नये कोरोना वायरस के जन्म और संक्रमण से पनपी वैश्विक आपदा की चुनौतियों के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में 28 मार्च 2020 को PM CARES (Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations) फंड बनाया गया। हालाँकि, ऐसी चुनौतियों से जूझने के लिए आज़ादी के छह महीने बाद ही जनवरी, 1948 में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) मौजूद था। दोनों राहत फंड एक जैसे हैं। यूँ कहें कि PMNRF की फ़ोटो स्टेट कॉपी है PM CARES फंड। इसीलिए यह सवाल लाज़िमी है कि जब बिल्कुल हुबहू फंड पहले से मौजूद था तो फिर एक और नया बनाने की क्या ज़रूरत थी?
क्या PM CARES Fund के लिए कनपटी पर तमंचा तानकर दान लिया जा सकता है?
- विचार
- |
- |
- 4 May, 2020

ये सवाल तो अब भी समझ से परे ही हैं कि PMNRF के रहते PM CARES को बनाने की क्या ज़रूरत थी? और, यदि नया फंड बनाने की कोई सनक ही थी तो पुराने का नया नामकरण करने में क्या हर्ज़ था? यदि दर्ज़नों सरकारी बैंकों का विलय करके चन्द बड़े बैंक बनाये जा सकते हैं तो दोनों आपदा फंड का विलय करके एक ही बड़ा फंड नहीं बनाने के पीछे असली मंशा क्या है?
इस बुनियादी सवाल को मोदी सरकार से कई बार पूछा गया। बताया गया कि ‘PMNRF का सम्बन्ध सभी तरह की आपदाओं से है, जबकि PM CARES को ख़ास तौर पर कोरोना संकट को देखते हुए बनाया गया है।’ यह जवाब पूरी तरह से ग़लत और भ्रामक है। क्योंकि PMNRF की वेबसाइट पर भी साफ़-साफ़ लिखा है कि इस फंड का इस्तेमाल किसी भी ‘प्राकृतिक आपदा’ में राहत और बचाव के लिए होगा। अब सवाल यह बचा कि क्या कोरोना की आफ़त को ‘प्राकृतिक आपदा’ का दर्ज़ा हासिल नहीं है? बिल्कुल है। पूरी तरह से है। लॉकडाउन के वक़्त से ही मोदी सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को लागू कर रखा है। इसी के मुताबिक़, केन्द्र सरकार की हिदायतों का पालन करना राज्यों के लिए अनिवार्य बनाया गया है।
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली