“भारत की लाखों पीड़ित जनता सूखे गले से जिस चीज़ के लिए बार-बार गुहार लगा रही है, वह है रोटी। वे हमसे रोटी माँगते हैं और हम उन्हें पत्थर पकड़ा देते हैं। भूख से मरती जनता को धर्म का उपदेश देना, उसका अपमान है। भूखे व्यक्ति को तत्व-मीमांसा की सीख देना उसका अपमान है।”
मल्लिकार्जुन खड़गे पर नहीं स्वामी विवेकानंद पर हमलावर है बीजेपी!
- विचार
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- 28 Jan, 2025

भूखे बच्चों के लिए भोजन, बच्चों को स्कूल, मज़दूरों को मज़दूरी नहीं मिलने की शिकायत करना और हज़ारों रुपये ख़र्च कर कंपटीशन में डुबकियाँ लगाने की बात कहना क्या धर्म का अपमान हो गया? खड़गे के बयान को मुद्दा क्यों बना रही बीजेपी?
सत्ता संरक्षण में मचाये जा रहे ‘हिंदुत्व’ के देशव्यापी कोलाहल के बीच इन चार पंक्तियों के कारण किसी को भी ‘धर्मद्रोही’ घोषित किया जा सकता है। ‘सनातन को अपमानित करने’ और ‘हिंदू धर्म का दुश्मन’ बताते हुए क़ानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। लेकिन यह उद्धरण योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंद का है जिन्हें आधुनिक विश्व को हिंदू धर्म के शुभ पक्षों से परिचित कराने का श्रेय दिया जाता है। शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में 20 सितंबर को 1893 को अपना चौथा भाषण देते हुए स्वामी विवेकानंद ने ज़िंदगी की तकलीफ़ों से ध्यान भटकाने के लिए धर्म की आड़ लेने वाले को कड़ी फटकार लगाते हुए जो कहा था वह ‘धर्म नहीं है भारत की सबसे बड़ी ज़रूरत’ शीर्षक से उपलब्ध है। उन्नीसवीं सदी के उस अंतिम दशक में न आस्था की कमी थी और न धर्म का ज़ोर ही कम था लेकिन किसी ने विवेकानंद पर इस भाषण के लिए कोई लांछन नहीं लगाया। उल्टा भारत लौटने पर 'महान हिंदू संत' के रूप में उनको तरह-तरह से सम्मानित किया गया था।