(...गतांक से आगे)आपातकाल की 46वीं वर्षगाँठ पर (बीते शुक्रवार) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छोटा सा ट्विटर संदेश ख़ासा दिलचस्प तो है ही राजनीतिक अंतर्विरोध की ज़बरदस्त गुत्थियों में उलझा हुआ भी है। अपने संदेश में वह लिखते हैं- ‘इमरजेंसी के भयावह दिनों को कभी नहीं भुलाया जा सकता...।’ कांग्रेस पर लोकतांत्रिक परम्पराओं के अपहरण का आरोप लगाते हुए मोदी आगे लिखते हैं- ‘...1975 से 1977 का समय संस्थाओं को सिलसिलेवार रूप से नष्ट किये जाने का युग था। आइए भारत की लोकतांत्रिक आत्मा को सुदृढ़ करने और संविधान प्रदत्त मूल्यों को जीवंत बनाने के लिए हर संभव प्रतिज्ञा लें।’
आपातकाल: कश्मीर पर कैसे बदला सरकार का रुख?
- विचार
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- अनिल शुक्ल
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- 27 Jun, 2021
आपातकाल की सालगिरह पर ट्वीट करने से एक दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू कश्मीर के नेताओं से मुलाक़ात की थी। जिनकी सरकार ने वहाँ के लोगों के ख़िलाफ़ अनुच्छेद 370 को ख़त्म किया, जिनके लोगों ने जम्मू कश्मीर के नेताओं के गठबंधन को 'गुपकार गैंग' तक कहा उनसे अब बात क्यों? आपातकाल की दूसरी कड़ी में पढ़िए कश्मीर पर अनिल शुक्ल की टिप्पणी...

क्या अनेकानेक बार आपातकाल का ज़िक्र करके प्रधानमंत्री का इरादा देशवासियों को इंदिरा गाँधी की उस अलोकतांत्रिक हरक़त से देश को असंवैधानिक अंधकार के गर्त में धकेल दिए जाने के आँसू बहाकर वोट बैंक के अपने लॉकर में राजनीतिक नक़दी बढ़ाना है? क्या जनता की स्मृतियों को कुरेद-कुरेद कर वह अपनी उस शत्रु नंबर एक पार्टी और उसके मौजूदा नेतृत्व को बारम्बार ज़लील करना चाहते हैं? उन्हें बेशक इतिहास के जिस्म पर जिनके पूर्वजों ने कभी अलोकतांत्रिकता का गहरा ज़ख्म लगाया हो लेकिन जो पुरखों की भूल पर कई-कई बार ‘राख डाल' चुके हैं और जिनके नेता राहुल गाँधी अपनी दादी के इस कृत्य को कई बार अलग-अलग सिरे से ख़ारिज कर चुके हैं।