“क़ुरआन स्वयं ईश्वर की वाणी है। वह रूहानी किताब है। उसमें अल्लाह को विश्व का ईश्वर कहा गया है, ‘मुसलमानों का ईश्वर’ नहीं बनाया गया है क्योंकि हिंदू और मुसलमान दोनों ईश्वर के समक्ष एक हैं। मुसलमान लोग मस्जिदों में अज़ान देते हैं, वह ईश्वर का गुणगान है और हिंदू लोग मंदिरों में घड़ियाल बजा कर ख़ुदा को ही याद करते हैं। अत: जाति-संप्रदाय के आधार पर अत्याचार करना, भगवान से शत्रुता करना है।”