कोरोना की वैक्सीन तैयार करने के लिए प्रधानमंत्री केयर्स फ़ंड से सौ करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस बीच ख़बरें हैं कि एक आयुर्वेदिक फ़ाउंडेशन के प्रस्ताव पर कुछ अस्पतालों में कोरोना मरीज़ों पर आयुर्वेदिक दवाओं के परीक्षण की अनुमति भी स्थानीय स्तरों पर दे दी गयी है। दावा किया गया है कि ऐसा मरीज़ों की सहमति से ही किया जा रहा है। ऐसा ‘ड्रग ट्रायल’ केवल हमारे देश में ही सम्भव है, विदेशों में नहीं।
कोरोना: अरबों-खरबों डॉलर का धंधा बन गया है वैक्सीन की खोज का काम
- विचार
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- 25 May, 2020

कोरोना के इलाज के लिए वैक्सीन की खोज का काम इस समय अरबों-खरबों डॉलर का धंधा बन गया है। दुनियाभर की दवा कम्पनियाँ और विश्वविद्यालय इस काम में रात-दिन जुटे हुए हैं।
माना जाता है कि किसी भी तरह से बिना मुँह खोले अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष करने वाले मरीज़ को तो इसका पता ही नहीं रहता कि उसे क्या दवाएँ दी जा रही हैं। कोरोना पॉज़िटिव अगर लिखित सहमति देने की स्थिति में हैं तो यह मानकर भी चला जा सकता है कि वे पहले से ही ठीक थे और अब उन्हें घरेलू दवाएँ इम्यूनिटी ट्रायल के लिए दी जा रही हैं।