क्या हम सोच पा रहे हैं कि हमारे घरों और आस-पड़ोस में जो छोटे-छोटे बच्चे बार-बार नज़र आ रहे हैं, उनके मन में इस समय क्या उथल-पुथल चल रही होगी? क्या ऐसा तो नहीं कि वे अपने खाने-पीने की चिंताओं से कहीं ज़्यादा अपने स्कूल, अपनी क्लास, खेल के मैदान, लाइब्रेरी और इन सबसे भी अधिक अपनी टीचर के बारे में सोच रहे हैं और हमें पता ही न हो?
‘लॉकडाउन’ में क़ैद हमारे बच्चे और उनके सपनों की दुनिया!
- विचार
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- 1 May, 2020

लॉकडाउन के दौरान घरों में क़ैद बच्चों की मन स्थिति क्या होगी। उनके मन में इस समय क्या उथल-पुथल चल रही होगी?
कोरोना और लॉकडाउन, बच्चों के सपनों और उनकी हक़ीक़तों से बिलकुल अलग है। उन्हें डर कोरोना से कम और अपने स्कूलों तक नहीं पहुँच पाने को लेकर ज़्यादा लग रहा है। क्या उनके बारे में, उनके सपनों के बारे में भी हमारे यहाँ कहीं कोई सोच रहा है? स्कूल जाने को लेकर तैयार होने का उनका सुख क्या इस बात से अलग है कि जो उनसे बड़े हैं वे किसी भी तरह घरों से बाहर निकलने को लेकर छटपटा रहे हैं?