नया साल शुरू हो चुका है और उससे पहले शुरू हो गई कंपकपा देने वाली सर्दी। इस समय भी देश के विभिन्न इलाक़ों में शीत लहर कहर बरपा रही है, जिससे लोगों के मरने की ख़बरें भी आ रही हैं। अब तक अकेले उत्तर प्रदेश में ही 200 से ज़्यादा लोग सर्दी की ठिठुरन से मौत की नींद सो चुके हैं। देश के अन्य इलाक़ों से भी भीषण सर्दी की वजह से लोगों के मरने की ख़बरें आ रही हैं। वैसे इस तरह की ख़बरें आना कोई नई बात नहीं है। कहीं भूख और कुपोषण से होने वाली मौतें तो कहीं ग़रीबी और क़र्ज़ के बोझ से त्रस्त किसानों की ख़ुदकुशी के जारी सिलसिले के बीच हर साल ही सर्दी की ठिठुरन, गर्म लू के थपेड़ों और बारिश-बाढ़ से भी लोग मरते हैं।
ठंड नहीं, व्यवस्था की काहिली से हो रही मौतें, सरकार क्यों नहीं लेती ज़िम्मेदारी?
- विचार
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- 7 Jan, 2020

मौसम की अति के चलते असमय होने वाली सैकड़ों मौतें हमारे उस भारत की नग्न सच्चाइयाँ हैं जिसके बारे में दावा किया जाता है कि वह तेज़ी से विकास कर रहा है और जल्द ही दुनिया की एक आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा।
मौसम की अति के चलते असमय होने वाली ये मौतें हमारे उस भारत की नग्न सच्चाइयाँ हैं जिसके बारे में दावा किया जाता है कि वह तेज़ी से विकास कर रहा है और जल्द ही दुनिया की एक आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। ये सच्चाइयाँ सिर्फ़ हमारी सरकारों के 'शाइनिंग इंडिया’, 'भारत निर्माण’ 'न्यू इंडिया’ 'स्टार्टअप इंडिया’, 'स्टैंडअप इंडिया’ 'मेक इन इंडिया’ जैसे हवा-हवाई कार्यक्रमों और पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हो जाने जैसे गुलाबी दावों की ही खिल्ली नहीं उड़ाती हैं, बल्कि व्यवस्था पर काबिज लोगों की नालायकी और संवेदनहीनता को भी उजागर करती हैं।