एक सवाल जो अब तक नहीं पूछा गया है और जिसे संवेदनशीलता के साथ उठाया जाना चाहिए, वह यह है कि इस समय ‘ज़्यादा’ ज़रूरी क्या होना चाहिए? मशीन कि इंसान? यहाँ बात उन नक़ली मशीनों की नहीं है जिन्हें गुजरात मॉडल के विकास की धज्जियाँ उड़ाते हुए राज्य सरकार द्वारा राजकोट स्थित एक परिचित फ़र्म से मरीज़ों के इलाज के नाम पर ख़रीदा गया है या कि जिन्हें दो सौ की संख्या में अब इतने दिनों बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत को दान में दिया है। बावजूद इस सच्चाई के कि उनके खुद के देश में इन मशीनों की भारी कमी है।
कोरोना संकट: मशीनों पर इंसानों से दोगुना ख़र्च क्यों?
- विचार
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- 23 May, 2020

कोरोना संकट के दौरान वेंटिलेटर्स पर बेहिसाब धन ख़र्च किया जा रहा है लेकिन लाखों प्रवासी मज़दूरों की घोर उपेक्षा हो रही है।
हम यहाँ पीएम केयर्स फंड से कोरोना स्पेशल अस्पतालों के लिए ख़रीदे जाने वाले वेंटिलेटर्स के लिए दो हज़ार करोड़ रुपये और अपने पैरों को तोड़ते हुए पैदल निकले लाखों-करोड़ों प्रवासी मज़दूरों की सभी तरह की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किए गए एक हज़ार करोड़ रुपये के प्रावधान की चर्चा कर रहे हैं।