सरकार के कई मंत्री और उच्च पदाधिकारी इन दिनों हिंदी-अंग्रेज़ी के बड़े अख़बारों में नियमित रूप से आलेख लिख रहे हैं। सम्पादक भी उन्हें सम्मान के साथ प्रकाशित कर रहे हैं। यूपीए सरकार के ज़माने में जो कुछ मंत्री और न्यायवेत्ता अख़बारों में लिखते वे आज भी लिख रहे हैं। मंत्रियों द्वारा लेख लिखने के पीछे दो कारण हो सकते हैं : एक तो यह कि वे इस समय अपेक्षाकृत ज़्यादा फ़ुरसत में हैं। कहीं आना-जाना नहीं है। बंगलों पर दर्शनार्थियों की भीड़ ग़ायब है। कहीं कोई भाषण भी नहीं देना है। मन में ढेर सारे दार्शनिक विचार उमड़ रहे होंगे जिन्हें कि जनता के सामने लाया जाना चाहिए। दूसरा कारण यह हो सकता है कि कहा गया हो कि सरकार के काम और उपलब्धियों का बखान करने का इससे बेहतर कोई और अवसर नहीं हो सकता। पढ़ने वाले फ़ुरसत में भी हैं और घरों में क़ैद भी। साठ साल से ऊपर के पाठक तो लम्बे समय तक सिर्फ़ पढ़ने और दुखी होने का काम ही करने वाले हैं।
शतुर्मुर्ग बनता मीडिया और राजनेताओं का प्रशस्ति गान
- विचार
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- 21 May, 2020

हम क्या कभी भी यह स्वीकार करने को तैयार हो सकेंगे कि महामारी के दौरान और उसके बाद की स्थितियों से निपटने का बहुत सारा सम्बंध इस बात से भी रहने वाला है कि नागरिकों को जिस तरह की सूचनाओं और जानकारियों से मीडिया द्वारा समय-समय पर अवगत कराया गया उनमें उनका कभी भरोसा ही नहीं रहा?