(...गतांक से आगे)‘इमरजेंसी को भारत एक ऐसे भयावह काल की तरह याद रखता है जिसने सभी संस्थाओं को विकृत करके भय के वातावरण का निर्माण किया था। न सिर्फ़ लोगों को, बल्कि विचार और कलात्मक स्वातंत्र्य को भी सत्तागत राजनीति ने बंधक बना दिया था।’ यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्विटर हैंडल पर दिया वह वक्तव्य है जो उन्होंने 25 जून 2021 को ट्वीट किया। सवाल यह उठता है कि क्या मोदी, भाजपा या 'संघ' परिवार को सचमुच लोगों और उनके विचार और कलात्मक चेतना के स्वतंत्र्य की फ़िक्र है? है तो कितनी?
आपातकाल के ख़तरे: मीडिया की ख़ामोशी के मायने
- विचार
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- 28 Jun, 2021

इंदिरा गाँधी और उनकी सरकारी मशीनरी द्वारा किये गए लोकतंत्र के अपहरण पर 46 साल बाद मोदी और उनकी पार्टी के अफ़सोस जताने की प्रक्रिया को लोग तब गंभीरता से लेते जब उनकी सरकार लोकतंत्र के प्रति संवेदनशील और समर्पित होती। आपातकाल की तीसरी कड़ी में पढ़िए, मीडिया की खामोशी पर...
आपातकाल की 46वीं सालगिरह के मौक़े पर प्रख्यात कार्टूनिट मंजुल ने अपने 2 फ्रेम वाले एक कार्टून को सोशल मीडिया पर जारी किया है। इस के पहले फ्रेम में दीवार पर इंदिरा गाँधी की सन 1975 की तस्वीर टंगी है। इसी फ्रेम में नीचे की तरफ मुंह पर बंधी पट्टी के साथ 'प्रेस' (रुपी इंसान) खड़ा है। कार्टून के दूसरे फ्रेम में दीवार पर नरेंद्र मोदी की सन 2021 की तस्वीर टंगी है और इसी फ्रेम में नीचे की तरफ़ आँखों पर बंधी पट्टी के साथ 'मीडिया' (रुपी इंसान) खड़ा है। मंजुल हर पीएम के कटु आलोचक कार्टूनिस्ट के रूप में विख्यात रहे हैं। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह, उनके कार्टूनों को देख कर मुस्करा कर आगे बढ़ जाते रहे हैं। मोदी को वह मंज़ूर नहीं। हाल ही में 'नेटवर्क 18' ने एक कार्टून पर पीएमओ की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद 24 घंटे के भीतर उक्त टीवी चैनल ने उनका सालाना कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया।