अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में यूपी का दंगल सबसे खास होने जा रहा है। यूपी का चुनाव जितना विपक्षी दलों के लिए महत्वपूर्ण है, उतना ही बीजेपी के लिए भी महत्वपूर्ण है। दरअसल, यह तय करना मुश्किल है कि यूपी चुनाव बीजेपी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है अथवा उसके विरोधियों के लिए।
जैसे, बंगाल चुनाव के बाद पूरे भारत का राजनीतिक परिदृश्य बदलते हुए दिख रहा है। ममता बनर्जी की जीत और बीजेपी की करारी हार के बाद विपक्षी खेमे में नई ऊर्जा का संचार हुआ है। यही कारण है कि दिल्ली में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों की एकजुटता के संकेत मिल रहे हैं।
बंगाल में जीत की हैट्रिक और रणनीतिक कौशल से ममता बनर्जी की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ है। वे विपक्षी दलों की धुरी बनती हुई नजर आ रही हैं। इससे नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खेमे में बेचैनी होना स्वाभाविक है।
सेमीफाइनल है यूपी चुनाव
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अगर बंगाल चुनाव क्वार्टर फाइनल था तो यूपी चुनाव सेमीफाइनल है। बंगाल की हार के बाद बीजेपी जाहिर तौर पर यूपी को किसी भी कीमत पर जीतना चाहेगी। यूपी हारने से पार्टी कार्यकर्ताओं का ना सिर्फ मनोबल टूटेगा बल्कि नरेंद्र मोदी का तिलिस्म भी तार-तार हो सकता है। फिर मीडिया और कॉरपोरेट का कोई जोड़ भी नरेंद्र मोदी की छवि को नहीं बचा सकेगा।
इस समय नरेंद्र मोदी 2002 के बाद अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। नोटबंदी जैसे तमाम गलत नीतिगत फैसलों के कारण पहले ही देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है।
मुसीबतों की लंबी फ़ेहरिस्त
कोरोना आपदा ने गिरती अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुँचा दिया है। आज बेरोजगारी और महंगाई जैसे गंभीर संकट भी सामने हैं। विदेशी संबंधों के मोर्चे पर भी मोदी सरकार नाकाम हो चुकी है। चीनी सेना लगातार भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है। लेकिन सरकार आँखें मूँदे बैठी है। देश के भीतर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नरेंद्र मोदी की साख को बट्टा लग चुका है।
बीजेपी के भीतर भी सबकुछ ठीक नहीं है। राजस्थान, उत्तराखंड, कर्नाटक, बंगाल और उत्तर प्रदेश में केंद्रीय सत्ता के खिलाफ बगावती आवाजें उठ रही हैं। उत्तराखंड और कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन करके मामले को संभालने की कोशिश जरूर हुई है। लेकिन नरेंद्र मोदी यूपी में मजबूत चुनौती का सामना कर रहे हैं।
दूसरे राज्यों की तरह यूपी में नेतृत्व परिवर्तन संभव नहीं है। योगी आदित्यनाथ को हटाना इतना आसान नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि नरेंद्र मोदी योगी आदित्यनाथ की चुनौती का मुकाबला कैसे करेंगे?
मोदी को योगी की चुनौती
जाहिर तौर पर नरेंद्र मोदी आज की राजनीति के सबसे मंझे हुए खिलाड़ी हैं। लेकिन बंगाल में चुनावी पराजय के बाद यूपी में योगी आदित्यनाथ की चुनौती ने मोदी के सामने एक नई मुसीबत पैदा कर दी है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी को पहली बार किसी क्षत्रप ने सीधे चुनौती दी है।
दरअसल, अरविंद शर्मा के मार्फत नरेंद्र मोदी योगी आदित्यनाथ की घेराबंदी करना चाहते थे। लेकिन योगी ने अरविंद शर्मा को डिप्टी सीएम बनाने से इंकार कर दिया। करीब महीने भर की खींचतान और आरएसएस की मध्यस्थता के बाद ऐसा लगा कि दोनों के बीच सुलह हो गई है। लेकिन सच्चाई यह है कि भीतरी स्तर पर शीत युद्ध अभी भी जारी है।
विज्ञापन पर करोड़ों रुपये ख़र्च
ऐसा लगता है कि योगी आदित्यनाथ नरेंद्र मोदी की गले की हड्डी बन गए हैं। योगी अत्यंत महत्वाकांक्षी ही नहीं बल्कि बहुत जल्दबाजी में भी हैं। यही वजह है कि योगी ना सिर्फ दूसरी बार यूपी का सीएम बनाना चाहते हैं बल्कि 2024 में प्रधानमंत्री बनने के लिए खुद को प्रोजेक्ट कर रहे हैं। इसके लिए वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में विज्ञापन पर करोड़ों रुपये फूँक रहे हैं।
मोदी के सामने एक मुश्किल यह है कि वे सीधे तौर पर योगी आदित्यनाथ को दरकिनार नहीं कर सकते। गेरुआधारी और एक मठ का महंत होने के कारण योगी हिंदुत्व के मजबूत प्रतीक हैं। योगी आरएसएस की खास पसंद भी हैं। लेकिन योगी को कमजोर किए बिना नरेंद्र मोदी का राजनीतिक वर्चस्व कायम नहीं रह सकता।
नरेंद्र मोदी कैमरे के फ्रेम में भी किसी नेता को नहीं आने देते, फिर वे योगी आदित्यनाथ को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं, जिनकी निगाहें सीधे उनकी कुर्सी पर लगी हुई हैं।
हालांकि पिछले दिनों मोदी ने बनारस में योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ की। मोदी द्वारा ऐसी तारीफ को राजनीतिक गलियारों में अलग ढंग से देखा जाता है।
मोदी की तारीफ पाने वाले उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को कुछ दिनों बाद ही हटा दिया गया था। तब क्या नरेंद्र मोदी योगी आदित्यनाथ को हटाने की तैयारी कर रहे हैं?
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योगी को हटाना मुश्किल
यूपी चुनाव से पहले अगर उन्हें हटाया गया तो योगी निश्चित तौर पर बगावत कर देंगे। इससे पार्टी का हारना तय है। दूसरा पेच यह है कि चुनाव जीतने के बाद योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाना ही होगा। अगर चुनाव के बाद उन्हें दरकिनार किया जाता है तो वह पार्टी के विधायकों को तोड़कर अलग जा सकते हैं।
हिन्दू युवा वाहिनी को पुनर्जीवित करके योगी लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए नई मुसीबत पैदा कर सकते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि योगी आदित्यनाथ से निपटने के लिए क्या नरेंद्र मोदी के पास कोई ‘मास्टर प्लान’ है? क्या मायावती इस प्लान का हिस्सा हैं? क्या नरेंद्र मोदी और मायावती एक दूसरे का सहयोग करके मनचाहा नतीजा हासिल कर सकते हैं?
स्मरणीय है कि 2002 के दंगों के बाद नरेंद्र मोदी की उपजी स्याह छवि के समय मायावती ने उनका चुनाव प्रचार किया था। क्या मायावती एक बार फिर बहुत रणनीतिक ढंग से अदृश्य रहते हुए नरेंद्र मोदी की मदद करने जा रही हैं? इसके बदले में उन्हें क्या मिल सकता है? इसका खुलासा लेख के अगले हिस्से में होगा।
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