ऐसा लगता है कि राहुल गाँधी भारत में दूसरी ‘बहुजन क्रांति’ को लेकर गंभीर तैयारी कर रहे हैं। यह क्रांति प्रतिनिधित्व या भागीदारी के सवाल को सत्ता-सूत्रों पर ‘नियंत्रण’ से जोड़ रही है। दिल्ली में बहुजन बुद्धिजीवियों के बीच सामाजिक न्याय के मोर्चे पर कांग्रेस की असफलता को खुले रूप में स्वीकारना और क्यूबा के महान क्रांतिकारी फ़िदेल कास्त्रो की कहानी सुनाना बताता है कि राहुल गाँधी फ़ौरी नाकामियों की परवाह किये बिना कांग्रेस को ‘दूसरी बहुजन क्रांति’ की वाहक शक्ति बनाना चाहते हैं।