राहुल गाँधी की तस्वीर ‘बेईमानों की लिस्ट में’ शामिल करके अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर साफ़ किया है कि भ्रष्टाचार विरोध उनके लिए किसी प्रतिबद्धता का नहीं महज़ रणनीति का नाम है। ख़ुद को ‘कट्टर ईमानदार’ और विरोधियों को बेईमान बताना उनकी पुरानी अदा है, लेकिन इस सूची में राहुल गाँधी का नाम दर्ज करके उन्होंने अपनी भ्रष्टाचार विरोधी भंगिमा को हास्यास्पद बना दिया है। राहुल गाँधी से मतभेद रखने वाले भी उनकी ईमानदारी और निर्भयता पर शक़ नहीं कर सकते। तमाम एजेंसियों की उछल-कूद के बावजूद राहुल गाँधी जिस तरह जेल भेजने की चुनौती देते हुए मोदी सरकार के सामने तन कर खड़े हैं, वह इसका सबसे बड़ा सबूत है।
बिना किसी सबूत के भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाना और फिर फँसने पर माफ़ी माँग लेना केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा का एक स्थायी भाव रहा है। उनके राजनीतिक जीवन की नींव डालने वाला भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन भी इसकी मिसाल है। याद कीजिए, जनलोकपाल को लेकर जंतर-मंतर पर शुरू किया किया गया आंदोलन। वहाँ मंच पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी समेत 15 मंत्रियों को बेईमान बताते हुए पोस्टर लगाये गये थे। अचानक प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने का ऐलान हो गया तो उन्हें ‘बेईमान' बताने वाली तस्वीर पर सवाल उठने लगा। 25 जुलाई 2012 को प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बन जाने की ख़बर आयी तो असहज स्थिति से बचने के लिए उनकी तस्वीर पर चादर डाल दी गयी। लेकिन तेवर कड़े ही थे।
उस वक़्त हाफ़ शर्ट पहने दुबले-पतले अरविंद केजरीवाल ने माइक सँभाल कर जो कुछ कहा था, वह यूट्यूब पर आज भी उपलब्ध है। केजरीवाल ने कहा था, “प्रणब मुखर्जी के भ्रष्टाचार के कम से कम चार आरोपों के सबूत हम लोगों ने प्रधानमंत्री और सोनिया गाँधी को दो महीने पहले भेजे थे। उन्होंने उन भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच कराने से मना कर दिया। आज वह हमारे देश के राष्ट्रपति बन गये। संविधान के तहत अब उनके ख़िलाफ़ जाँच नहीं करायी जा सकती तो आज संविधान की दुहाई देकर और संविधान का ग़लत उपयोग करके उनके भ्रष्टाचार के ऊपर ये चादर लगा दी गयी है। ये सरकार ने किया है, हम लोगों ने नहीं किया है…ये चादर सरकार की लगाई हुई है… जिस संविधान को भ्रष्टाचार दूर करन के लिए बनाया गया था, जिस संविधान को हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए बनाया गया था, आज उसी संविधान को प्रणब मुखर्जी साहब के भ्रष्टाचार को ढँकने के लिए किया जा रहा है। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं, और पाँच बजे आज… हमने पंद्रह मंत्रियों के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं, रोज़ हम तीन या चार मंत्रियों के आरोपों का ज़िक्र किया करेंगे। आज पाँच बजे हम प्रधानमंत्री जी, प्रणब मुखर्जी साहब, चिदंबरम साहब और कपिल सिब्बल, इन चारों पर लगाये गये आरोपों का बड़े विस्तार से आप लोगों के बीच खुलासा करेंगे।”
साढ़े बारह साल बाद परिदृश्य यह है कि केजरीवाल के तमाम सबूत झूठ का पुलिंदा साबित हो चुके हैं। केजरीवाल पक्ष-विपक्ष के कम से कम दस नेताओं से लिखित माफ़ी माँग चुके हैं जिन पर पर उन्होंने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था और मानहानि के शिकंजे में फँस गये थे।
“
यहाँ शरीफ़ लोग रहते हैं। यहाँ सभ्य लोग रहते हैं, शांतिप्रिय लोग रहते हैं। मेरे से पहले शीला जी चुनाव लड़ती थीं। वह भी अच्छी लेडी थीं, शरीफ़ लेडी थीं। शराफ़त से चुनाव लड़ती थीं।
अरविंद केजरीवाल, आप प्रमुख (चुनाव प्रचार के दौरान)
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अब तक के घटनाक्रम गवाह हैं कि केजरीवाल के आरोपों पर भरोसा करने वाले ठगे गये हैं। उन्होंने अपने दाँव-पेच से दो बार दिल्ली की सत्ता तो हासिल कर ली लेकिन उन लाखों लोगों का भरोसा तोड़ दिया जिन्होंने उन पर आँख मूँदकर भरोसा किया था। तब सैकड़ों नौजवानों ने नौकरी छोड़कर भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन में हिस्सा लिया था। वे हैरान हैं कि 2013 के आख़िर में कांग्रेस के साथ सरकार बनाने वाले केजरीवाल ने जिस जनलोकपाल को लेकर डेढ़ महीने में ही इस्तीफ़ा दे दिया था, वह उनके दस साल के शासनकाल में कोई शक्ल क्यों नहीं ले सका? दिल्ली में कोई समस्या थी तो पंजाब में तो लागू हो ही सकता था, लेकिन अब पार्टी इसका नाम तक नहीं लेती। दिल्ली में एमसीडी भी आम आदमी पार्टी के हाथ में है तो फिर शहर इतना गंदा क्यों है? न यमुना साफ़ हुई और न शहर की हवा ही साँस लेने लायक़ है। और ईमानदार राजनीति का दावा तो शराब नीति घोटाले की परतें उघड़ने के साथ ही चुटकुला साबित हो चुका है। गोवा, गुजरात और अन्य प्रदेशों में आम आदमी पार्टी ने चंदा लेकर चुनाव लड़ा, इसकी कोई सूचना नहीं है। फिर पैसा आया कहाँ से? अपनी किताब ‘स्वराज' में केजरीवाल ने जिस पारदर्शी और जवाबदेह शासन की रूपरेखा प्रस्तुत की थी, उसे आज़माया क्यों नहीं जाता?
ज़ाहिर है, केजरीवाल उन तमाम कसौटियों के सामने बौने साबित हुए हैं जो उन्होंने ही राजनीति और राजनेताओं को कसने के लिए बनायी थीं। चुनाव में विपक्ष इसे मुद्दा बनाये, यह स्वाभाविक है। दिल्ली चुनाव में तीसरा कोण बनने में जुटी कांग्रेस अगर खुलकर सरकार पर सवाल उठा रही है तो विपक्ष का धर्म निभा रही है। राहुल गाँधी ने केजरीवाल से जाति जनगणना और आरक्षण की सीमा पर राय स्पष्ट करने की माँग करके उनकी राजनीति की सीमा उजागर कर दी है। जवाब में आम आदमी पार्टी की ओर से राहुल गाँधी को ही ‘बेईमान' बताने का अभियान शुरू कर दिया गया है। बीजेपी निश्चित ही इससे काफ़ी ख़ुश होगी क्योंकि उसे पता है कि असल ख़तरा राहुल गाँधी और उनकी बढ़ती स्वीकार्यता से है।
केजरीवाल की सफलता से बीज़ेपी को कोई धक्का नहीं लगता, लेकिन राहुल गाँधी को मिला जनसमर्थन उसे हिला देता है जो बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को सीधी चुनौती देते हैं और 15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी पर सवाल उठाने पर आएसएस चीफ़ मोहन भागवत को ‘देशद्रोही’ कहने से भी नहीं हिचकते। ज़ाहिर है, जंतर-मंतर पर प्रणब मुखर्जी की तस्वीर पर पर्दा डालने वाले केजरीवाल की राजनीति अब पूरी तरह बेपर्दा हो चुकी है। उन्होंने क़रीब 25 साल बाद भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सड़क पर उमड़ी जनता को इस क़दर मायूस किया है कि बहुत से लोग अब भ्रष्टाचार को कोई मुद्दा ही नहीं मानते।
पुनश्च: गुज़रे ज़माने के मशहूर लेखक सुदर्शन की एक प्रसिद्ध कहानी है ‘हार की जीत।’ इस कहानी में जब बाबा भारती को धोखा देकर डाकू खड्ग सिंह उनका घोड़ा ‘सुल्तान’ हथियाकर भागता है तो बाबा भारती पुकार लगाकर कहते हैं कि यह बात किसी को बताना नहीं वरना लोग अपाहिज और ग़रीब लोगों पर भरोसा करना बंद कर देंगे। शर्मिंदा होकर डाकू खड्ग सिंह रात में घोड़ा वापस कर जाता है लेकिन केजरीवाल भरोसा टूटने की परवाह किये बिना झूठ के घोड़े पर सवार होकर सरपट भाग रहे हैं।
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