मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत में घोषित मिशन यूपी के क्या मायने हैं? क्या किसान आंदोलन अब राजनीतिक हो गया है? क्या आंदोलन का राजनीतिक होना गुनाह है? किसान आंदोलन के राजनीतिक एजेंडे का यूपी की चुनावी राजनीति पर क्या प्रभाव होगा?

किसान आंदोलन का दीर्घजीवी और व्यापक होना, आरएसएस के सौ साल की मेहनत को मिट्टी में मिला देगा। एक पार्टी के रूप में बीजेपी की हार से ज़्यादा मानीखेज विचार की पराजय होगी। किसान आंदोलन बहुल सांस्कृतिक एकजुटता और समावेशी राष्ट्रवाद की नींव को पुख्ता कर रहा है।
पहली बात तो यह है कि किसान आंदोलन का राजनीतिक होना न तो गुनाह है और न ही दिशाहीन होने का सूचक है। किसानों पर लादे जा रहे तीन काले क़ानून नरेंद्र मोदी सरकार की कारपोरेट परस्त राजनीति के कारण वजूद में आए हैं। इस राजनीति का जवाब 'विलोम' की राजनीति है, यानी जनता की राजनीति। दूसरी बात कोई भी आंदोलन ग़ैर राजनीतिक नहीं होता। तमाम आंदोलन राजनीतिक व्यवस्था को बदलने और बनाने के लिए होते हैं। इसलिए लोकतंत्र में ऐसे आंदोलनों का होना ज़रूरी है।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।