बहुत सारे लोगों ने तब राय ज़ाहिर की थी कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के 'अपराध' में वकील प्रशांत भूषण को बजाय एक रुपया जुर्माना भरने के तीन महीने का कारावास स्वीकार करना चाहिए था। भूषण शायद कारावास मंज़ूर कर भी लेते, पर तब उन्हें तीन साल के लिए वकालत करने का भी प्रतिबंध भुगतना पड़ता जिसे वे उनके द्वारा लड़ी जाने वाली जनहित याचिकाओं के हित में स्वीकार करने का साहस नहीं जुटा पाए होंगे।