बिहार में दरभंगा क्षेत्र के एक छोटे से गाँव की पंद्रह-वर्षीय बहादुर बालिका ज्योति कुमारी पासवान के अप्रतिम साहस और उसकी व्यक्तिगत उपलब्धि को अब सत्ता प्रतिष्ठानों से जुड़े हुए लोग लॉकडाउन की देन बताकर उसे सम्मानित और पुरस्कृत करना चाह रहे हैं। एक बालिका के अपने बीमार पिता के प्रति प्रेम और लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई पीड़ादायक परिस्थितियों से एकल लड़ाई की शर्मनाक त्रासदी को राष्ट्रीय उपलब्धि की गौरव गाथा के रूप में स्थापित करने का इससे अधिक पीड़ादायक उदाहरण कोई और नहीं हो सकता।
ज्योति कुमारी: मज़दूरों की मज़बूरी पर सत्ता का टैलेंट हंट कार्यक्रम
- विचार
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- 27 May, 2020

ज्योति कुमारी पासवान के ही साथ कोई हादसा हो जाता तो फिर कह दिया जाता कि कोई इस तरह से सड़क पर निकल जाए तो उसे कैसे रोका जा सकता है? मालगाड़ी के नीचे कुचल गए सोलह मज़दूरों के बारे में यही तो कहा गया था न कि कोई रेल की पटरियों पर सोना चाहे तो उसे कैसे रोका जा सकता है?
पिता को पाँच सौ रुपए में ख़रीदी गई एक पुरानी साइकल पर पीछे बैठाकर हरियाणा के गुरुग्राम से दरभंगा के अपने गाँव तक बारह सौ किलोमीटर की यात्रा पूरी कर लेने के बाद ज्योति रातों-रात एक नायिका और प्रेरणा का स्रोत बन गई है। ज्योति के साहस की आड़ में उन लाखों-करोड़ों मज़दूरों की तकलीफ़ों और दर्द को छुपा देने की कोशिशें तलाश की जा सकती हैं जो अभी भी बीच रास्तों पर हैं। भारतीय खेल प्राधिकरण और भारतीय साइकिलिंग महासंघ को कहा जा रहा है कि वे ज्योति को ट्रायल का अवसर प्रदान करे। अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी इवांका ट्रम्प द्वारा की गई ज्योति की तारीफ़ को देश के पराक्रम की उपलब्धि के रूप में ग्रहण किया जा रहा है।