क्या हम सोच पा रहे हैं कि हमारे घरों और आस-पड़ोस में जो छोटे-छोटे बच्चे बार-बार नज़र आ रहे हैं, उनके मन में इस समय क्या उथल-पुथल चल रही होगी? क्या ऐसा तो नहीं कि वे अपने खाने-पीने की चिंताओं से कहीं ज़्यादा अपने स्कूल, अपनी क्लास, खेल के मैदान, लाइब्रेरी और इन सबसे भी अधिक अपनी टीचर के बारे में सोच रहे हैं और हमें पता ही न हो?