तमाम राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर एकमत हैं कि सांप्रदायिक तनाव से होने वाला ध्रुवीकरण बीजेपी को चुनावी को फ़ायदा पहुँचाता है। इससे हिंदू समाज की जाति-उपजाति की तमाम दरारें ढंक जाती हैं और केवल हिंदू होकर वोट देने का सिलसिला शुरू हो जाता है। मणिपुर से लेकर गुड़गाँव में लगी आग को बुझाने को लेकर राज्य सरकारों की उदासीनता के पीछे भी यही तर्क है कि बीजेपी तनाव के ज़रिए चुनाव जीतने की आदी है। वह कोई संविधान सम्मत धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल नहीं, अल्पसंख्यकों के प्रति नफ़रत का निरंतर अभियान चलाने वाली ‘हिदुत्व पार्टी’ है।
यह हिंदुओं के वाक़ई सचेत होने का समय है!
- विचार
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- 4 Aug, 2023

इस ‘हिंदू समय’ में कितना हिंदू विचार है और कितना हिंदू विरोध? क्या हिंदुत्व की राजनीति ने हिंदू धर्म के सामने वाक़ई एक गंभीर चुनौती नहीं खड़ी कर दी है? पढ़ें कांग्रेस से जुड़े पंकज श्रीवास्तव की टिप्पणी।
लेकिन इस आख्यान में यह संदेश भी छिपा है कि आम हिंदू कट्टरता को पसंद करता है। उसे अच्छा लगता है जब ईसाइयों और मुसलमानों को ‘टाइट’ किया जाता है। कुल मिलाकर माहौल यह बना दिया गया है कि हिंदुओं का ‘न्यायबोध’ नष्ट हो चुका है और वे एक ऐसी भीड़ में तब्दील हो गये हैं जो सबसे तेज़ आवाज़ में नफ़रत की हाँक लगाने वाले के पीछे चल पड़ती है। ‘हिंदुत्व’ की राजनीतिक सफलता ने सैकड़ों साल से बनी हिंदू धर्म की सहिष्णु छवि को पूरी तरह धूल-धूसरित कर दिया है। ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’ के दौर में हिंदुओं के बारे में यह राय बनना वाक़ई गंभीर मामला है। खुलकर कहा जाये तो ‘जाग्रत हिंदू भावना’ के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है, उससे सबसे ज़्यादा हिंदुओं को सचेत होने की ज़रूरत है।