भारत में अगर मीडिया और लोकतंत्र पर खतरे की बात अगर कही जा रही है तो वो यूं ही नहीं कही जा रही। मोदी सरकार ने चार महीने के अंदर तीसरे विदेशी पत्रकार को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। संयोग से इनें दो फ्रांस से हैं और एक ऑस्ट्रेलिया से। पिछले साल दिल्ली और अन्य स्थानों पर बीबीसी के दफ्तरों पर पड़े छापों को कोई भूला नहीं होगा। जानिए ताजा मामला क्या हैः
मोदी सरकार ने हाल ही में प्रेस की आजादी को खतरे में डालने वाला कानून बनाया है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया सहित तमाम पत्रकार संगठन, डिजिटल मीडिया अधिकार संगठन आदि ने सरकार के इस कदम का विरोध शुरू कर दिया है। जानिए उस कानून में ऐसा क्या है जो मीडिया के साथ-साथ आम लोगों को भी प्रभावित करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र की फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) की अधिसूचना पर रोक लगाते हुए कहा कि जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट आईटी नियमों में 2023 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम निर्णय नहीं ले लेता, तब तक इस पर रोक रहेगी। जानिए पूरी खबरः
भारत में प्रेस की आजादी का जो हाल है, वो सामने है। लेकिन विश्व प्रेस आजादी दिवस के मौके पर हमें उन पत्रकारों को नहीं भूलना चाहिए, जो प्रेस की आजादी बरकरार रखने के लिए कुर्बानी देते आए हैं। वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग म्यांमार की घटना का जिक्र कर रहे हैं।
भारत में मीडिया की आजादी पर इतना बड़ा खतरा कभी नहीं आया। देश की मौजूदा सरकार यह कहती हुई सत्ता में आई थी कि वो मीडिया की आजादी को हर हालत में बरकरार रखेगी। लेकिन आज जो हालात हैं, वो सामने हैं। वरिष्ठ पत्रकार वंदिता मिश्रा ने प्रेस की आजादी के मौजूदा खतरों पर नजर डाली है।
देश में आज मीडिया की हालत क्या है और आम नागरिकों के लिए यह कितना बड़ा नुक़सान है? अधिकतर सम्पादक न तो अपने पाठकों को बताने को तैयार है और न ही कोई उससे पूछना ही चाहता है कि ख़बरों का ‘तालिबानीकरण’ किसके डर अथवा आदेशों से कर रहे हैं?
इमरजेंसी को भारत एक ऐसे भयावह काल की तरह याद रखता है जिसने सभी संस्थाओं को विकृत करके भय के वातावरण का निर्माण किया था। लेकिन इमरजेंसी या इस तरह के हालात में मीडिया की क्या भूमिका है?
सरकार ने हाथ झाड़ लिए हैं और प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया की भूमिका भी बहुत उत्साहजनक नहीं लगती। ऐसे में तब्लीग़ी जमात के बहाने मुसलमानों को निशाना बनाने वाले मीडिया को कैसे सुधारा जाए? पेश है ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के पूर्व महासचिव एन. के. सिंह से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की बातचीत।
सरकार ने क्यों सु्प्रीम कोर्ट से कहा कि वो आदेश दे कि मीडिया कोरोना पर खबर बिना सरकार से कंफर्म किये न चलाये? क्या ये ख़बरों को सेंशर करने की कोशिश नहीं थी? आख़िर सरकार क्यों मीडिया पर कंट्रोल चाहती है? देखिए आशुतोष की बात।