लोकसभा चुनाव के नतीजों के आने के बाद मई 2014 में नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री का पद छोड़ प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने केअहमदाबाद से दिल्ली को रवाना हो रहे थे तो उस समय जहाज़ की सीढ़ी पर खड़े हो कर लोगों को हाथ हिलाते हुए उनकी मोहक तस्वीर देश की तमाम पत्र पत्रिकाओं ने छापा था। उस तस्वीर में एक अन्य चीज पर लोगों का ध्यान गया, चार्टर प्लेन के मालिक का नाम, यह नाम अडानी का था। अडानी की मुख्यमंत्री मोदी से निकटता के सच को उस समय गुजरात में सभी जानते थे। उद्योग क्षेत्र और शेयर बाजार के जानकारों को यह भी पता था कि जिस समय 2013 में भाजपा ने मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने की घोषणा की थी उस दिन अडानी इंटरप्राइज के शेयर में 265 प्रतिशत का उछाल देखा गया।
बगैर किसी संकोच, अडानी से अपनी मित्रता को लेकर कोई दुराव नहीं रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब यह नहीं जानते थे कि यही नाम कभी उनके लिए गले की हड्डी बन जाएगा, उनकी साख को जड़ से खोदने के काम में आएगा और जिससे वे चाह कर भी मुक्ति नहीं पा सकते हैं।
राष्ट्रपति अभिभाषण पर हुई चर्चा के दौरान अडानी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री का कुछ नहीं बोलना, पूरे मामले को टाल देना प्रधानमंत्री की इसी परेशानी की तरफ इशारा करता है। इस चुप्पी का मतलब राजनीतिक पडितों के साथ देश की जनता को भी समझ में आ गया है। एक दिन पहले कुछ विशेषज्ञ यह मान रहे थे, दावा कर रहे थे कि अपनी छवि बचाने के लिए प्रधानमंत्री हर हालत में अडानी से पिंड छुड़ा लेंगे। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से आए गंभीर आरोपों की जांच का आदेश दे देंगे। कहा गया अपनी इमेज को लेकर वे दुनिया में किसी से समझौता नहीं कर सकते। पर ऐसा नहीं हुआ।
वह भी तब जबकि चर्चा के दौरान अडानी इंटरप्राइजेज के कथित घोटाले के रहस्योद्घाटन, अडानी की प्रधानमंत्री से अटूट मित्रता और उनके और उनकी सरकार से अडानी की कंपनियों को मिली गैरवाजिब मदद, इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर पैदा हुए खतरों को ले कर राहुल गांधी और विपक्ष के कुछ अन्य सदस्यों ने गंभीर आरोप लगाए थे। जबकि प्रधानमंत्री और भाजपा के दूसरे नेताओं को भी अच्छी तरह पता है कि अडानी की देश की संपत्तियों की लगातार खऱीद, पीएम से उनकी निकटता देश में किसान से लेकर मजदूर तक जानते हैं।
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दरअसल आठ नौ साल के इस पूरे दौर में प्रधानमंत्री ने अडानी के साथ अपने संबंधों को ले कर देश में बन रही धारणा की चिंता भी नहीं की और ना ही उन्होंने अडानी से अपनी निकटता की वजह से, अडानी कों मिल रहे व्यावसायिक लाभ को ले कर उठ रहे विवाद पर ध्यान देने की जरूरत समझी।
गुजरात के लोगों ने देखा था मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में गौतम अडानी 2002 से 2013 के बीच गुजरात से ले कर देश के बड़े उद्योगपति की श्रेणी में थोड़े ही समय किस तरह पहुंचे, कैसे उन्हें मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात में मुद्रा पोर्ट के लिए हजारो एकड़ जमीन मामूली कीमत पर मिल गई, यहां तक कि इस सस्ती जमीन के कई हिस्सों को वे ओएनजीसी जैसी कई सरकारी कंपनियों को मनमाने दाम पर, महंगी लीज पर देने में भी सफल रहे। इसके बाद नरेंद्र मोदी जब देश के मुखिया बने तो आठ साल के भीतर ही अडानी देश के उद्योगपतियों को कहीं पीछे छोड़ कर दुनिया भर के कारपोरेट के मुकाबले में खड़े होते गए और राहुल गांधी ने जैसा ससंद में आरोप लगाया, वे 2014 में जहां विश्व अमीरों की श्रेणी में 609 नंबर पर थे वहीं 2022 में दुनिया के तीसरे नंबर के अमीर बन गए।
इस दौरान प्रधानमंत्री और गौतम अडानी के करीबी संबंधों को पूरे देश ने समझना शुरू किया। उन्होंने देखा कि तेल,गैस,पावर, रक्षा उत्पादन, बंदरगाह, हवाई अड्डे, सड़क, खाद्य तेल के उत्पादन -हर क्षेत्र में यहां तक सेव की मार्केटिंग और उसके निर्यात परभी अडानी जी की कंपनियों का एकाधिकार होना शुरू हो गया है, देश के किसानों में भी विपक्षी दल यह संदेश देने में कामयाब रहे कि किसान कानून उनके हित के लिए नहीं, बल्कि अडानी के कथित गोदामों और उनके लाभ के लिए लाया गया है। ना केवल देश, बल्कि विदेशों में भी इस दो पक्षीय संबंधों के तहत अडानी को विभिन्न सेक्टर में लगातार ठेके मिलने शुरू हो गए।
अपने व्यक्तित्व और चमचो की वाहवाही से आत्मविश्वास से भरे मोदी से यहीं चूक हो गई। गांव के खेत खलिहान, कस्बों की चट्टी की चाय की दूकानों से लेकर शहरो के काफी हाउस तक मोदी और अडानी के संबंधों को लेकर काफी पहले से चर्चा होती रही है। विपक्ष कुछ हद तक यह आरोप गांवों तक पहुंचाने में कामयाब रहा है कि मौजूदा सरकार सभी कुछ बेच रही है, और सबने यह भी समझना शुरू कर दिया था कि यह सभी कुछ प्रधानमंत्री के मित्र अडानी जी को बेचा जा रहा है।
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अडानी गुजराती व्यापारी हैं, उनको इस सबसे मतलब नहीं था, लाभ और हिस्सेदारी तक ही वह समझ सकते हैं, पर मोदी और उनके राजनीतिक रणनीतिकार यह राजनीतिक संभावनाएं नहीं समझ पाए यह आश्चर्यजनक है। दरअसल आसमान में उड़ने वाली पंतग और उसे उड़ाने वाले यह भूल जाते हैं कि हवा में उड़ रही पतंग कट कर जमीन पर भी गिर सकती है, और जमीन पर कई प्रतीक्षा में खड़े हैं कि कब य़ह गिरे और हम लूटे।
पंतग कटने की लालसा कई बार परिचितों और अपने के बीच भी होती है। विवाद उठने के बाद चार पांच दिन में यह भी साफ हो गया है कि मोदी इस समय जिस कीचड़ में फंसे हैं, उसमें से उनको निकालने की कोशिश में पार्टी और संघ शायद ही खुल कर सामने नहीं आएंगे। दोनों ही संगठनों के किसी वरिष्ठ नेता ने अडानी प्रकरण पर बचाव करने की अभी तक कोई कोशिश नहीं की।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी का शेयर धड़ाम से गिरा, विश्व के उद्योगपतियों में तीसरे से 29 वें नंबर पर आ गए, ससंद में इस कथित घोटाले की जांच को ले कर जब हंगामा शुरू हुआ, उसी समय भाजपा में दूसरे नंबर के शक्तिशाली समझे जाने वाले नेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी नें करोड़ों रूपए के अडानी के टेंडर को निरस्त कर दिया। 5454 करोड़ का यह टेंडर प्रदेश के केवल मध्यांचल क्षेत्र में स्मार्ट बिजलीमीटर लगाने का था। बड़ी बात यह है कि निरस्त करने की योगी सरकार ने जो वजह बताई। यह बताया गया कि गौतम अडानी के टेंडर में बिजली मीटर की कीमत 9 से 10 हजार प्रति मीटर रखी गई थी जबकि इसकी अनुमानित लागत 6 हजार है, टेंडर 48 से 65 फीसद ज्यादा था।
भाजपा के ही एक विधायक के मुताबिक इस बढी कीमत वाले टेडर को ले कर राज्य की उपभोक्ता परिषद लंबे समय से विरोध कर रही थी, पर योगी को हिम्मत उस समय हुई जब अडानी और उनकी कंपनियां विवादों से घिर गई हैं और योगी जी जानते हैं ऐसे में प्रधानमंत्री इस टेंडर के लिए दबाब नहीं बना पाएंगे। पूरे यूपी में स्मार्ट मीटर के लिए 25 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है।
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एक कोने से जब ताश का महल थोड़ा सा भी खिसकता है तो उसे पूरी तरह से गिरने में देर नहीं लगती।
वैसे भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से पहली बार अडानी पर गड़बड़ी करने, धनशोधन का आरोप नहीं लगा है और ना ही वे अभी तक आर्थिक विवादों से परे रहे हैं। 2012 से वे कस्टम की चोरी और निर्यात किये गए सामान के बिल को बढ़ाचढ़ा कर दिखा कर करवंचना के आरोप में फंसे है। हांलाकि 2014 में मोदी सरकार आने के बाद उन्हें बचाने की पूरी कोशिश हुई, पर डीआरआई के कुछ ईमानदार अफसरो की वजह से यह केस अभी भी चल रहा है।
इस मामले में अडानी ग्रुप की तीन कंपनियों पर कस्टम कानून का उल्लंघन करने और फारेन एक्सचेंज में गड़बड़ी करने का आरोप लगा है। इन कपनियों ने आयातित कोयले और पावर उपकरणों की कीमतों को काफी बढ़ा कर बताया, ओवरइनवायसिंग की, और जानबूझ कर बढ़ाई कीमतों को लेकर बिजली की दरों मे बढ़ोत्तरी की। इस ओवरइनवायसिंग के जरिए करोड़ों रूपए अतरिक्त पैसे का बोझ जनता पर डाली। कोल और उपकरणों की बढ़ी कीमत दिखा कर बिजली उत्पादन की लागत को बढ़ा कर लिया गया। इस मामले में गौतम अडानी की कंपनियों के साथ उनके बड़े भाई विनोद शांतिलाल अडानी का नाम भी आया। गौतम अडानी के एक भाई का नाम इसी तरह के आरोप में 2010 में गोवा में पहले आ चुका था।
मार्च 2014 को डीआरआई की तरफ से इन दोनों कंपनियों को नोटिस भेजी गई। इस मामले में दुबई की एक कंपनी का नाम भी आया था जिसकी होल्डिंग कंपनी विनोद अडानी के पास बताई गई। नोटिस में आरोप लगाया गया कि अडानी की दोनों कंपनियों ने फारेन एक्सचेंज मेंहेराफेरी की है। मनी लाडंरिंग का मामला है। इसके बाद डीआरआई ने दोनो कंपनियों को ओवरइनवायसिंग की 5500 करोड़ की हेराफेरी के आरोप को लेकर मई 2014 में नोटिस भेजी। दो दिन पहले आम चुनाव के नतीजे आ चुके थे। यह नोटिस तीन कंपनियों को थी। इनमें से दो कंपनिया कोएले के जरिए राजस्थान और महाराष्ट्र में बिजली बनाती है तीसरी बिजली वितरण का काम महाराष्ट्र में करती हैं।
इसके बाद इन मामलों को निरस्त करने और डीआरआई की अपील का खेल दस साल से चल रहा है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है। जिस तरह यूपी में हुआ उसी तरह और मामलों में हो सकता है, यह डर अडानी और उनके शुभचिंतकों को है। जैसे मुबंई हाईकोर्ट में धारावी पुन्रविकास के टेंडर के मामले पर सुनवाई चल रही है। इस अजीबोगरीब मामले में 2018 को जो ग्लोबल टेंडर हुए थे, उसमें यह ठेका बाहर की सेकलिंक टेक्नोलोजी नाम की कंपनी को मिल गया था। पर बाद में राज्य सरकार ने यह ठेका कैंसल कर दिया, कुछ नियम बदले और 2022 में यह ठेका अडानी की कंपनी को मिल गया। इसका मुकदमा भी मुबंई हाई कोर्ट में चल रहा है।
ऐसे और भी मामले हैं। पर असल मामला यह है कि मुर्दा कब्र से बाहर निकल चुका है, और उससे गंभीर मामला यह है कि इसमें मोदी चाह कर भी अडानी से अपने संबंधों को झुठला नहीं सकते। नीरव मोदी या मेहुल चौकसी जैसा यह मामला नहीं है। ससंद में मोदी ने किसी भी सवाल का जबाब नहीं दिया, पर लगातार विपक्ष यह नारा लगाता रहा मोदी हैं तो मुमकिन है। यह अडानी के लिए ही था। दिक्कत सुप्रीम कोर्ट में दायर की दो जनहित याचिकाओं के जरिए भी आ सकती है। यह हिंडनबप्ग रिपोर्ट के लो कर ही डाली गई है। एक याचिका में बैंको के कर्ज को लेकर सभी अदालत से गाइडलाइन मांगी गई है। दूसरी याचिका में शेयर की शार्ट सेलिंग को अपराध घोषित करने की मांग की गई है।
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