पिछले दिनों कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी का आरएसएस चीफ़ मोहन भागवत को लेकर दिया गया एक बयान काफ़ी विवादों में रहा। उन्होंने भारत की आज़ादी को राममंदिर से जोड़ने वाले मोहन भागवत के बयान को ‘देशद्रोह’ बताया था। आरएसएस से सीधी और तीखी भिड़ंत को ज़रूरी मानने वाले इस 'रेडिकल सोच’ में कांग्रेस के ही अध्यक्ष रहे नेता जी सुभाषचंद्र बोस के विचारों की छाया साफ़ नज़र आती है। 1938 में सुभाष बोस के पार्टी अध्यक्ष रहते हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के सदस्यों को कांग्रेस की सदस्यता देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। नेता जी इस मसले पर ज़रा भी ढील नहीं चाहते थे। यहाँ तक कि सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए बल-प्रयोग को भी अनुचित नहीं मानते थे।
काफ़ी समय से आरएसएस और बीजेपी के ख़ेमे से नेता जी सुभाष को ‘कांग्रेस का बाग़ी और सताया हुआ’ बताने का अभियान चलाया जा रहा था लेकिन इस कोशिश में जो सच सामने आया उसने इस शातिर योजना पर पानी फेर दिया। पता चला कि नेता जी हद दर्जे के ‘सेक्युलर’ थे और भारत को सच्चे अर्थों में एक आधुनिक और ‘धर्मनिरपेक्ष समाजवादी देश’ बनाना चाहते थे। बोस वह सब कुछ करना चाहते थे, जिसे लेकर आज बीजेपी ख़ेमे से कांग्रेस को कोसा जाता है।
नेता जी सुभाषचंद्र बोस राजनीति और धर्म के घालमेल के सख़्त ख़िलाफ़ थे। उनकी नज़र में जिन्ना और सावरकर में कोई फ़र्क़ नहीं था। वे मानते थे कि दोनों ही अंग्रेजों के लिए काम कर रहे हैं। जब हिंदू महासभा की कमान सावरकर के हाथ आयी और श्यामा प्रसाद मुखर्जी उसमें शामिल हो गये तो नेता जी बंगाल को लेकर सतर्क हो उठे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी डायरी में लिखा कि बोस ने उनसे मुलाक़ात की और कहा कि “अगर वे बंगाल में हिंदू महासभा को एक राजनीतिक निकाय के रूप में बनाने की कोशिश करेंगे, तो वे (सुभाष चंद्र बोस) यह सुनिश्चित करेंगे कि जरूरत पड़ने पर बल का प्रयोग करके, इसे वास्तव में पैदा होने से पहले ही तोड़ दिया जाये।”
यह कोरी धमकी नहीं थी। उस समय के हिंदू महासभा नेता बलराज मधोक ने दर्ज किया है, "सुभाष चंद्र बोस ने अपने समर्थकों की मदद से बल प्रयोग करके महासभा को डराने का फैसला किया। उनके लोग महासभा की सभी बैठकों को तोड़ देते और उम्मीदवारों की पिटाई करते। डॉ. मुखर्जी इसे बर्दाश्त नहीं करते थे। उन्होंने एक बैठक की घोषणा करवाई, जिसे वे खुद संबोधित करने वाले थे। जैसे ही वे बोलने के लिए उठे, एक पत्थर उनके सिर पर लगा और उनका खून बहने लगा।”
दरअसल, कलकत्ता नगर निगम के चुनाव के समय हिंदू महासभा के एक वर्ग के साथ सहयोग लेने का नेता जी का अनुभव बहुत बुरा था। उन्होंने महासभा की घटिया चालों के बारे में खुलकर लिखा और बोला। 30 मार्च 1940 को ‘फ़ॉरवर्ड ब्लॉक’ में छपे हस्ताक्षरित संपादकीय में नेता जी ने लिखा-
“
असली हिंदू महासभा से हमारा कोई झगड़ा नहीं, कोई संघर्ष नहीं। लेकिन राजनीतिक हिंदू महासभा, जो बंगाल के सार्वजनिक जीवन में कांग्रेस का स्थान लेना चाहती है और इसके लिए उसने हमारे खिलाफ जो आक्रामक रवैया अपनाया है, संघर्ष तो होना ही है। यह संघर्ष अभी शुरू ही हुआ है।
-नेताजी सुभाष चंद्र बोस, (पेज नंबर 98, नेताजी संपूर्ण वाङ्मय, खंड 10, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार।)
सुभाष बोस ने 12 मई 1940 को बंगाल के झाड़ग्राम में एक भाषण दिया था जो 14 मई को आनंद बाज़ार पत्रिका में छपा। उन्होंने कहा-
- ‘हिंदू महासभा ने त्रिशूलधारी संन्यासी और संन्यासिनों को वोट माँगने के लिए जुटा दिया है। त्रिशूल और भगवा लबादा देखते ही हिंदू सम्मान में सिर झुका देते हैं। धर्म का फ़ायदा उठाकर इसे अपवित्र करते हुए हिंदू महासभा ने राजनीति में प्रवेश किया है। सभी हिंदुओं का कर्तव्य है कि इसकी निंदा करें। ऐसे गद्दारों को राष्ट्रीय जीवन से निकाल फेंकें। उनकी बातों पर कान न दें।’
विडंबना ये है कि ‘भगवाधारियों’ के दम पर सत्ता क़ाबिज़ करने की खुली रणनीति पर चलने वाली बीजेपी नेता जी की विरासत पर दावा जताती है। कभी उसकी ओर से राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखी नेता जी से जुड़ी सौ सीक्रेट फ़ाइलों को सार्वजनिक करने की बात किसी ‘धमकी’ के अंदाज़ कही जाती थी। ऐसा करने वालों में पीएम मोदी भी शामिल थे। लेकिन जब 2016 में जब‘बोस फ़ाइल्स’ को सार्वजनिक किया गया तो पता चला कि नेता जी के न रहने पर नेहरू जी ने परिवार का कैसा ख़्याल रखा था। विदेश में रह रही नेता जी की बेटी अनीता बोस को एआईसीसी यानी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से हर साल छह हज़ार रुपये का आर्थिक सहयोग दिया जाता था। इसके लिए नेहरू जी ने बाक़ायदा एक ट्रस्ट गठित किया था। यह सिलसिला 1964 तक चला। इसके बाद अनीता की शादी हो गयी और उन्हें इस पैसे की ज़रूरत नहीं रही। उस समय पाँच सौ रुपये बड़ी रक़म थी जो हर महीने भेजी जाती थी।
पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ अपने भाषणों में ‘मुग़ल’ शब्द को हिक़ारत की तरह इस्तेमाल करते हैं। ‘मुग़ल’ के बहाने मुस्लिम समाज के प्रति घृणा पैदा करने की यह कोशिश नेता जी के विचारो का अपमान है। नेता जी मुग़ल काल को भारतीय इंतिहास का ‘स्वर्ण युग’ मानते थे और भारतीय संस्कृति के विकास में मुसलमानों के योगदान को खुले दिन से सराहते थे।
उन्होंने कहा था, "मुसलमानों के आगमन के साथ, धीरे-धीरे एक नया संश्लेषण विकसित हुआ। हालाँकि उन्होंने हिंदुओं के धर्म को स्वीकार नहीं किया, लेकिन उन्होंने भारत को अपना घर बना लिया और लोगों के सामान्य सामाजिक जीवन में हिस्सा लिया - उनके सुख-दुख। आपसी सहयोग से एक नई कला और एक नई संस्कृति विकसित हुई, जो पुरानी से अलग थी लेकिन फिर भी विशिष्ट रूप से भारतीय थी। वास्तुकला, चित्रकला, संगीत - में नई रचनाएँ बनाई गईं जो संस्कृति की दो धाराओं के सुखद मिश्रण का प्रतिनिधित्व करती थीं।"
नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने नवंबर 1944 में टोक्यो विश्वविद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों के सामने एक महत्वपूर्ण भाषण दिया था। इसमें उन्होंने अपने सपनों के भारत की तस्वीर खींची थी। बाद में 'स्वतंत्र भारत और उसकी समस्याएं’ शीर्षक से इसे लिया गया। इस लेख में नेता जी कहते हैं, "राज्य व्यक्तियों और समूहों के लिए पूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता की गारंटी देगा और कोई राज्य-धर्म नहीं होगा। राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के मामले में पूरी आबादी के बीच पूर्ण समानता होगी। जब हर व्यक्ति के पास रोजगार, भोजन और शिक्षा होगी और धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में स्वतंत्रता होगी, तो अल्पसंख्यक समस्या नहीं रहेगी।"
आये दिन भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने का अभियान छेड़ने वालों को कोई ‘राज्य-धर्म न होने’ की सुभाष चंद्र बोस की बात कैसे बर्दाश्त हो सकती है। सुकून की बात है कि राहुल गाँधी ने सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ने की नेता जी की प्रतिबद्धता को अपनी ही नहीं पूरी कांग्रेस की प्रतिबद्धता बना दिया है।
पिछले दिनों महाराष्ट्र में युवक कांग्रेस के 60 ऐसे पदाधिकारियों को पद से हटा दिया गया जिन्होंने आरएसएस के ख़िलाफ़ पार्टी के घोषित आंदोलन से कन्नी काटी थी। दरअसल, कांग्रेस के इस युवा संगठन के बैनर तले 19 जनवरी को नागपुर के आरएसएस कार्यालय तक मार्च निकाला गया था। इसका मक़सद राममंदिर निर्माण को सच्ची आज़ादी बताने वाले मोहन भागवत के बयान का विरोध करना था। लेकिन कुछ पदाधिकारी इसमें शामिल नहीं हुए।
संगठन के पदाधिकारियों के ख़िलाफ़ यह कार्रवाई कांग्रेस के बदले तेवर और स्पष्ट रणनीति का सबूत है। आमतौर पर किसी आंदोलन में शामिल होने या न होने को अनुशासनहीनता से जोड़कर नहीं देखा जाता लेकिन यह बदली हुई कांग्रेस है। राहुल गाँधी जिस तरह से आरएसएस को 'आइडिया ऑफ़ इंडिया’ के ख़िलाफ़ बताते हुए लगातार हमलावर हैं, उसने साफ़ कर दिया है कि आरएसएस के प्रति नरम रुख़ रखने वालों के लिए अब कांग्रेस में रह पाना संभव नहीं होगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रति यह सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी।
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