भारत गणतंत्र का संविधान स्वीकार किये जाने के एक दिन पहले 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भारत को ‘नेशन इन मेकिंग’ (बनता हुआ राष्ट्र) कहा था। ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बतौर दो साल 11 महीने और 17 दिन चली लंबी बहसों का अंतिम रूप से जवाब देने खड़े हुए डॉ. आंबेडकर ने कहा, “मेरा मानना है कि यह मानकर कि हम एक राष्ट्र हैं, हम एक बड़ा भ्रम पाले हुए हैं। एक राष्ट्र में लोग हज़ारों जातियों में कैसे बँट सकते हैं? जितना जल्दी हमें यह अहसास हो जाए कि हम दुनिया के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अर्थों में अभी एक राष्ट्र नहीं हैं, हमारे लिए उतना ही बेहतर होगा। तभी हमें एक राष्ट्र बनने की आवश्यकता का अहसास होगा और लक्ष्य को साकार करने के तरीकों और साधनों के बारे में हम गंभीरता से सोचेंगे।”
उत्तर-पूर्व पर छाता मणिपुर का धुआँ और डॉ. आंबेडकर की चेतावनी
- विचार
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- 27 Jul, 2023

मणिपुर उस आग में जल रहा है जिसकी चेतावनी डॉ. भीमराव आंबेडकर ने आज़ादी के समय ही दे दी थी। जानिए, उन्होंने क्यों कहा था कि यदि पार्टियाँ धर्म को देश से ऊपर रखेंगी तो हमारी आज़ादी दूसरी बार ख़तरे में पड़ जाएगी।
भारत को ‘हज़ारों साल पुराना राष्ट्र’ बताने या समझने के आदी लोगों को यह जानकर झटका लग सकता है कि संविधान निर्माता की नज़र में भारत ‘राष्ट्र’ था नहीं, उसे ‘बनाना’ था। दरअसल, डॉ. आंबेडकर की राष्ट्र को लेकर समझ किसी निश्चित मानचित्र या राष्ट्रध्वज जैसे चिन्हों पर आधारित नहीं थी। उनकी नज़र में राष्ट्र तभी होता है जब वहाँ के रहने वालों के बीच ‘साझेपन’ का अहसास हो। हर व्यक्ति खुद को राष्ट्र का हिस्सा माने। मौजूदा घटनाओं को देखते हुए कह सकते हैं कि अगर मणिपुर में लगी आग की आँच से मैनपुरी का व्यक्ति दुखी हो तभी भारत को राष्ट्र कहा जा सकता है। अगर मणिपुर में हो रहे अत्याचार और अन्याय से देश के किसी अन्य हिस्से में ख़ुशी या सहमति है तो फिर इसे राष्ट्र नहीं कहा जा सकता। सुख-दु:ख का साझा यानी ‘बंधुत्व’ ही राष्ट्र होने का आधार है।