“क़ुरआन स्वयं ईश्वर की वाणी है। वह रूहानी किताब है। उसमें अल्लाह को विश्व का ईश्वर कहा गया है, ‘मुसलमानों का ईश्वर’ नहीं बनाया गया है क्योंकि हिंदू और मुसलमान दोनों ईश्वर के समक्ष एक हैं। मुसलमान लोग मस्जिदों में अज़ान देते हैं, वह ईश्वर का गुणगान है और हिंदू लोग मंदिरों में घड़ियाल बजा कर ख़ुदा को ही याद करते हैं। अत: जाति-संप्रदाय के आधार पर अत्याचार करना, भगवान से शत्रुता करना है।”
‘बँटेंगे तो कटेंगे’ अकबर को ‘जगद्गुरु' बताने वाले शिवाजी की परंपरा पर हमला!
- विचार
- |
- |
- 18 Nov, 2024

योगी आदित्यनाथ महाराष्ट्र में जाकर शिवाजी का ज़िक्र करते हुए आख़िर ‘बंटेंगे तो कटंगे’ का नारा किस आधार पर दे रहे हैं? क्या शिवाजी की विचारधारा उस तरह की है जैसी योगी ने पेश करने की कोशिश की?
ये पंक्तियाँ पढ़कर आरएसएस और हिंदुत्ववादी ब्रिगेड के तमाम धुरंधर किसी ‘सेक्युलर’ नेता का बयान समझेंगे जो ‘तुष्टीकरण’ में जुटा है। लेकिन ये पंक्तियाँ छत्रपति शिवाजी महाराज के उस पत्र की हैं जो उन्होंने जज़िया कर लगाये जाने के विरोध में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को लिखा था। एस.एम. गर्गे की लिखी ‘औरंगज़ेब, जज़िया कर और शिवाजी महाराज’ पुस्तक के पेज 135 से 155 के बीच यह पत्र पढ़ा जा सकता है।
फ़ारसी में लिखा शिवाजी का यह पत्र उनकी धार्मिक नीति को बेहद स्पष्ट रूप से सामने रखता है। शिवाजी अध्यात्म की उसी भारतीय परंपरा से अपने को जोड़ते नज़र आते हैं जो ईश्वर के ‘एक' होने और उसके समक्ष सभी के ‘एक’ होने की बात करता है। जो जाति-संप्रदाय के आधार पर अत्याचार को ‘ईश्वर-द्रोह’ बताता है।