‘गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट। अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।’
दलित न होते तो क्या प्रो. रविकांत पर हमला होता?
- विचार
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- 19 May, 2022

लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी के जाने माने प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक डॉ. रविकान्त पर लगातार हमले क्यों हो रहे हैं? क्या इस वजह से कि वह एक दलित हैं?
कबीर दास ने कभी गुरु की महिमा के बारे में बताते हुए लिखा था कि गुरु कुम्हार की तरह अपने शिष्य को गढ़ता है, उसकी कमियां दूर करता है और इसके लिए अंदर से मजबूत सहारा देते हुए बाहर से आवश्यक चोट भी करता है।
वह 15वीं सदी थी। हम 21वीं में जी रहे हैं। अब छात्र को गुरु थप्पड़ नहीं मारते। छात्र ही गुरु को थप्पड़ मारते हैं। छात्र ही गुरु की ‘खोट’ निकालने का ‘गुरुज्ञान’ रखते हैं। वे प्यार का सहारा दे तो नहीं सकते, नफ़रत का सहारा लेते हुए गुरु पर बारंबार वार करते हैं। उनके हृदय को तोड़ते हैं। ये छात्र घड़ा क्या बनाएंगे, बनाए हुए घड़ों को, जिन्हें उनके गुरुओं ने कभी गढ़ा था- तोड़ने में लगे हैं।