जिन दिनों एक अमेरिकी डॉलर की क़ीमत 82 भारतीय रुपये के पार हो रही है, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन विवेक देबरॉय कोई नया आर्थिक सिद्धांत प्रस्तावित करने के बजाय भारतीय संविधान को बदलने का जंतर बाँट रहे हैं। पिछले दिनों एक अख़बार में लेख लिखकर उन्होंने संविधान को पूरी तरह बदल डालने का आह्वान किया है। यूँ संविधान में संशोधन की व्यवस्था है, लेकिन उनकी नज़र में ये सब नाक़ाफ़ी हो चुका है। इससे पहले राज्यसभा में नामित किये गये सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई बुनियादी ढाँचे को अपरिवर्तनीय बताने के संविधान पीठ के फ़ैसले पर सवाल उठा चुके हैं। यही नहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस रोक को लोकतंत्र के विरुद्ध बताकर एक नयी बहस छेड़ दी है।
‘भारत’ के ख़िलाफ़ युद्ध का ऐलान है संविधान बदलने का प्रस्ताव!
- विचार
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- 28 Aug, 2023

भारत के संविधान को बदलने की बात क्यों की जा रही है? ऐसी बात करने वाले लोग आख़िर कौन हैं और उन्हें मौजूदा संविधान से दिक्कत क्या है?
प्रधानमंत्री बतौर नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का यह लगभग अंतिम चरण है और ऐसा लगता है कि वे 2024 लोकसभा चुनाव के पहले कोई बड़ा धमाका करना चाहते हैं। ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई और नफ़रती हिंसा से जुड़ी चीखों को ‘म्यूट’ करने के लिए बड़ा धमाका हरदम ही उनकी राजनीतिक शैली का हिस्सा रहा है। संविधान बदलना ऐसा ही एक धमाका हो सकता है जिसके लिए पलीता तैयार किया जा रहा है। ‘हिंदू राष्ट्र’ का लक्ष्य लेकर चल रहा आरएसएस न जाने कब से ऐसे किसी पलीते में आग लगाने की तैयारी कर रहा है। संविधान लागू होने के साथ ही उसने इसे पूरी तरह ‘अभारतीय’ बताते हुए विरोध का जो सिलसिला शुरू किया था, वह गठबंधन की मजबूरियों से बँधे अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में ‘संविधान समीक्षा आयोग’ के गठन तक ही पहुँच पाया था। पर मोदी के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं है।