यूपी विधानसभा चुनाव में बमुश्किल 6 माह का वक़्त बाक़ी है। तमाम राजनीतिक दल चुनावी गोटियाँ बिछाने की शुरुआत कर चुके हैं। बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग के ज़रिए ग़ैर जाटव दलितों और ग़ैर यादव पिछड़ों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए मुखौटों की राजनीति को जारी रखा है। साथ ही बीजेपी ने लव जिहाद, धर्मांतरण और जनसंख्या नियंत्रण जैसे क़ानूनों के ज़रिए मुसलमानों का पैशाचीकरण करके हिंदुओं के मानस में उनके प्रति भय और नफ़रत पैदा करने वाली सांप्रदायिक राजनीति को आगे बढ़ाया है।

दरअसल, ब्राह्मण समाज की ओर से फ़िलहाल कोई नाराज़गी की बात सामने नहीं आई है। ब्राह्मण समाज ने अभी खामोशी ओढ़ रखी है। अगर वह वास्तव में नाराज़ होता तो किसी विकल्प की बात करता। जबकि आरएसएस से जुड़ा ब्राह्मण लगातार बीजेपी के साथ एकजुट ही नहीं बल्कि मुखर है।
आश्चर्यजनक रूप से अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे पर बीजेपी फ़िलहाल खामोश है। ऐसा लगता है कि मंदिर निर्माण के लिए बटोरे गए चंदे से ट्रस्ट द्वारा ज़मीन सौदों में हुए भ्रष्टाचार के उजागर होने के कारण मंदिर मुद्दे को पृष्ठभूमि में डालने के लिए संघ और बीजेपी मजबूर हुए हैं। इसलिए बीजेपी सामाजिक इंजीनियरिंग और सांप्रदायिकता के सहारे चुनाव मैदान में उतरने जा रही है।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।