बहुत सारे लोगों ने तब राय ज़ाहिर की थी कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के 'अपराध' में वकील प्रशांत भूषण को बजाय एक रुपया जुर्माना भरने के तीन महीने का कारावास स्वीकार करना चाहिए था। भूषण शायद कारावास मंज़ूर कर भी लेते, पर तब उन्हें तीन साल के लिए वकालत करने का भी प्रतिबंध भुगतना पड़ता जिसे वे उनके द्वारा लड़ी जाने वाली जनहित याचिकाओं के हित में स्वीकार करने का साहस नहीं जुटा पाए होंगे।
आम आदमी की अवमानना की सुनवाई किस अदालत में होगी?
- विचार
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- 17 Nov, 2020

अर्णब को जिस प्रकरण में (प्रेस की आज़ादी से जुड़े किसी मामले में नहीं) सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करके अंतरिम ज़मानत प्रदान की गई, उसे लेकर समाज के एक वर्ग में बेचैनी है। तर्क दिए जा रहे हैं कि हज़ारों की संख्या में विचाराधीन क़ैदी महीनों/सालों से अपनी सुनवाई की प्रतीक्षा में कई दीपावलियाँ सीखचों के पीछे गुज़ार चुके हैं।
प्रशांत भूषण द्वारा एक रुपया जुर्माना भर कर प्रकरण से मुक्त होने का समर्थन करने वालों में मैं भी था। पर अब मुझे लगता है कि उन्हें जुर्माना नहीं भरना चाहिए था। प्रशांत भूषण अगर अगस्त-सितम्बर में जेल चले जाते तो नवम्बर महीने का इतिहास शायद अलग हो जाता।