वैसे तो सारी दुनिया में जनता की नब्ज़ को भाँपने के लिए अनेक सर्वेक्षण होते हैं, लेकिन अमेरिकी सर्वेक्षणों की प्रतिष्ठा ख़ासी बेहतर समझी जाती है। क्योंकि इनसे सच का आभास होता है। जबकि भारत में सर्वेक्षणों की आड़ में तरह-तरह के ‘खेल’ खेले जाते हैं। तभी तो भारत में कोरोना से निपटने को लेकर हुई तमाम लापरवाही के बावजूद नरेन्द्र मोदी को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री बताया जाता है, जबकि इन्हीं लापरवाहियों के आधार पर ट्रम्प को अमेरिकी जनता कोरोना आपदा से निपटने में नाकाम करार देती है।
चुनावी साल में ट्रम्प को अमेरिकी जनता की नाराज़गी का आभास काफ़ी वक़्त से हो रहा था। तभी वह अपनी नाकामियों का ठीकरा लगातार चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन पर (WHO) फोड़ते रहे हैं।
ट्रम्प को लगा तगड़ा झटका
अमेरिकी अख़बार ‘डेली मेल’ में प्रकाशित एक सर्वे के मुताबिक़, करीब 55 फ़ीसदी अमेरिकी जनता ने ट्रम्प को कोरोना वायरस से निपटने में नाकाम करार दिया है। इतना ही नहीं, अमेरिका में दोबारा स्कूलों को खोले जाने के ट्रम्प के फ़ैसले को भी लोगों ने सिरे से नकार दिया है।
ट्रम्प ने 27 अप्रैल को कई राज्यों के गवर्नरों से स्कूलों को खोलने के बारे में चर्चा की थी। इस सवाल पर सर्वे में शामिल करीब 85 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि अभी स्कूल खोलना सरासर गलत आइडिया होगा। सिर्फ़ 14 फ़ीसदी लोगों ने ट्रम्प को ग़लत नहीं माना। ज़ाहिर है, ट्रम्प की लोकप्रियता औंधे मुँह गिर चुकी है। इसीलिए सर्वे के नतीजे को उनके लिए बहुत तगड़ा झटका माना जा रहा है।
बौखलाये ट्रम्प बोले - चीन मुझे चुनाव हरवा देगा
जैसे भारत में चुनाव के वक़्त पाकिस्तान का राग अलापा जाता है, बिल्कुल वैसे ही, अमेरिकी जनता के सामने ट्रम्प चीन को बार-बार अमेरिका का दुश्मन नम्बर वन बनाकर पेश कर रहे हैं। चीन को लगातार घेर रहे हैं। इस खेल में ट्रम्प का ‘गोदी मीडिया’ भी उनका भरपूर साथ दे रहा है।
कभी कोरोना को कृत्रिम बताया जाता है तो कभी जैविक हथियार, कभी प्रयोगशाला से लीक की थ्योरी चलती है, कभी डब्ल्यूएचओ की लापरवाही और चीन से उसकी मिलीभगत की बातें होती हैं तो कभी चीन पर वक़्त रहते पूरा ब्यौरा नहीं देने की बातों को उछाला जाता है।
ट्रम्प के दावों की हवा निकाली
अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने ऐसे तमाम दावों की हवा निकाल दी है। ट्रम्प युग के बावजूद अमेरिका की लोकतांत्रिक संस्थाओं का भारत की तरह पूर्ण पतन अभी नहीं हुआ है। इसीलिए, अमेरिका के ‘ऑफिस ऑफ द डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस’ ने ट्रम्प और उनके पीछे खड़े अमेरिकी ‘गोदी मीडिया’ के इन दावों को सिरे से ख़ारिज़ कर दिया है कि कोविड-19 वायरस कृत्रिम या मानव-निर्मित है और यह वुहान की वायरोलॉजी लैब से लीक हुआ है।
अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी ने यह कहकर जैविक हथियार वाली थ्योरी को भी नकार दिया है कि कोविड-19 किसी जेनेटिक बदलाव का नतीज़ा है।
लेकिन अपनी सियासी खाल को बचाने के लिए डोनल्ड ट्रम्प का चीन पर हमला जारी है। न्यूज़ एजेंसी ‘रॉयटर्स’ को दिये इंटरव्यू में ट्रम्प ने चीन को लेकर काफ़ी सख़्त शब्दों में कहा, “मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ।” यानी, वायरस को लेकर चीन को सबक सिखाने के लिए विकल्पों पर काम चल रहा है।
इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछा गया कि क्या वह चीन पर हाई टैरिफ का इस्तेमाल करेंगे या क़र्ज को बट्टे खाते में डालेंगे? तो ट्रम्प ,सवाल टाल गये और बोले, “कई चीज़ें हैं जो मैं कर सकता हूँ।” अपनी गिरती लोकप्रियता से बौखलाए ट्रम्प ने कहा, “मैं हार जाऊँ, इसके लिए चीन जो कुछ भी कर सकता है, करेगा।”
‘बाइडेन जीते तो अमेरिका पर चीन का क़ब्ज़ा’
ट्रम्प ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि वह मानते हैं कि चीन उनके प्रतिपक्षी और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडेन को जितवाना चाहता है। ताकि उन्होंने चीन पर व्यापार और अन्य मुद्दों को लेकर जो दबाव बनाया है, वह कम हो जाए। इससे पहले भी ट्रम्प कह चुके हैं कि ‘बाइडन’ जीते तो अमेरिका पर चीन का क़ब्ज़ा हो जाएगा’। यह बात बिल्कुल वैसी ही है जैसे 2015 में बिहार के चुनाव में कहा गया था कि अगर यहां बीजेपी नहीं जीती तो पाकिस्तान में दिवाली मनायी जाएगी।
‘वाशिंगटन टाइम्स’ अख़बार ने हाल ही में अमेरिकी सरकार के हवाले से लिखा था कि कोरोना वायरस के वुहान लैब से फैलने की सम्भावना सबसे ज़्यादा है। इससे पहले ट्रम्प कह चुके हैं कि कोरोना वायरस वुहान की लैब से एक इंटर्न की गलती की वजह से लीक हुआ। लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियों की रिपोर्ट से साफ़ हो चुका है कि ट्रम्प हवा में तलवार भाँज रहे थे।
ट्रम्प के प्रभाव में आकर फ्रांस के एक नोबल विजेता वायरस विशेषज्ञ ने भी आव देखा न ताव और बग़ैर किसी शोध के दावा कर दिया कि यह वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा नहीं हुआ, बल्कि किसी औद्योगिक हादसे का नतीज़ा हो सकता है।
पोम्पियो ने मिलाया सुर में सुर
साफ़ है कि वैज्ञानिक भी राजनीतिक बयान दे रहे थे। भारत में भी कई वैज्ञानिक मोदी-चालीसा का गायन-वादन कर चुके हैं। राष्ट्रपति के सुर में सुर मिलाते हुए दो सप्ताह पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो कह चुके हैं कि चीन को वुहान लैब में अमेरिका को जाँच करने की इजाज़त देनी चाहिए क्योंकि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से कुछ ही दूर वो सी-फूड मार्केट है, जहाँ की मछली बेचने वाली वेई नामक महिला को कोविड-19 का पहला मरीज़ माना गया है।
जाल में नहीं फँसी भारत सरकार
हाल के दिनों में कोरोना को लेकर ट्रम्प ने चीन पर तीखे हमले करके दुनिया को यह समझाने की कोशिश की कि दो लाख से ज़्यादा जानें लेने वाला और 30 लाख से ज़्यादा ज्यादा लोगों को संक्रमित करने वाला कोरोना वायरस चीन की वुहान लैब से ही बाहर निकला है।
मज़े की बात यह भी रही कि ट्रम्प ने भारत से भी उसके सुर में सुर मिलाने को कहा था। लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने साफ़ मना कर दिया। अलबत्ता, ट्रम्प जैसी दुर्दशा कल को नरेन्द्र मोदी की ना हो जाए, इसे देखते हुए भारतीय गोदी मीडिया और बीजेपी के आईटी सेल ने चीन का चरित्रहनन करने में अपनी ताक़त वैसे ही झोंक दी है, जैसा राहुल गाँधी और नेहरू के मामले में वह करती है।
हालाँकि, चीन कोई दूध का धुला नहीं है। चीन की सफाई पर दुनिया को यक़ीन नहीं हो रहा। वह वुहान की लैब से वायरस लीक होने के दावे को बार-बार मनगढ़न्त और झूठा बताता रहा है। वुहान की लैब में 1500 से ज़्यादा वायरस मौजूद हैं जिन पर रिसर्च होते हैं।
यह लैब फ़्रांस के ज़ोरदार सहयोग से बनी थी और इसमें अमेरिका भी फंडिंग कर चुका है। लेकिन अभी चुनाव और हार को सिर पर मंडराता देख ट्रम्प ने चीन को अपना मुख्य प्रतिद्वन्द्वी बना लिया है। भारत में लोकसभा चुनाव काफ़ी दूर ज़रूर हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल और बिहार के चुनाव की आहट तो अब मिलने लगी है। बीजेपी को पूरे देश के कोरोना के प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पीड़ितों की वैसी परवाह नहीं है, जैसी बंगालियों की है। कहना सही होगा कि बंगालियों को लेकर उसका मन मचलने लगा है।
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