प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी चुनाव के मौके पर अपने को सुभाष चंद्र बोस की विरासत से जोड़ने की फूहड़ कोशिश भी करते रहते हैं। लेकिन क्या वे इस बात से इनकार कर सकते हैं कि जिस समय सुभाष चंद्र बोस सैन्य संघर्ष के जरिए ब्रिटिश हुकूमत को भारत से उखाड़ फेंकने की रणनीति बुन रहे थे, ठीक उसी समय विनायक दामोदर सावरकर ब्रिटेन को युद्ध में हर तरह की मदद दिए जाने के पक्ष में थे।
अमृत महोत्सव: तिरंगा प्रेम के ज़रिये पुरखों के पापों पर परदा डालने का प्रयास
- विश्लेषण
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- 15 Aug, 2022

आरएसएस ने लंबे वक्त तक तिरंगा क्यों नहीं फहराया। क्या बीजेपी और संघ के वैचारिक पुरखों का भारत के स्वाधीनता आंदोलन और राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे से जुड़ाव नहीं था?
1941 में बिहार के भागलपुर में हिन्दू महासभा के 23वें अधिवेशन को संबोधित करते हुए सावरकर ने ब्रिटिश शासकों के साथ सहयोग करने की नीति का एलान किया था। उन्होंने कहा था, ''देश भर के हिंदू संगठनवादियों (हिन्दू महासभाइयों) को दूसरा सबसे महत्वपूर्ण और अति आवश्यक काम यह करना है कि हिन्दुओं को हथियारबंद करने की योजना में अपनी पूरी ऊर्जा और कार्रवाइयों को लगा देना है। जो लड़ाई हमारी देश की सीमाओ तक आ पहुँची है वह एक ख़तरा भी है और एक मौका भी।’’
इसके आगे सावरकर ने कहा था, ''सैन्यीकरण आंदोलन को तेज किया जाए और हर गांव-शहर में हिन्दू महासभा की शाखाएं हिन्दुओं को थल सेना, वायु सेना और नौ सेना में और सैन्य सामान बनाने वाली फैक्ट्रियों में भर्ती होने की प्रेरणा के काम में सक्रियता से जुड़ें।’’