पंजाब पुलिस पिछले पांच दिनों से पंजाब पुलिस 'वारिस पंजाब दे' के मुखिया और मुखर खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह और उसके साथियों के खिलाफ अर्धसैनिक बलों के साथ मिलकर अभियान चलाए हुए है, लेकिन फिर भी वह फरार है। उसके खिलाफ लुकआउट और गैर जमानती वॉरंट तक जारी किए गए हैं। एनआईए की 8 टीमें भी पंजाब पहुंच चुकी हैं। फिलहाल तक अमृतपाल सिंह के 114 सक्रिय सहयोगियों को पुलिस हिरासत में ले चुकी है। पंजाब पुलिस ने अमृतपाल सिंह के तकरीबन 500 करीबियों की पहचान कर एनआईए को सूची दी है। इस सूची में 142 वे लोग हैं जो हर वक्त उसके साथ रहते थे। अन्य लोग संगठन और फाइनेंस का काम देखते थे। अमृतपाल सिंह के कुछ परिजन भी पुलिस की हिरासत में हैं। उसके चाचा हरजीत सिंह पर भी एनएसए लगाकर, उसे असम भेज दिया गया है। उसका गांव पुलिस छावनी बन चुका है।
पंजाब पुलिस का कहना है कि अमृतपाल कुख्यात पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में था और उसके ताल्लुक ड्रग माफिया से भी थे। वहीं से उसे वित्तीय मदद हासिल होती थी। ड्रग माफिया के एक सरगना ने ही उसे मर्सिडीज गाड़ी तोहफे में दी थी। पुलिस के मुताबिक आईएएसआई उसे हथियार और गोला- बारूद मुहैया करवा रही थी। जिस गाड़ी से अमृतपाल सिंह भागा, वह ड्रग माफिया रावेल सिंह की थी।
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पंजाब के हर शहर और कस्बे में फ्लैग मार्च हो रहे हैं और बड़े स्तर पर तलाशी अभियान जारी है लेकिन अमृतपाल सिंह का कोई अता-पता नहीं! अजनाला प्रकरण के बाद वह राज्य की खुफिया एजेंसियों के रडार पर था। बिगड़ते हालात के मद्देनजर मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात करके पंजाब के लिए अर्धसैनिक सुरक्षा बलों की मांग की थी। राज्य में अर्धसैनिक सुरक्षाबलो की तैनाती के बाद सरगोशियां थीं कि अमृतपाल सिंह खालसा कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। यानी पुलिस उसके पीछे थी लेकिन फिर भी वह फरार हो गया।
अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह का कहना है कि जिस दिन पंजाब पुलिस ने 'ऑपरेशन अमृतपाल सिंह' शुरू किया, वह सुबह 9 बजे तक घर में मौजूद था। उसके बाद वह अपने काफिले के साथ जालंधर की ओर गया। जालंधर जिले के शाहकोट कस्बे के पास भारी-भरकम पुलिस फोर्स ने उसके सहयोगियों को दबोच लिया। पुलिस का कहना है कि वह बच निकला लेकिन अमृतपाल के पिता का कहना है कि वह पुलिस की गिरफ्त में ही है। पंजाब पुलिस ने हाईकर्ट में दायर एक याचिका में सोमवार को कहा कि वह उसकी हिरासत में नहीं है और भगोड़ा है।
सवाल है कि फिर अमृतपाल सिंह है कहां? पुलिस के व्यापक तलाशी अभियान के बावजूद उसका कोई अता-पता नहीं। पंजाब के चप्पे-चप्पे में पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात हैं। सूबे की सरहदों को और ज्यादा पुख्ता सख्त बंदोबस्त के साथ 'सील' कर दिया गया है। वह बच कर कहां पनाह ले सकता है? आम लोगों का मानना है कि या तो वह गिरफ्तार है और अगर नहीं तो किसी गुरुद्वारे या डेरे में छिपा हुआ है। लेकिन पंजाब पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर 'सत्य हिंदी' से कहा कि खुफिया एजेंसियां गुरुद्वारों और डेरों पर भी निगाहबानी किए हुए हैं। उसका कोई सुराग नहीं।
अमृतपाल सिंह खालसा की बाबत अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। इतने बड़े ऑपरेशन के बावजूद पंजाब सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। पुलिस महानिदेशक भी खामोश हैं। अलबत्ता अन्य पुलिस अधिकारी जरूर जगह-जगह यह दावा कर रहे हैं कि अमृतपाल सिंह खालसा को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
कुछ सूत्र बताते हैं कि वह गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन 'सत्य हिन्दी' अपनी तौर पर इसकी पुष्टि नहीं करता है क्योंकि पंजाब पुलिस या किसी सरकारी एजेंसी ने उसकी गिरफ्तारी की आधिकारिक घोषणा नहीं की है।
सूत्रों के अनुसार उसकी गिरफ्तारी पंजाब से बाहर भी दिखाई जा सकती है। अब चूंकि एनआईए भी खुलकर अमृतपाल सिंह खालसा के खिलाफ चले अभियान में शामिल हो चुकी है, इसलिए देश की 13 अति सुरक्षित जेलों को चुना गया है, जहां बाकायदा गिरफ्तारी के बाद अमृतपाल सिंह और उसके साथियों को सलाखों के पीछे रखा जाएगा। पंजाब से बाहर। ज्यादातर जेलें दक्षिणी राज्यों में हैं। ऐसा इसलिए भी कि पंजाब का माहौल तनावपूर्ण न बने और अमृतपाल सिंह के समूचे नेटवर्क को पूरी तरह तोड़ दिया जाए।
गौरतलब है कि 'वारिस पंजाब दे' का मुखिया अमृतपाल सिंह खालसा खुलेआम अलहदा देश खालिस्तान की मांग कर रहा था। विभिन्न मीडिया साक्षात्कारों और सार्वजनिक मंचों से वह लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को धमकियां तो दे ही रहा था। साथ यह भी कहता था कि वह खुद को भारत का नागरिक नहीं मानता और भारतीय पासपोर्ट उसके लिए सिर्फ आवाजाही का माध्यम है। वह पहले दुबई रहता था और किसान आंदोलन के दौरान पंजाब आया था।
पंजाब पुलिस का कहना है कि दुबई में रहते वक्त वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में आया और उसी ने माहौल बिगाड़ने के लिए उसे यहां भेजा। पहले पहल उसने ईसाई मिशनरियों के खिलाफ मुहिम शुरू की और फिर सर्वोच्च सिख संस्थाओं शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और श्री अकाल तख्त साहिब के समानांतर अपनी संस्था खड़ी करना शुरू किया।
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक उसके ठिकानों से 33 बुलेट प्रूफ जैकेट भी बरामद हुईं हैं। पोशाक से लेकर ताने-बाने तक वह खुद को 'दूसरा भिंडरावाला' साबित कर रहा था। प्रसंगवश, राज्य और केंद्र सरकार को उसके खिलाफ कार्रवाई में इतनी देर नहीं करनी चाहिए थी। खासतौर से अजनाला प्रकरण के बाद। अजनाला में उसने पुलिस थाने पर कब्जा कर लिया था और बाद में वायरल वीडियो में पुलिस अधिकारी उसके आगे गिड़गिड़ाते दिखाई दिए थे। पंजाब सरकार और पुलिस का इकबाल गोया उसके कदमों में झुक गया था। सूबे में वह हौवा बन गया था। खुद को 'शेर' कहने लग गया था। यानी पंजाब को उसने जंगल समझ लिया था। अब वही शेर 'चूहा' है!
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अमृतपाल सिंह खालसा ने जब सिर उठाया तो 'सत्य हिंदी' ने उसकी कारगुज़ारियों और गतिविधियों पर लगातार रिपोर्ट प्रकाशित की थीं और पंजाब व मुख्यधारा का मीडिया खामोशी अख्तियार किए हुए था। अब पूरा मीडिया जगत 'ऑपरेशन अमृतपाल सिंह' पर तीन-तीन पेज दे रहा है! खुफिया सूत्रों के हवाले से हर छोटी सूचना भी बड़ी खबर बन रही है। जबकि इस मामले को संवेदनशील ढंग से संभालने की जरूरत है।
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