जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए ‘नक़ाबपोश हमले’ के बाद जिस तरह देश के लगभग सारे विश्वविद्यालय उबल पड़े हैं, उससे साफ़ होता है कि बात सिर्फ वही नहीं है जो विश्वविद्यालय प्रशासन और नरेन्द्र मोदी सरकार चाहती है। तत्काल देखेंगे तो नागरिकता क़ानून में बदलाव और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) की घोषणा के बाद जामिया और कई और विश्वविद्यालयों के आंदोलन और पुलिस दमन का मामला दिखाई देगा। पर गौर करने वाली बात यह है कि यह घटना हैदराबाद में रोहित वेमुला की आत्महत्या और जेएनयू में ही एक फर्जी वीडियो के जरिए ‘देश तोड़ने का षड्यंत्र’ दिखाए जाने और तब के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर हमले से जुड़ती लगेगी।
मोदी सरकार के लिए ख़तरे की घंटी है छात्र आंदोलन
- विचार
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- 9 Jan, 2020

जेएनयू में नक़ाबपोश गुंडों के छात्रों पर हमला करने के ख़िलाफ़ कई विश्वविद्यालयों में छात्रों ने आवाज़ बुलंद की है। इसके अलावा राजनीतिक दल, आम लोग भी इससे आक्रोशित हैं। भले ही संघ परिवार आवाज़ उठाने वालों को ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ और ‘अर्बन नक्सल’ कहे लेकिन कहीं न कहीं इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हर साल दो करोड़ रोज़गार देने के वायदे की असफलता के साथ ही देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और मोदी की राजनीति से निराशा भी एक कारण दिखाई देगा।
आज तक न रोहित वेमुला कांड में कुछ हुआ है, न ही कन्हैया के ख़िलाफ़ मामला दर्ज हो पाया है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सारे संघ परिवार ने ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ और ‘अर्बन नक्सल’ नाम के जुमलों को ख़ूब प्रचलित कर दिया है। अगर छात्र आंदोलनों का जरा भी आगे-पीछे जानने की इच्छा हो तो देश की बेरोज़गारी और नरेन्द्र मोदी द्वारा हर साल दो करोड़ रोज़गार देने के वायदे की असफलता के साथ ही देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और मोदी की राजनीति से निराशा भी कारण दिखाई देगा। बात किसानों और मुसलमानों ही नहीं, आम जनों की नाराज़गी से जुड़ती भी लगेगी।