राहुल गांधी लड़ना बीजेपी से चाहते हैं लेकिन लड़ते हुए दिख रहे हैं क्षेत्रीय दलों से। उदयपुर के नव चिन्तन शिविर के बाद राहुल गांधी ने राजनीतिक लड़ाई में कांग्रेस ही नहीं,संभावित सहयोगियों को भी उलझन में डाल दिया है। क्षेत्रीय दलों के पास विचारधारा नहीं है और वे बीजेपी से नहीं लड़ सकते- ये दोनों बातें तथ्यात्मक रूप से भी गलत हैं और रणनीतिक रूप से भी। क्षेत्रीय दलों में ज्यादातर ऐसे हैं जिन्होंने कांग्रेस और बीजेपी दोनों से लड़कर खुद को खड़ा किया है। बगैर विचारधारा के दो-दो विचारधाराओं को परास्त करना कैसे संभव हो सकता है? मुद्दा यह नहीं है कि राहुल गांधी तथ्यात्मक रूप से गलत बोल रहे हैं।




मुद्दा यह है कि राहुल ने अपना नया राजनीतिक दुश्मन खड़ा कर लिया है। क्षेत्रीय दलों को ही दुश्मन समझ लिया है। ऐसा करके उन्होंने बीजेपी की ही मदद की है। यह खुद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए की सोच के खिलाफ है। जाहिर है कि कांग्रेस की पार्टी लाइन के भी खिलाफ है।