कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
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कल्पना सोरेन
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गीता कोड़ा
बीजेपी - जगन्नाथपुर
हार
कोरोना महामारी का सामना जितने लचर और अगंभीर तरीके से भारत सरकार ने किया है, उतना दुनिया के किसी और देश की सरकार ने नहीं। भारत सरकार ने इस महामारी के शुरुआती दौर में तो इसकी गंभीरता को ही नहीं समझा। जब यह महामारी भारत में प्रवेश कर चुकी थी तब भी सरकार 'नमस्ते ट्रंप’ जैसी फालतू और बेहद खर्चीली तमाशेबाजी और विपक्षी राज्य सरकारों को गिराने के अपने मनपसंद खेल में जुटी थी। इसी के चलते लॉकडाउन भी देरी से लागू किया गया।
बगैर किसी तैयारी के हड़बड़ी में लागू किए लॉकडाउन से देशभर में अफरातफरी मच गई। आम लोगों को न सिर्फ तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा बल्कि अपने घरों को लौट रहे कई प्रवासी मजदूरों की असमय मौत भी हो गई। उसी दौरान सरकार की लचर स्वास्थ्य सेवाओं की पोल भी खुली। अब कोरोना के टीकाकरण (वैक्सीनेशन) में भी वैसी ही हड़बड़ी दिखाई गई जिसके चलते अफरातफरी मची हुई है और कोरोना के टीके पर लोगों का भरोसा नहीं बन पा रहा है।
दुनिया के जिन अन्य देशों में कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए टीकाकरण की शुरुआत हुई है, वहां का अनुभव है कि इसकी सफलता के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी है कि लोगों का वैक्सीन को लेकर भरोसा बने।
उन्हें यह यकीन हो कि वैक्सीन उन्हें वायरस से सुरक्षा देगी और उनके शरीर पर कोई बुरा असर नहीं होगा। यह भरोसा बनाने के लिए अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन और उनकी पत्नी ने सार्वजनिक रूप से वैक्सीन लगवाई। अमेरिकी संसद के निचले सदन की स्पीकर और उच्च सदन के सभापति यानी उप राष्ट्रपति ने भी वैक्सीन लगवाई। हालांकि इसके बावजूद अमेरिका में वैक्सीन लेने वालों का भरोसा नहीं बना और जब कई जगह वैक्सीन का स्टॉक फेंका जाने लगा तो उसके स्टॉक के नए नियम बने।
इसी तरह इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने दिसंबर में अपने देश में टीकाकरण शुरू होते ही सबसे पहले टीका लगवाया। उन्हें वैक्सीन की दूसरी डोज भी लग गई है। इसके अलावा यूरोपीय संघ के देशों के नेताओं से लेकर अरब देशों के शेखों तक हर जगह बड़े नेताओं ने सार्वजनिक रूप से टीका लगवाया है।
रूस में कोरोना की वैक्सीन सबसे पहले राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बेटी को लगाई गई। इसका मकसद यही था कि लोगों का भरोसा बढ़े ताकि वे टीकाकरण की प्रक्रिया में शामिल हों।
लेकिन भारत में स्थिति बिल्कुल अलग है। यहां सरकार की ओर से दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समारोहपूर्वक टीकाकरण अभियान का उद्घाटन किया, लेकिन उन्होंने खुद टीका नहीं लगवाया। यही नहीं, उन्होंने मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल मीटिंग में कहा कि नेताओं को प्राथमिकता के आधार पर टीका लगवाने की पहल नहीं करनी चाहिए। एक तरह से उन्होंने नेताओं से कहा कि वे टीका न लगवाएं।
अब सवाल है कि देश और समाज की सेवा में जुटे प्रधानमंत्री, उनकी सरकार के मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, उनके मंत्री, सांसद, विधायक आदि क्या फ्रंटलाइन वर्कर्स नहीं हैं? क्या इनका काम देश के पहले तीन करोड़ लोगों से कम महत्व का है?
सोचने वाली बात है कि जो लोग ऑर्डर ऑफ़ प्रेसिडेंस यानी प्रोटोकॉल में सबसे ऊपर आते हैं और देश के पहले, दूसरे या तीसरे नागरिक कहे जाते हैं, वे फ्रंटलाइन वर्कर नहीं हैं। इसीलिए ये लोग फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ टीका नहीं लगवा रहे हैं।
प्रधानमंत्री भले ही कह रहे हों कि नेता लोग पहले टीका लगाने के लिए मारामारी न करें, लेकिन हकीकत यह है कि कोई नेता मारामारी कर ही नहीं रहा है। सब टीका लगवाने से खुद ही बच रहे हैं। कई मुख्यमंत्रियों और पूर्व मुख्यमंत्रियों ने टीका लगवाने से इनकार कर दिया है और बहाना बनाया है कि पहले ज़रूरतमंदों को लगे। सबसे पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अलग-अलग कारणों से घोषणा की कि वे टीका नहीं लगवाएंगे। शिवराज सिंह ने जहां टीकाकरण में आम जरूरतमंद लोगों को प्राथमिकता देने की बात कही, वहीं अखिलेश यादव ने वैक्सीन की विश्वसनीयता पर संदेह जताया।
टीकाकरण से खुद को बचाते इन नेताओं के इस रवैये को देख कर पहली नजर में तो यही लगेगा कि ये लोग देश के लिए कितना सोचते हैं। लेकिन जरा सा ध्यान से देखेंगे तो ये सवाल खड़ा होगा कि क्या ये लोग वैक्सीन की गुणवत्ता को लेकर संशय में हैं? अन्यथा कोई कारण नहीं है कि जहां तीन करोड़ लोगों को टीके लग रहे हैं, वहां पांच हजार और लोगों को न लग पाएं।
जी हां, देश में सांसदों, विधायकों आदि की कुल संख्या पांच हजार के लगभग है। इसमें प्रधानमंत्री, उनके 55 मंत्री और साथ ही राज्यों के राज्यपाल, उप राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक आदि सब शामिल हैं।
हैरान करने वाली बात यह भी है कि जहां पहले चरण में तीन करोड़ लोगों को टीका लग रहा है, वहां क्या पांच हजार और लोगों को टीका नहीं लग सकता है? क्या इससे टीके घट जाएंगे?
हर हफ्ते एक करोड़ टीके सीरम इंस्टीट्यूट में और लगभग इतने ही टीके भारत बायाटेक में बन रहे हैं, जहां से दुनिया के दूसरे देशों में टीका भेजने का समझौता हो रहा है। लेकिन नेताओं को लगाने के लिए पांच हजार टीकों का इंतजाम नहीं हो पा रहा है।
ऐसा नहीं है कि वैक्सीन की विश्वसनीयता को लेकर नेताओं में ही संशय की स्थिति है, सरकार ने जिन तीन करोड़ लोगों को पहले चरण के टीकाकरण के लिए चिन्हित किया है उनमें भी कई लोग वैक्सीन के निरापद होने का भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली में ही एक बड़े सरकारी अस्पताल (राम मनोहर लोहिया अस्पताल) के डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ ने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को लेकर आशंका जताते हुए उसे लेने से इनकार कर दिया है। अस्पताल के रेजीडेंट डॉक्टरों ने अस्पताल के अधीक्षक को पत्र लिख कर कहा है कि अभी कोवैक्सीन का परीक्षण पूरा नहीं हुआ है, इसलिए वे इसे नहीं लेना चाहते।
देश में अब तक करीब 700 से अधिक लोगों के बीमार होने की ख़बरें आई हैं। अकेले दिल्ली में ही 50 से ज्यादा लोग टीका लगवाने के बाद बीमार हो गए हैं। सूजन, बुखार, दर्द, उल्टी, बदन दर्द, जैसे गंभीर साइड इफेक्ट हुए हैं। हालांकि सरकारी तौर पर मौत का आंकड़ा नहीं बताया गया है लेकिन करीब 10 लोगों के मरने की ख़बरें मीडिया और सोशल मीडिया में आई हैं।
देश में टीकाकरण की इस स्थिति पर कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि तीसरे चरण के परीक्षण का डाटा आए बगैर ही सरकार ने कोवैक्सीन को मंजूरी देकर देश के लोगों को गिनी पिग बना दिया है। कांग्रेस को इस पर भी आपत्ति है कि सरकार लोगों को अपनी पसंद की वैक्सीन चुनने नहीं दे रही है। इस पूरी स्थिति पर सरकार की ओर से कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं आया है।
बस प्रधानमंत्री मोदी यही कह रहे हैं कि भारत बायोटेक की वैक्सीन को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही स्वीकृति दी है, इसलिए लोग अफवाहों से दूर रहें। इसी तरह स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन भी कह रहे हैं कि वैक्सीन कोरोना के ख़िलाफ़ संजीवनी की तरह काम करेगी।
देश और दुनिया में अनेक असाध्य और जानलेवा बीमारियों से बचाव के लिए सैकड़ों किस्म की वैक्सीन बनी हैं और बचपन से ही लोगों को लगनी शुरू हो जाती हैं। लेकिन ज्ञात इतिहास में कभी किसी वैक्सीन को लेकर संशय का ऐसा माहौल नहीं बना, जैसा कोरोना की वैक्सीन को लेकर बना है। असल में वैक्सीन से किसी बात की गारंटी नहीं मिल रही है। वैक्सीन की डोज के साथ यह नसीहत दी जा रही है कि मास्क लगाए रखना है, दो गज की दूरी रखनी है, हाथ धोते रहना है या सैनिटाइज करते रहना है। जब तक वैक्सीन नहीं थी तब तक भी इसी उपाय से लोग बचते रहे थे और वैक्सीन के बाद भी ये ही उपाय करने है तो वैक्सीन का क्या मतलब है?
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