एक सवाल जो अब तक नहीं पूछा गया है और जिसे संवेदनशीलता के साथ उठाया जाना चाहिए, वह यह है कि इस समय ‘ज़्यादा’ ज़रूरी क्या होना चाहिए? मशीन कि इंसान? यहाँ बात उन नक़ली मशीनों की नहीं है जिन्हें गुजरात मॉडल के विकास की धज्जियाँ उड़ाते हुए राज्य सरकार द्वारा राजकोट स्थित एक परिचित फ़र्म से मरीज़ों के इलाज के नाम पर ख़रीदा गया है या कि जिन्हें दो सौ की संख्या में अब इतने दिनों बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत को दान में दिया है। बावजूद इस सच्चाई के कि उनके खुद के देश में इन मशीनों की भारी कमी है।