पिछले दिनों किसान आंदोलन के बीच पंजाब में स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न हुए। इसमें कांग्रेस पार्टी की अकाल्पनिक विजय इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितनी कि भारतीय जनता पार्टी की फ़ज़ीहत के साथ बुरी तरह हुई पराजय। फ़ज़ीहत इसलिए कि कई शहरों के विभिन्न वार्ड ऐसे थे जहाँ बीजेपी को चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार भी नसीब नहीं हुआ। बीजेपी के अधिकांश प्रत्याशी ऐसे थे जिन्हें चुनाव प्रचार के दौरान जनता के भारी रोष व विरोध का सामना करना पड़ा। सात नगर निगमों में कांग्रेस को जीत हासिल हुई जबकि कई वार्डों में बीजेपी प्रत्याशी अपना खाता भी नहीं खोल सके। नतीजतन लगभग पूरे राज्य से बीजेपी का सूपड़ा साफ़ हो गया।
बीजेपी के राज में - जाहे विधि राखे राम ताहि विधि रहिये!
- विचार
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- 21 Feb, 2021

पिछले दिनों किसान आंदोलन के बीच पंजाब में स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न हुए। इसमें कांग्रेस पार्टी की अकाल्पनिक विजय इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितनी कि भारतीय जनता पार्टी की फ़ज़ीहत के साथ बुरी तरह हुई पराजय।
हालाँकि इन परिणामों को किसान आंदोलन से जोड़कर ज़रूर देखा जा रहा है परन्तु दरअसल यह शहरी चुनाव थे इसलिए इन्हें पूरी तरह किसान आंदोलन के रंग में रंगा चुनाव भी नहीं कहा जा सकता। हाँ, इसे किसान आंदोलन के प्रति सरकार द्वारा अपनाये जा रहे ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैये का परिणाम ज़रूर कहा जा सकता है।