जिस तरह भारत-विभाजन की ऐतिहासिक विभीषिका इतिहास में अमिट है और जिसे कोई भुला या झुठला नहीं सकता, उसी तरह इस हकीकत को भी कोई नहीं नकार या नजरअंदाज कर सकता है कि मौजूदा सत्ताधीशों के वैचारिक पुरखों का भारत के स्वाधीनता संग्राम से कोई सरोकार नहीं था। यही नहीं, धर्म पर आधारित ‘दो राष्ट्र’ - हिंदू और मुसलमान का विचार भी सबसे पहले उन्होंने ही पेश किया था, जिसे बाद मुस्लिम लीग ने भी अपनाया और उसी के आधार पर उसने पाकिस्तान हासिल किया।
अमृत महोत्सव: स्वाधीनता आंदोलन में अंग्रेजों के एजेंडे पर काम कर रहा था संघ
- विचार
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- अनिल जैन
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- 15 Aug, 2022

अनिल जैन
भारत की आज़ादी के आंदोलन में संघ की भूमिका को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। क्या वाकई संघ ने देश की आज़ादी की लड़ाई नहीं लड़ी?
भारत के मौजूदा सत्ताधीशों और उनके राजनीतिक संगठन (भारतीय जनता पार्टी) की गर्भनाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिंदू महासभा से जुड़ी हुई है। इन दोनों ही संगठनों ने स्वाधीनता संग्राम से न सिर्फ खुद को अलग रखा था बल्कि खुल कर उसका विरोध भी किया था।
यही नहीं, 1942 में शुरू हुए 'भारत छोड़ो आंदोलन’ के रूप में जब भारत का स्वाधीनता संग्राम अपने तीव्रतम और निर्णायक दौर में था, उस दौरान तो उस आंदोलन का विरोध करते हुए आरएसएस और हिंदू महासभा के नेता पूरी तरह ब्रिटिश हुकूमत की तरफदारी कर रहे थे।