ऐसा लगता है कि राहुल गाँधी भारत में दूसरी ‘बहुजन क्रांति’ को लेकर गंभीर तैयारी कर रहे हैं। यह क्रांति प्रतिनिधित्व या भागीदारी के सवाल को सत्ता-सूत्रों पर ‘नियंत्रण’ से जोड़ रही है। दिल्ली में बहुजन बुद्धिजीवियों के बीच सामाजिक न्याय के मोर्चे पर कांग्रेस की असफलता को खुले रूप में स्वीकारना और क्यूबा के महान क्रांतिकारी फ़िदेल कास्त्रो की कहानी सुनाना बताता है कि राहुल गाँधी फ़ौरी नाकामियों की परवाह किये बिना कांग्रेस को ‘दूसरी बहुजन क्रांति’ की वाहक शक्ति बनाना चाहते हैं।
दूसरी ‘बहुजन क्रांति’ लाने की तैयारी में हैं राहुल गांधी?
- विचार
- |
- |
- 2 Feb, 2025

राहुल की कसौटियाँ अन्य पार्टियों के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी चुनौती हैं। सवाल है कि कांग्रेस-जन राहुल गाँधी की बात को कितनी जल्दी समझते हैं?
15 अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता महज़ सत्ता हस्तांतरण नहीं था। इसने एक ऐसे भारत को जन्म दिया जो अतीत में कभी उपस्थित नहीं था। भारत की बहुसंख्यक आबादी का निर्माण करने वाले श्रमिकों, किसानों, शिल्पकारों को पहली बार यह अधिकार मिला था कि वे अपने फ़ैसले ख़ुद करें। एक ज़मींदार और उसका खेत जोतने वाला ‘एक वोट’ देने की समान शक्ति के साथ एक ही लाइन में खड़ा कर दिया गया। स्त्रियों को पहली बार पुरुष की अधीनता से क़ानूनी रूप से मुक्ति मिली। कुल मिलाकर यह ‘स्वतंत्रता’ सामाजिक दृष्टि से दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, अति पिछड़ों और स्त्रियों के लिए ‘अभूतपूर्व’ थी। संविधान ने अल्सपसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने का वादा करके समता के सिद्धांत को गहरा किया था। यह भारत की ‘पहली बहुजन क्रांति’ थी जो संविधान द्वारा सुरक्षित की गयी थी। संविधान एक ऐसी किताब है जिसने इस उपमहाद्वीप में पहली बार वैधानिक रूप से सभी को समान नागरिक माना।