुग्रंथ साहिब की पालक थी; इसलिए उन्हें जाने दिया गया!                                                 

दो दिन पहले अमृतपाल सिंह ने अजनाला पुलिस थाने पर हमला किया तो उसके साथ भी श्री गुरुग्रंथ साहिब की पालकी थी। वहां पुलिसकर्मियों के खिलाफ जबरदस्त हिंसा हुई और अब जवाब में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और राज्य सरकार के एक मंत्री कहते हैं कि छह जिलों की पुलिस ने 'हथियार' इसलिए छोड़ दिए और बल प्रयोग नहीं किया कि श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी न हो। यानी इतिहास दोहराया गया और पंजाब के 'दूसरे भिंडारांवाले' अमृतपाल सिंह खालसा को बाइज्जत जाने दिया गया।

पंजाब में तब भी 'उस' घटनाक्रम का कड़ा विरोध हुआ था और 'इस' प्रकरण की भी मुखालफत हो रही है।                 

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बहरहाल, एक बात सामान्य है कि कभी संत जरनैल सिंह भिंडारांवाला ने धर्म की सियासत की थी और अब अमृतपाल सिंह भी उसी राह पर है। संत जरनैल सिंह भिंडारांवाला का जो हश्र हुआ, उससे सब वाकिफ हैं और अमृतपाल सिंह से जुड़े लोग भी अंधी गली की तरफ जा रहे हैं। अंधेरों का रास्ता बहुत नुकसान के बाद खुलता है! इसे कौन समझाए और समझे?   

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अमरीक
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