आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि लॉकडाउन खोलने को लेकर नागरिकों के मन में जैसी चिंताएँ हैं वैसी उन लोगों के मनों में बिलकुल नहीं हैं जो दुनिया भर में सरकारों में बैठे हुए हैं। उनकी चिंताएँ एकदम अलग हैं। नागरिक आमतौर पर मान बैठता है कि सरकार इस तरह की परिस्थितियों में ‘केवल’ उसी की चिंता में लगी रहती है। ऐसा वास्तव में होता नहीं है और इसे सभी जानते भी हैं। मसलन, एक नागरिक की यह दुविधा हो सकती है कि लॉकडाउन अगर पूरी तरह से खोल दिया जाए तो उसे ‘खुली जेल’ से मुक्त होते ही सबसे पहले क्या करना चाहिए इसका उसे पता नहीं है। हो सकता है कि वह कहीं जाए ही नहीं और महामारी के डर से स्वेच्छा से ही अपने आपको घरों में बंद कर ले। पर सरकारों को पता रहता है कि नागरिक कहाँ-कहाँ जा सकता है और उससे राज्य को क्या नुक़सान हो सकता है। नागरिक अपने शरीर और परिवार के भविष्य को लेकर जितना चिंतित रहता है उससे ज़्यादा चिंता राजनेताओं को अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर रहती है। लॉकडाउन जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर लिए जाने वाले फ़ैसलों का सम्बंध भी इन्हीं चिंताओं से रहता है।
‘रिस्क’ केवल नागरिक ही ले सकते हैं, सरकारें नहीं!
- विचार
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- 12 May, 2020

माना जा सकता है कि मौतों के आँकड़ों के संदर्भ में कोरोना से निपटने को लेकर जो चिंता भारत की प्रतिष्ठा को लेकर प्रधानमंत्री की हो सकती वही राज्यों के मुख्यमंत्रियों की भी राष्ट्रीय स्तर पर हो सकती है। इसीलिए जो उलझन नागरिकों के मन में ‘कहाँ जाएँ’ को लेकर है वह राज्य सरकारों के मन में नहीं है। उनकी चिंता ‘कब और कहाँ तक ‘जाने दिया जाए को लेकर है...